Sunday, March 27, 2011

किस दशा का है इंतजार ?

प्राय: करके व्यक्ति शनि या राहु या केतु के नाम से ही डरता है, मांगलिक दोष से डरता है, साढ़ेसाती से डरता है, मारकेश से डरता है और खराब योगों से डरता है। आम आदमी भी गजकेसरी योग या बुधाधित्य योग को जानता है और प्रसन्न रहता है, यह योग खुश करने वाले हैं।
पुराने लोग अपने पुत्र का राजयोग का समय जानना चाहते थे, इसका अर्थ यह था कि उनकी मृत्यु कब होगी? क्योंकि उसके बाद ही राजयोग मिल सकता था। औरंगजेब को इंतजार नहीं था और उसने किसी पण्डित से भी नहीं पूछा और पिता को कैद में डालकर राजयोग प्राप्त कर लिया। किसी को पिता के मरने का इंतजार है, तो किसी को अपने शराबी पति के मरने का तो किसी पत्नी को अपने पति के दूसरे राज्य में कमाने के लिए चले जाने का इंतजार है, तो कोई पत्नी अपने परदेशी पिया के लौट आने का ही इंतजार करती है। कब आयेंगे वह? पण्डित जी कहते हैं कि अच्छी दशा आने पर आयेंगे। यही जवाब उपरोक्त सभी समस्याओं का है। यद्यपि अच्छी घटना किसी भी महादशा में सकती है परन्तु फिर भी हर कार्य, हर दशा में नहीं होता। दशाओं से बिना जन्मपत्रिका पर सूक्ष्म विचार किए हुए भी हम जान सकते हैं कि अच्छा परिणाम कब आयेगा?
ग्रहों पर आधारित दशाओं की प्रकृति: सूर्य अग्निमय हैं। इनकी दशा आने पर क्रोध बढ़ता है, राजयोग मिलता है, पिता से संबंधित फल आते हैं तथा हड्डियों से संबंधित परिणाम आते हैं। यदि आठवें भाव में स्थित हों तो पक्का फ्रैक्चर करवाते हैं। सूर्य कलह कारक हैं। अकस्मात सरकारी लोगों से कष्ट आता है, कुटुम्ब में रोग उत्पन्न होता है, सूर्य यात्राएँ और पित्त कराते हैं। मन में अग्नि रहती है तथा मन में कुण्ठायें या अति आत्मविश्वास होता है। सूर्य यदि अच्छे भावों में हों तो वरदान जैसा मिलता है और खराब भावों में हों तो अनिष्ट फल। सूर्य प्रसिद्धि कराते हैं, बड़े लोगों से मिलवाते हैं, सरकारी साधन हाथ में लगते हैं और यदि थोड़े से भी दूषित हों तो व्यक्ति काले काम करता है। सूर्य की महादशा में व्यक्ति का आत्मबल बहुत बढ़ जाता है और वह साहसिक कार्य करने की सोचता है।
कब अनिष्ट फल होंगे?: सूर्य यदि राहु, केतु शनि से दृष्ट हों, तो अशुभ फल देते हैं। अशुभ भावों में बैठे हों तो महादशा खराब जाती है। यदि सूर्य 3, 6, 11 के स्वामी हों तो अत्यन्त शानदार परिणाम देते हैं। यदि सूर्य 6, 8 12वें भाव में बैठे हों तो क्रमश: लम्बे जीवन संघर्ष, शत्रुओं का मानमर्दन, अष्टम में हों तो हड्डियों से संबंधित दोष, पित्त विकार, अग्निभय और राजकोप जैसे भय सूर्य की महादशा में आते हैं। 12वें भाव के सूर्य या 12वें भाव के स्वामी सूर्य अपनी महादशा में व्यर्थ के भ्रमण और अनन्त खर्चे देते हैं। सूर्य यदि राहु के साथ बैठे हों और दोनों के बीच में बहुत ही कम अंशों का अंतर हो तो अपार कष्ट देते हैं और तरह-तरह से राजकोप मिलता है।
सूर्य महाक्रोधी हैं, इनकी महादशा में व्यक्ति किसी की नहीं सुनता, व्यक्ति का आत्मविश्वास अत्यधिक बढ़ जाता है और अहंकार भी जन्म लेता है। सूर्य जरा-सा भी दूषित हों तो व्यक्ति क्रूर हो जाता है। घर-परिवार से अलग हो जाता है और शासकों से मित्रता या बैर करता है।
चन्द्रमा : चन्द्रमा सबसे छोटे होते हुए भी अत्यन्त शक्तिशाली हैं। खगोल शास्त्रीय दृष्टि में उपग्रह हैं परन्तु इनको ग्रह की संज्ञा प्राप्त है और चन्द्र लग्न को जन्म लग्न की भाँति सबसे शक्तिशाली माना जाता है। अपनी राशि या अपने नक्षत्र, उच्च राशि में स्थित चन्द्र या पूर्ण चन्द्र वरदान माने जाते हैं और अपनी दशा में श्रेष्ठ फल देते हैं। चन्द्रमा को रागरंग का स्वामी माना जाता है, वे भोगी हैं, सौंदर्य रस की सृष्टि करते हैं और मन को अत्यंत चंचल कर देते हैं। संसार की समस्त जल निधि पर उनका अधिकार है और जिस स्थान पर कण मात्र भी जल हो, वहाँ चन्द्रमा पूर्ण रूप से प्रभावी हो जाते हैं।
चन्द्रमा की दशा में मन अत्यंत शान्त हो जाता है। इन से पूर्व की दशा सूर्य की होती है परन्तु चन्द्रमा प्रारंभ होते ही भयंकर क्रोध, शीतल जल में बदल जाता है परंतु इनकी गति बहुत तीव्र है। चन्द्रमा बहुत चंचल हैं और एक जगह पर नहीं टिकते। इस दशा में कोई भी विचार स्थिर नहीं रहता तथा व्यक्ति तेज गति से निर्णय लेता है। उच्च कोटि का खान-पान, राजकीय वैभव, नये-नये संबंध और रिश्ते, मातृभूमि या माता से लेन-देन तथा समस्त स्त्री जाति से कुछ कुछ प्राप्त करने की लालसा चन्द्रमा की दशा में बनी रहती है। जिनकी कुण्डली में चन्द्रमा बहुत बलवान हैं, उनकी पूर्णिमा या अमावस्या साधारण नहीं जातींं, जिनका जन्म ही पूर्णिमा या अमावस्या का हो, उनका जीवन साधारण नहीं होता।
पूर्णचन्द्र जहाँ एक तरफ वरदान माने जाते हैं और अत्यंत शक्तिशाली और राजयोग देने वाले माने जाते हैं, तो वहीं चन्द्रमा दूसरी तरफ क्षीण होने पर व्यक्ति को खण्डित व्यक्तित्व का स्वामी बनाते हैं। या तो स्वभाव में उच्च कोटि के संस्कार होंगे या कई बार हीन संस्कार उभरकर सतह पर जाते हैं। काम करने में सनक या पागलपन की खनक दिखाई दे जाती है। चन्द्रमा की दशा आई और यह लोग गये काम से।
चन्द्रमा की महादशा में माँ, माँ तुल्य स्त्रियाँ या प्रेमिका मिलती है। दशा शुरु होते ही मनुष्य को चन्द्रमा की छाया आवृत्त कर लेती है। मनोवेगों से संचालित उसकी क्रियाप्रणाली विशिष्ट हो जाती है। भावनात्मक संवेगों को रोक पाने में वह असफल हो जाता है। दिल, दिमाग पर हावी हो जाता है, संतुलित विचार श्रृंखला, स्थायित्व पर आक्रमण करता है। चन्द्रमा में तूफान लाने की शक्ति है और व्यक्ति को गाफिल करने की। आसन्न संकट को तात्कालिक बाहुबल से जीतने की कल्पना संजोता है और नियति के आगे परास्त हो जाने की परिस्थितियाँ उत्पन्न कर लेता है। मत्र्य लोक में कोई भी शक्ति शाश्वत नहीं होती और नियति के विधान के आगे परास्त हो जाती है।
रोहिणी में चन्द्रमा ने कृष्ण भगवान को अनिंद्य सौंदर्य और सम्मोहन शक्ति से भर दिया था। वे सारे संसार को जैसे मोहिनी निद्रा में ही रखते थे। रोहिणी से उत्कट प्रेम के कारण ही स्वयं चन्द्र को प्रजापति के शाप का शिकार होना पड़ा और वह पाण्डुरोगी हो गये। दक्ष प्रजापति की सत्ताईस कन्याओं में से शेष सभी छब्बीस कन्यायें ईष्र्यालु हो गई थीं। चन्द्रोत्कर्ष व्यक्ति को निन्दा का पात्र बनाता है अगर उसका भाग्य ने साथ दिया तो वह सफल रहता है अन्यथा मायावी शक्तियों से परास्त हो सकता है। अगर जन्मपत्रिका में कर्क राशि केन्द्र में हो तो केन्द्राधिपत्य दोष होता है। यदि चन्द्रमा लग्नेश हों या स्वराशि में केन्द्र में हों, तब केन्द्राधिपत्य दोष का शमन हो जाता है अन्यथा इस दोषयुक्त व्यक्ति को चन्द्रमा की दशा अशुभ सिद्ध होती है।
वृश्चिक राशि के चन्द्रमा या वृषभ राशि के चन्द्रमा व्यक्ति के जीवन में अतिवाद ला देते हैं। वह व्यक्ति अतिवादी होता है और या तो श्रेष्ठ ऊँचाई को प्राप्त करता है या रसातल में चला जाता है, उसे बीच में रहना पसंद नहीं आता। अमावस्या में जन्मे व्यक्ति भी अपने बहुत सारे अच्छे योगों से हाथ धो बैठते हैं और चन्द्रमा से प्राप्त नैसर्गिक गुणों का उनके जीवन में अभाव मिलता है। पूर्णिमा भी चन्द्रमा को अतिशक्तिशाली बनाती है और बहुत सारे योगों का खण्डन-मण्डन अपने आप ही हो जाता है। पूर्णचन्द्र यदि हों और तब उनकी महादशा जीवन में आये तो व्यक्ति को अकल्पित सफलता प्राप्त कराती है। महानिर्वाण के जितने भी मामले हैं, चाहे महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर या कोई और, इन महान आत्माओं का जन्म या निर्वाण पूर्णिमा से संबंधित होता है। वृश्चिक में स्थित चन्द्रमा की सबसे शानदार काट एक ही है कि उसका जन्म पूर्णचन्द्र को हुआ हो। नीच भंगराज योग इतना अधिक फल नहीं देता, जितना अधिक पूर्णचन्द्र देते हैं। ऐसे व्यक्ति के जीवन में चन्द्रमा की कलायें सफलता-असफलता के रूप में देखने को मिलती हैं।
अत्यधिक शक्तिशाली चन्द्र जीवन में रागाधिक्य या रसाधिक्य देते हैं। अधिक ओज, अधिक रस (चाहे पसीना, चाहे पित्त और चाहे आँखों में शानदार आब), अधिक काम, अधिक गति, अधिक चैतन्य, अधिक जल संसाधन और राग रंग से भरा जीवन, यही चन्द्रमा का सार है। महादशा आई और चहँु ओर जीवन में वसंत जाता है। जिसके चन्द्रमा खराब हों, उसका जीवन जलहीन हो जाता है और रेगिस्तान जैसा हो जाता है।
चन्द्रमा अपने आप को छुपा नहीं पाते, अपने दागों को भी छुपा नहीं पाते। उनकी या तो चेष्टाएँ सफल नहीं होतीं या वे परवाह नहीं करते। अगर शुक्र उनको जरा-सा भी सहयोग दे जायें, तो वे कलात्मक अभिव्यक्ति में लज्जा को भी त्याग सकते हैं। अगर ऐसे चन्द्रमा युत शुक्र को मंगल सहयोग प्रदान कर दें, तो निर्लज्ज अभिव्यक्ति धनयापन का साधन बन सकती है। अंग प्रदर्शन सहज कौतूहल हो जाता है। चन्द्रमा उत्कट प्रेम के मामले में महापराक्रमी हैं।

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