Friday, November 25, 2011

वास्तुशास्त्र

प्राचीन अवधारणाएं आधुनि· संदर्भ में
कुरुक्षेत्र
, महाभारत का युद्ध और गीता के उपदेश की भूमि रहा है। मैं जहां से आया हँू अर्थात् जयपुर से, वहां से विराट नगर मात्र 70 कि.मी. दूर है। विराट नगर, राजा विराट की राजधानी थी जहां पाण्डवों ने एक वर्ष का अज्ञातवास बिताया और वहीं से वह पुन: प्रकट हुए। महाभारत युद्ध की पृष्ठभूमि बन चुकी थी और विराट नगर से शुरु हुआ उपक्रम कुरुक्षेत्र के महायुद्ध के रूप में समाप्त हुआ।
महाभारत काल में ज्योतिष और वास्तु को लेकर तीन महान प्रयोग हुए हैं। एक तो तब, जब भगवान श्रीकृष्ण ने मयासुर को पाण्डवों के लिए महल बनाने के लिए आमंत्रित किया। इस महल के मध्य में बने हुए मायावी swimming pool में दुर्योधन भ्रमवश गिर गया और द्रौपदी को उसका उपहास करने का अवसर मिला। द्रौपदी ने कहा - ‘अंधों के अंधे ही पैदा होते हैं।यहीं से दुर्योधन ने द्रौपदी से बदला लेने की ठान ली। प्रयोग यह था कि यादव कुल के आचार्य महर्षि गर्ग संसार के महान वास्तुशास्त्री माने जाते थे। उनसे सलाह नहीं लेकर भगवान श्रीकृष्ण ने मयासुर से क्यों सलाह ली? क्योंकि मयासुर को कहकर कुछ भी कराया जा सकता था। वे असुरों के गुरु थे, शुक्राचार्य के शिष्य थे। मयासुर मायावी विद्याओं के स्वामी थे और स्थापत्य में मायावी प्रयोग कर सकते थे। महर्षि गर्ग भगवान श्रीकृष्ण को मना कर सकते थे या उन्हें ऐसा करने से रोक सकते थे। बृहस्पति और शुक्राचार्य में जो अंतर है वही अंतर गर्गाचार्य और मयासुर में था। भारत में वैदिक स्थापत्य और आसुरी स्थापत्य की परंपरा रही है और इसके प्रमाण उपलब्ध हैं।
दूसरा प्रयोग तब हुआ जब अर्जुन विराट नगर में प्रकट हुए। पाण्डवों पर आरोप लगा कि उन्होंने वनवास के 12 वर्ष और अज्ञातवास का 1 वर्ष पूरा नहीं किया। उस समय के महान आचार्य पाराशर का यह निर्णय था कि इनके 12 वर्ष पूरे हो चुके हैं अत: ज्योतिष के दृष्टिकोण से इनका अज्ञातवास भी पूरा हो चुका है। विराट नगर से मात्र 10-15 कि.मी. दूरी पर पाराशर जी का आश्रम था जो वर्तमान सरिस्का टाइगर सेन्चुरी में अभी भी स्थित है। अनुमान किया जाता है कि पाण्डवों ने अपने कई वर्ष इस वन क्षेत्र में बिताए थे।
ज्योतिष और वास्तु का तीसरा बड़ा प्रयोग इसी कुरुक्षेत्र की भूमि पर हुआ, जहां पहले भीष्म पितामह ने उत्तरायण के सूर्य में इच्छा मृत्यु मांगी तथा अंतिम शैया पर भी उनका सिर दक्षिण में था और पैर उत्तर दिशा में थे जिसे कि अंतिम प्रयाण के लिए शास्त्रों में प्रशस्त बताया गया है। भीष्म ज्योतिष और वास्तुशास्त्र के ज्ञाता थे। महाभारत के 18दिनों के युद्ध में 10 दिन तक वे अकेले सेनापति थे और आखिरी 8दिन अन्य सेनापतियों द्वारा महाभारत युद्ध लड़ा गया।
यही वह भूमि है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने सूर्यग्रहण और राहु की गणना को लेकर संसार का सबसे बड़ा प्रयोग ज्योतिष के क्षेत्र में किया। जयद्रथ वध के दिन पूर्ण सूर्यग्रहण होना था परंतु इसका पता केवल भगवान श्रीकृष्ण को था। अर्जुन ने शपथ ली थी कि अगर वे आज के युद्ध में जयद्रथ वध नहीं कर पाए तो आत्मदाह कर लेंगे। दिनभर के युद्ध में भी अर्जुन जयद्रथ के व्यूह को नष्ट नहीं कर सके। अचानक अंधकार छा गया। घोषित धर्मयुद्ध के कारण सबने युद्ध बंद कर दिया कि अचानक सूर्यग्रहण के बाद पुन: रोशनी हो गई और भगवान श्रीकृष्ण के आदेश से अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया।
यह वह धरती है जहां 18 अक्षौहिणी सेना ने भगवान श्रीकृष्ण के साक्षात दर्शन किए परंतु मंच पर विद्यमान विद्वानों से मेरा एक आग्रह है कि यह बताएं कि मथुरा वंृदावन के लिए यह कथन है कि वहां जिसने एक बार जन्म ले लिया वह कहीं अन्यत्र जन्म नहीं लेता और बार-बार वहीं जन्म लेता है, यह बात कुरुक्षेत्र के लिए क्यों नहीं कही जाती? जिस कुरुक्षेत्र में गीता के उपदेश दिए गए वहां बार-बार महान युद्ध क्यों हुआ?
मैं जनता के लाभ के लिए ज्योतिष और वास्तु के महान प्रयोगों की इस धरती पर कुछ प्रसिद्ध फार्मूले बताने जा रहा हँू। शास्त्रीय विवेचन के आधार पर मैं यह फार्मूले देने जा रहा हँू - हरियाणा संस्कृत एकेडमी का यह महान प्रयास आपको लाभ दिलाने के लिए है अत: इसका लाभ आपको मिलना ही चाहिए।
भीष्म पितामह उत्तरायण के सूर्य में इच्छामृत्यृ चाहते थे। उन्होंने शरशैया पर दक्षिण में सिर उत्तर में पैर यूं ही नहीं किए थे। मृत्यु के बाद प्राण के उध्र्वगमन के लिए यही वह आदर्श स्थिति है जिसका विवरण गरुड़ पुराण में मिलता है। आज भी दाहसंस्कार से तुरंत पूर्व सिर दक्षिण में और पैर उत्तर में कराये जाते हैं। दक्षिण दिशा को जन्मपत्रिका में और वास्तुशास्त्र में सर्वाधिक बलवान माना गया है।
जिसको राज करना हो वह दक्षिण में सोए, दक्षिण में बैठे। वहां अगर कोई नौकर भी बैठे तो उसमें अधिकारलिप्सा जाती है और कुत्ते को भी दक्षिण दिशा में बांधना शुरु कर दें तो वह हिंसक होता है। जिसको घर में, समाज में, गांव में और राष्ट्र में शासन करना हो वह पूरे भूखण्ड के दक्षिण दिशा में बनाए हुए कक्ष में सोए और सिर भी दक्षिण में करे। व्यावसायिक जगह पर भी वह दक्षिण में बैठे और उत्तर की ओर मुंह करके उसकी सीट हो। दक्षिण दिशा में अधिकारलिप्सा है, अधिकारपृच्क्षा है तथा शासन करने की महत्वाकांक्षा है।
जिस हॉल में हम बैठे हैं उसमें यह स्टेज उत्तर दिशा में है। इतना बड़ा यह हॉल बना, पर इसमें शास्त्रीय प्रयोग नहीं किए गए। कोई भी ऑडिटोरियम या कोई कक्षा इस तरह से बनाए जाने चाहिएं कि स्टेज पश्चिम दिशा में हो। अगर वक्ता से श्रेष्ठ लेना है तो उसे पश्चिम में खड़ा करें। जो कुछ भी वक्ता के अंदर हैं वह थोड़ी देर में बाहर जाएगा।
ऐसे विद्वान या कर्मचारियों को जिनसे शह्वह्ल-श्चह्वह्ल ज्यादा लेना हो तो उन्हें पश्चिम दिशा में स्थान दिया जाना चाहिए। मुझे यह कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं है कि सास दक्षिण में सोए और बहू भूखण्ड के पश्चिम दिशा में, तो ना केवल घर अच्छा चलेगा, बहू अपने मन में कोई भी बात नहीं रखेंगी और दिल की बात ज़बान पर जाएगी। वास्तु के छोटे-छोटे नियमों का पालन बड़े-बड़े साम्र्राज्य की अखण्डता को सुरक्षित कर देते हैं। मेरा अनुभव है कि उत्तर दिशा से ईशान कोण के बीच में द्वार या तो स्त्री दूषण लाते हैं या व्यावसायिक घरानों में विभाजन स्त्री पुत्रों के परस्पर विरोध के कारण हो जाता है।
दक्षिण दिशा से नैऋृत्य कोण के बीच में शयन स्थान बताया गया है। इससे वंश आगे बढ़ता है परंतु नैऋत्य कोण से पश्चिम दिशा के बीच में यदि गृहस्वामी की स्थिति हो तो जो भी धनागम होता है, वह दोष पूर्ण होता है और कुल के पतन का कारण बनता है परंतु गृहस्वामी स्वयं यदि दक्षिण में हो तो उनसे कनिष्ठ अन्य लोगों को नैऋत्य कोण से लेकर पश्चिम दिशा के बीच में स्थान दिया जा सकता है। पश्चिम दिशा विद्यार्थियों के लिए और पुत्रों के लिए अच्छी मानी गई है। यहां रहकर विद्याभ्यास करने से विद्यार्थियों को अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं परंतु परीक्षा के आखिरी महीनों में यदि विद्यार्थियों को थोड़े समय के लिए अग्निकोण में भेज दिया जाए तो वे और भी अच्छा परिणाम दिखाएंगे।
पूर्व दिशा मध्य से अग्निकोण की ओर चलते हैं।सत्यनाम के देवता का वास्तु पद है। इस स्थान पर लेबोरेटरी या मेडिटेशन या सत्य के अन्वेषण के लिए किया जा रहा कोई भी कार्य सफल होता है। एक वास्तुचक्र में द्वादश आदित्य की स्थिति देखने को मिलती है। अग्निकोण में भी पूषा, सावित्री और सवित्र देवताओं की स्थिति ऊर्जा या कर्मों के परिपाक के लिए श्रेष्ठ बताई गई है। स्त्रियों को यहां कुछ घंटे काम करना ही चाहिए। इस स्थान पर अग्निहोत्र करना प्रशस्त माना गया है। मैंने इस्कॉन के वल्र्ड टाउनशिप मयापुर जिसका कि प्राचीन नाम नवदीप था, की टाउन प्लानिंग के लिए कुछ सलाह दी थी। मुझे वे लोग जब गंगा और जलांगी नदी के मध्य बसे नवदीप का भ्रमण करा रहे थे तो ठीक दक्षिण दिशा में अग्निहोत्र के लिए यज्ञकुण्ड बने हुए देखे। वास्तुचक्र के ठीक दक्षिण में यम स्थान पर यज्ञ स्थल उचित नहीं है।
मंैने भविष्यवाणी की कि इस स्थान पर यज्ञ करने वाले व्यक्तियों का अहित होगा। मुझे यह तथ्य पता चला कि उनमें से दो ने आत्महत्या कर ली थी। अग्रिहोत्र को अग्निकोण में ही होना चाहिए अन्यथा अनिष्ट परिणाम सकते हैं। अग्नि से जुड़ी एक बात और भी है। देवताओं को यज्ञ भाग प्राप्त कराने के लिए मृत्युलोक में मनुष्य आहुतियां देते थे परंतु वह देवताओं तक नहीं पहुंचती थीं। ब्रह्माजी से शिकायत करने पर उन्होंने अग्निदेव की पत्नी स्वाहा को यह कार्य सौंपा कि स्वाहा नाम के साथ आहुति देने पर वह तत्संबंधी देवताओं के पास पहुंच जाएं। यज्ञ आहुति को स्वाहा शब्द के उच्चारण के साथ ही देना चाहिए। अग्निकोण को कर्मों के परिपाक के लिए श्रेष्ठ माना जाता है और लौकिक कर्मों से भी ऊर्जा संकलन इस स्थान से किया जाता है परंतु यह शयन स्थान नहीं है।
कुछ देवताओं का व्यक्तिगत चरित्र बड़ा विचित्र है। ईशान कोण से पूर्व दिशा के मध्य मेघों के देवतापर्जन्यका वास्तुपद है। वहां अगर द्वार हो तो मैंने आमतौर से 5-6कन्याओं का जन्म होते देखा है। यदि पुत्र प्राप्ति चाहिए तो हम इस द्वार को बंद करा देते हैं और उत्तर दिशा से वायव्य कोण के मध्य मुख्य नाम के देवता के स्थान पर द्वार करा देते हैं। पुत्र जन्म के लिए जो पूजा-पाठ कराया जाता है उसमें कृष्ण से संबंधित पूजा-पाठ प्रधान है।
चरक-संहिता में मोर पंख जिसके शीर्ष पर चंद्रमा हों (भगवान श्रीकृष्ण के सिर पर जो होता है) की भस्म का उल्लेख आता है जिसे आयुर्वेदाचार्य दिया करते हैं। संतान उत्पत्ति का भगवान श्रीकृष्ण से संबंध है। जिन मुख्य नाम के देवता की चर्चा मैंने की है वे निघंटु शास्त्र में विश्वकर्मा हंै, ये सूर्य के ससुर हैं। मुख्य नाम के देवता धन और संतान दोनों देते हैं।
वायव्य कोण में ही एक अन्य शक्ति छुपी हुई है। इस स्थान में उच्चाटन की शक्ति है। किसी युवा पढऩे वाले बच्चे को यदि सलेक्शन कराके बाहर भेजना हो तो यह स्थान उत्तम है। विवाह के योग्य कन्याएं यहां शयन करें तो शीघ्र विवाह हो सकता है। मैंने बहुत सारे उद्योगों में तैयार माल को यहां रखवाया तो वह शीघ्र ही बिक गया। यह इस बात का प्रमाण है कि पृथ्वी के कण-कण में जीव है और वायव्य कोण में चाहे जीवित व्यक्ति हो, चाहे पदार्थ हो, सबका उच्चाटन हो जाता है।
दक्षिण दिशा में तो स्थायित्व की शक्ति है और अगर वहां कोई वस्तु रखी जाए तो वह घर से बाहर ही नहीं निकलती। आप अपने घरों में देख सकते हैं कि दक्षिण से दक्षिण पश्चिम के बीच में चाहे काठ-कबाड़ ही हो, बहुत समय तक वहां पड़ा ही रहता है। उत्तर दिशा का अलग चरित्र है। धर्मक्षेत्र है। वहां रखी दवाइयां ज्यादा काम करती हैं। इस स्थान में आमतौर से शांति होती है और जो वहां सोता है उसकी उन्नति होती है।
वास्तुचक्र के 45 देवताओं के अलावा चक्र से अतिरिक्त कुछ देवताओं की स्थापना कराई जाती है। वास्तुचक्र के एक-एक देवता वरदान देने में समर्थ हैं और एक व्यक्ति को कितनी ही लौकिक आध्यात्मिक उपलब्धि करा सकते हैं। हम लोग यदि बहुत कुछ भी नहीं करा सके तो कम से कम अपने भूखण्डों को खाली नहीं छोड़ें। भूखण्ड निक्रिष्य नहीं होते या तो उत्थान कराते हैं या पतन। मेरी तो यह मान्यता है कि जन्म लेने के बाद वायु, जल और भोजन की उपलब्धि मनुष्यों की हैसियत में वेध उत्पन्न नहीं करती परंतु भूमि की उपलब्धि से मनुष्य छोटा-बड़ा बनता है।
भूमि जन्म-जन्मातर के अभुक्त कर्मों का संश्लेषण करती है और व्यक्ति को उन कर्मों का परिणाम दिलाती है अत: इसे खाली नहीं छोड़कर कम से कम इतना करना चाहिए कि भूखण्ड के चारों ओर एक बाउण्ड्री बनाकर उसमें वास्तु मास्टर प्लान के आधार पर कम से कम एक कमरा बना लें और भूमि पूजा करा लें इससे वह भूखण्ड सक्रिय हो जाएगा और आपको शुभ परिणाम देने लगेगा।
वास्तुचक्र में कोई एक देवता नहीं है बल्कि चक्र के अंदर 45 देवताओं की स्थिति मानी गई है। 45 देवताओं के अलावा 4 कोणों पर 4 राक्षसनियाँ हैं परंतु उनकी देव योनि मानी गई है। सबसे बीच में ब्रह्मा हैं जिनके स्थान पर यदि अग्नि इत्यादि का स्थापन किया जाए तो कुल नाश हो सकता है।
ज्योतिष और वास्तु वेदंागों के भाग हैं। वेदांग वेदों के क्रियात्मक पक्ष हैं और रोजगारपरक विद्याएं वेदों में ले आई गई हैं। वास्तुशास्त्र स्थापत्य वेद है और उसे उपवेद की संज्ञा भी दी गई है। इन्हें साधारण रूप में नहीं लेना चाहिए बल्कि इनका लाभ उठाना चाहिए।
मैं हरियाणा संस्कृत एकेडमी को धन्यवाद देता हँू कि उन्होंने मुझे यहाँ बुलाया। यहां कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के वाइस चान्सलर भी हैं, अमर-उजाला के संपादक हैं तथा हरियाणा सरकार के उच्च प्रशासनिक अधिकारी श्री खण्डेलवाल जी भी हैं। मैं एकेडमी के निदेशक इस कार्यक्रम के सूत्रधार श्री मोहन मैत्रेय से अनुरोध करूंगा कि 30-35 साल के अनुभव वाले विद्वानों से लेना है तो उनकी शोध पर आधारित लंबी वर्कशॉप करायें। यहां योग के विशेषज्ञ महन्त आत्माराम जी भी उपस्थित हैं, पटियाला में इनका आश्रम है। योग के क्रियात्मक पक्ष का भी ज्ञान होना आवश्यक है।
मैं जयपुर में रहता हँू और हरियाणा की तरह ही राजस्थान संस्कृत अकादमी भी संस्कृत और उसके प्रचार-प्रसार तथा पौराणिक शिक्षण के लिए अनुदान देती है। मैंने स्वयं ने अजमेर विश्वविद्यालय के ज्योतिष, वास्तु, कर्मकाण्ड आदि के पाठ्यक्रम बनाए हैं परंतु तत्कालीन वाइस चान्सलर श्री मोहनलाल जी पंडित ने मुझे बताया कि विद्यार्थी कम रहे हैं। सरकारी पाठ्यक्रमों में जितनी ट्रेनिंग एम.बी.बी.एस. के विद्यार्थियों को दी जाती है उसके अनुपात में पौराणिक पाठ्यक्रम के विद्यार्थियों को ट्रेनिंग नहीं दी जाती है। यही कारण है कि ऐसे पाठ्यक्रमों में विद्यार्थियों का उत्साह नहीं रहता और जब वह डिग्री लेकर समाज में आते हैं, तब काम नहीं मिलता।
तमाम विद्याएं इस श्रेणी की हैं कि उनके विद्वानों को काम की कमी नहीं रहती है परंतु यहां उल्टा है। वे ही विद्यार्थी जब किसी योग्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं और उनके साथ गुरु का नाम जुड़ता है तब जनता उनका विश्वास करती है और उनके पास जाने लगती है। विद्या को आधुनिक संदर्भ में परिभाषित करने की भी आवश्यकता है। इनमें शोध कार्य को महत्व देने की आवश्यकता है।
मेरे से पूर्व वक्ता श्री अंगिरस जी ने धर्म की चर्चा की है। वास्तु के क्षेत्र में मेरा यह कहना है कि वास्तु भौतिक पिण्डों से नहीं है बल्कि धर्म, दर्शन और आध्यात्म की प्रतिष्ठा उसमें है। हमें अपनी बातों को कहने के लिए बड़ा मंच चाहिए और ऐसे लोगों के बीच में कहना है जो संस्कृत नहीं जानते इसलिए इसके प्रचार-प्रसार के लिए सभी वर्गों को जोडऩा आवश्यक है।
मैं सबसे अनुरोध करता हँू कि केवल श्लोक पढ़कर अनुवाद करने वाले लोगों को ना बुलाकर उन सबको बुलावें जिन्होंने शोध किया हो। हरियाणा संस्कृत एकेडमी और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में इसमें पहल कर सकते हैं।

किस दशा का है इन्तजार ?-बुध

चंद्र तनय बुध अत्यंत चपल, तीव्र बुद्धि के स्वामी और वैश्यवृत्ति को देने वाले हैं। हमारे सूर्य के सबसे नजदीक बुध खगोल जगत में अति विशिष्ट हैं। यह आंतरिक ग्रह कहलाते हैं क्योंकि इनकी कक्षा-पृथ्वी की कक्षा और सूर्य के बीच में थी। यह दो राशियों के स्वामी हैं - मिथुन और कन्या। मिथुन राशि का रहने का स्थान शयनकक्ष बताया गया है जबकि कन्या राशि के रहने का स्थान अन्न और जल के स्थान माने गये हैं। बुध ग्रह कन्या राशि में उच्च के होते हैं और कन्या राशि में 15 अंश पर परमोच्च स्थिति में होते हैं। मिथुन और कन्या राशि को मनुष्य जाति में गिना जाता है। मिथुन राशि उभयोदय है तथा कन्या राशि शीर्षोदय है। उभयोदय का अर्थ यह है कि राशि शुरु और अंत दोनो में ही सक्रिय रहती है। बुध ग्रह स्वयं भी उत्तरायण और दक्षिणायन दोनों अयनों में समान रूप से रहते हैं। मिथुन और कन्या दोनों ही द्विस्वभाव राशियां हैं और समय के अनुसार अपना रुख बदल सकती हैं। मिथुन की दिशा पश्चिम है तो कन्या की दक्षिण अर्थात् कन्या राशि बलवान होगी तो व्यक्ति दक्षिण दिशा में जाएगा या लाभ होगा।
बुद्धि ग्रह होने के कारण यह पांडित्य देते हैं। कला निपुणता, विद्वानों द्वारा स्थापित बुद्धि, मामा, चतुराई, धार्मिक कार्य, सत्य और असत्य का निर्वहन, आमोद-प्रमोद की जगह, शिल्पशास्त्र, मित्र व युवा व्यक्ति बुध के विषय होते हैं। यह सुबह और शाम जब देखते हैं तो अत्यंत चमकीले दिखते हैं। जिस ग्रह के साथ इनके योग बनते हैं तो वह योग इनके कार्यकौशल को बढ़ा देते हैं।
बुध का रंग हरा है। इनकी कांति नई धूप की तरह है। कफ-पित्त, वात सभी बुध के विषय हैं। स्नायु मंडल पर बुध का अधिकार है। इनका अंग सौष्ठव बहुत सुन्दर है। बुध हंसी-मजाक पसंद करते हैं और किसी भी बात में हास का मौका नहीं छोड़ते। शरीर की त्वचा पर बुध का अधिकार है। बुध पीडि़त होंगे तो त्वचा पीडि़त होगी या त्वचा संबंधी कोई दोष होंगे। बुध जन्मकुण्डली में अच्छे होंगे तो सौम्य होंगे व कांतिमान होंगे। बुध का नेत्रों पर भी असर है और बुध से प्रभावित व्यक्ति की आंखें लंबाई लिए हुए होंगी या व्यक्ति की आंखों में प्रबल आकर्षण होगा। बुध को हरे वस्त्र पसंद हैं और भोजन में शाकाहार को प्रमुखता देते हैं। बुध किसी भी बात को अत्यंत शीघ्र समझ लेते हैं और उसे स्मृति में रखते हैं। प्रत्युत्पन्न मति बुध की विशेषता है। बुध कवियों को आशु कवि बना देते हैं।
बुध बलवान हों तो व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में लाभ कमा सकते हैं। बुध जिस ग्रह के साथ योग बनायेंगे, उस ग्रह के कार्य-कौशल को बढ़ा देंगे। बुध विष्णु मंदिर के अधिपति हैं या जहां विद्वान लोग बैठते हों या जहां मनोरंजन होते हैं तथा जहां ज्योतिषी विराजमान हों। बुध की स्वयं की दिशा उत्तर है या वे उत्तर दिशा में दिग्बली होते हैं। बुध से कुछ और विषयों पर विचार किया जा सकता है जैसे- ग्वाला, विद्वान, शिल्पी, गणितज्ञ, गरुड़, चातक, तोता, बिल्ली आदि। सूर्य और शुक्र, बुध के मित्र बताए हैं। मंगल, बृहस्पति और शनि समभाव रखते हैं और चंद्रमा बुध के शत्रु हैं।
यूनानी मिथकों में सूर्य और बुध के बीच में भी एक अन्य ग्रह की चर्चा व दावे बहुत वर्षों तक चलते रहे। ऐसी चर्चा 19वीं शताब्दी में भी खूब चली परंतु अभी तक उपलब्ध ज्ञान के आधार पर बुध, सूर्य के सबसे नजदीक ग्रह हैं और इनके केन्द्र लौह तत्वों पर आधारित हैं।
बुध करीब 20-25 दिन एक राशि में रहते हैं। इनकी जाति शूद्र बताई गई है और यह राजसी गुणों के युक्त हैं। कुछ विद्वान बुध को वैश्य भी मानते हैं। अगर संतान गोद ली जाए तो यह मानकर चलिए कि बुध की उसमें भूमिका है। बुध में पृथ्वी तत्व अधिक है। बुध अगर पाप ग्रह के साथ में हैं तो पाप फल देंगे, बुध शुभ ग्रह के प्रभाव में हैं तो शुभ परिणाम देंगे। बुध को नपुंसक माना गया है। बुध के अधिष्ठाता देव विष्णु हैं। मूंग की दाल, मगध प्रदेश और पन्ना बुध के विषय हैं। धातुओं में सीसा तथा हरे वस्त्र बुध के विषय हैं और इनका स्वास्थ्य मिला-जुला रहता है अर्थात् छ: रसों से मिश्रित या सम्मिलित प्रभाव बुध में देखे जाते हैं। शरीर का दाहिना भाग बुध से संबंधित है और अगर बुध के कारण चिन्ह मिलें तो वह बगल में मिलते हैं। जिन वृक्षों पर पत्ते बहुत हों, उन पर बुध का आधिपत्य होता है। बिना फल के वृक्ष भी बुध के विषय हैं।
बुध शुभ ग्रहों के साथ हों तो अत्यंत शुभ फल प्रदान करते हैं, पाप ग्रहों के साथ हों तो पाप फल देते हैं। कई बार बुध उत्प्रेरक का काम करते हैं और फलों में कई गुना वृद्धि कर देते हैं।
सूर्य के साथ यदि बुध योग बनाते हैं उसमें व्यक्ति गणितज्ञ, कार्य कुशल होता है वैज्ञानिक, इंजीनियर या ज्योतिषी बनता है। यदि बुध, चंद्रमा के साथ मिलें तो व्यक्ति को डॉक्टर, वैद्य या रसायनों और जड़ी-बूटियों का काम करने वाला बना देते हैं। फार्मास्युटिकल लाईन भी चंद्रमा व बुध के सहयोग से ही मिलती है। चंद्रमा या बुध एक-दूसरे से युति करें, एक-दूसरे पर दृष्टिपात करें या एक-दूसरे की राशियों में बैठें या नक्षत्रों में बैठें तो व्यक्ति के डॉक्टर बनने के योग बलवान हो जाते हैं। मंगल-बुध के साथ मिलते हैं तो न्यायकारी कार्य में ले जाते हैं। न्यायाधीश बनें या वकील या कंपनियों के क्रद्गश्चह्म्द्गह्यद्गठ्ठह्लड्डह्लद्ब1द्ग जो कंपनियों के तर्क प्रस्तुत करते हैं, मंगल व बुध के परस्पर मिलने का ही परिणाम है। वकालत के कार्य में व्यवसाय कौशल बुध से ही आता है। मंगल, बुध युति वाले अकाट्य तर्क प्रस्तुत करते हैं। बुध यदि बृहस्पति के साथ मिल जाएं या युति करें तो व्यक्ति वेदों के कार्यों में, धार्मिक कार्यों में, आध्यात्म कार्यों में या वित्त संबंधी कार्यों में कुशल होता है। बैंक, वित्तीय प्रबंधन, कर्म-काण्ड या अन्वेषण कार्य बुध और बृहस्पति के सम्मिलित परिणाम हैं। शनि और बुध युति करें तो शरीर का तंत्रिका तंत्र, आशा-निराशा तथा शरीर में संधि स्थलों पर गहरा असर देखने को मिलता है। न्यूरोलॉजी से संबंधित रोग होते हैं। यदि शनि और बुध बलवान हों या युति करते हों तो न्यूरोलॉजी का डॉक्टर या दवाइयां बनाने वाले होते हैं। शनि महादशा की बुध अन्तर्दशा में या बुध महादशा की शनि अन्तर्दशा में यदि दुर्घटना हो तो निश्चित रूप से शरीर की संधियों पर असर आता है।
कहीं-कहीं यह कथन है कि बुध को अस्त होने का दोष नहीं लगता पर व्यवहार में ऐसा देखने में नहीं आता। बुध, सूर्य से जितने नजदीक होंगे उतना ही सुंदर बुधादित्य योग होगा। तब बुध के व्यक्तिगत गुणों में कमी आ जाएगी परंतु बुधादित्य योग बहुत सुंदर फल देगा। बुध अस्त होने पर प्राय: एलर्जी, जुकाम-नजला इत्यादि, त्वचा के रोग देखने को मिलते हैं। शरीर की कांति पर असर पड़ता है। स्ह्वठ्ठड्ढह्वह्म्ठ्ठ और स्ह्वठ्ठह्यह्लह्म्शद्मद्ग बुध के कारण होते हैं। अगर बुध अच्छे हैं तो व्यक्ति कवि, गायक कलाकार या चित्रकार इत्यादि बन सकता है। सबसे गहरा असर वाणी पर आता है। यदि बुध पाप प्रभाव में हों तो व्यक्ति कर्कश या खराब बोलने वाले होते हैं। यदि बुध अच्छे हों और उन पर शुभ प्रभाव हो तो व्यक्ति मधुरभाषी और संगीत में उत्तम होता है। तुरंत जवाब देना या रेडियो, टी.वी. पर काम करने वाले कलाकार या कॉलसेन्टर पर कार्य करने वालों पर भी बुध की कृपा बहुत जरूरी है।
उपाय करने वाले जितने भी लोग हंै अगर उनके बुध बलवान हैं तो वे पैसा कमा सकते हैं। उदाहरण के लिए - चंद्रमा तो औषधिया हैं और बुध वैद्य या डॉक्टर हैं। अगर चंद्रमा बलवान होंगे तो औषधियां अच्छी प्राप्त होंगी। बुध बलवान होंगे तो डॉक्टर अच्छा मिलेगा। यदि दोनों बलवान हुए तो औषधियां और डॉक्टर अच्छे मिलेंगे। ऐसे व्यक्ति को हमेशा अच्छा और समय पर इलाज मिलता है। यदि किसी की जन्मकुण्डली में चंद्रमा और बुध एक साथ बैठे हों या एक-दूसरे को देख रहे हों तो वह अच्छा डॉक्टर बन सकता है। यदि बुध, चंद्रमा के नक्षत्र में या चंद्रमा, बुध के नक्षत्र में हों तो वह अच्छी दवाईयां दे सकता है। अगर डॉक्टर नहीं बना तो वह जड़ी बूंटिया बाँटेगा। यह भी हो सकता है कि अच्छा ज्योतिषी बन जाए और उसके बताए गए उपाय सफल हो जाएं। स्शद्यह्वह्लद्बशठ्ठ देने वाले सभी वर्ग चंद्रमा और बुध से प्रभावित हैं। चंद्रमा श्रेष्ठ कल्पनाएं देते हैं और बुध प्रखर बुद्धि। दोनों मिलने के बाद गलती नहीं करते। जो लोग बहुत आगे तक की सोचते हैं उन्हें बुध के साथ चंद्रमा का सहयोग मिलना जरूरी है।

मैनेजमैंट गुरु - कृष्ण

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।1।।
परित्राणाय साधू मं विनाशाय चदुष्कुताम्।
धर्म संस्थापनार्र्थाय सम्भवामि युगे युगे।।2।।
श्रीमद्भगवतगीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि जब-जब विश्व में धर्म की हानि होगी, तब-तब अधर्म का नाश करने तथा धर्म की स्थापना हेतु मैं पृथ्वी पर अवतार लूंगा। स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण का जन्म विश्व में फैली दुव्यवस्था को ठीक करने के लिए ही हुआ था। इसे तकनीकी भाषा में 'crisis management' कहते हैं यानि कि ‘आपदा प्रबंधन’। क्या बिना प्रबंधन तकनीक जाने कोई प्रबंधन कर सकता है? यदि श्रीकृष्ण लीला की घटनाओं का विश्लेषण किया जाए तो उनमें से प्रत्येक आधुनिक मैनेजमेंट गुरुओं के लिए शोध का विषय हो सकती है। धर्मग्रंथों में श्रीकृष्ण की लीलाओं को अलौकिक मानते हुए उन्हें ‘ईश्वरीय’ मानकर उनका वर्णन किया गया है परंतु ऐसी प्रत्येक लीला वास्तव में श्रीकृष्ण द्वारा तार्किक ढंग से घटनाक्रम को अपने पक्ष में मोडऩे की कार्यवाही थी, जिससे सफलता का प्रतिशत शत-प्रतिशत था।
भारतीय संस्कृति के महानायक कृष्ण-जितने रंग इनके व्यक्तित्व के हैं उतने और किसी के भी नहीं हैं, कभी माखन चुराता नटखट बालक तो कभी प्रेम में आकंठ डूबा हुआ प्रेमी जो प्रेयसी की एक पुकार पर सबके विरुद्ध जाकर उसे भगा ले जाता है। कभी बांसुरी की तान में सबको मोहने वाला तो कभी सच्चे सारथी के रूप में गीता का उपदेश देता ईश्वर। ऐसे ना जाने कितने ही रंग कृष्ण के व्यक्तित्व में समाए हैं। कृष्ण की हर लीला, हर बात में जीवन का सार छुपा है। कृष्ण के जीवन की हर घटना में एक सीख छुपी है।
महाभारत की संपूर्ण कथा में अनेक अवसरों पर श्रीकृष्ण ने प्रबंधन की विभिन्न तकनीकों का परिचय दिया। युधिष्ठिर के राजतिलक के अवसर पर आद्य-पूज्य के रूप में श्रीकृष्ण का नाम सुझाए जाने पर शिशुपाल रुष्ट होकर गाली देने लगे। श्रीकृष्ण ने उसकी सभी गालियों को धैर्यपूर्वक सुना तथा उसे बताया कि वे उसके सौ अपराधों तक उसे क्षमा करेंगे। इसके बाद उसकी हर गाली के साथ ही वे शिशुपाल को सावधान करते रहे तथा सौ गालियां पूरी होने पर उन्होंने उसे शांत होने को कहा परंतु उसके न रुकने पर श्रीकृष्ण ने अपने चक्र से उसका मस्तक काट दिया। प्रबंधन में रहते हुए प्रबंधक को उद्दण्ड तथा अक्षम सहायक को भी क्षमा करना चाहिए तथा बार-बार उसे आगाह करते रहना चाहिए परंतु जब वह सीमा पार करने लगे और दण्ड देने के अतिरिक्त कोई चारा न हो तो ऐसा दण्ड दिया जाना चाहिए जो दूसरों के लिए भी उदाहरण का काम करे।
प्रशासक/प्रबंधक को कार्य हित को देखते हुए जहां विशाल हृदय होना चाहिए, वहीं आवश्यकता पडऩे पर दण्ड देते समय अनुशासन को बनाए रखने के दृष्टिकोण से किसी तरह की कोमलता भी नहीं दिखानी चाहिए। साथ ही जनसामान्य में यह संदेश जाना चाहिए कि कठोर दण्ड केवल विधिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए दिया गया है, न कि किसी व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए। वास्तव में ऐसा ही हुआ था और युधिष्ठिर के राजतिलक की सभा में अव्यवस्था फैलाने वाले तत्व शांत होकर कार्यवाही में सहयोग करने लगे थे।
अभिमन्यु वध के उपरांत अर्जुन ने -‘कल सायंकाल तक या तो जयद्रथ का वध करूंगा अन्यथा जलती हुई चिंता पर चढ़ जाऊंगा’ की भीषण प्रतिज्ञा की। दुर्योधन की रक्षा पंक्ति को भेंद न पाने के कारण अर्जुन आत्मदाह के लिए तैयार था। तमाशा देखने के लिए जयद्रथ भी वहां था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि जिस गाण्डीव को तुमने आजीवन अपने साथ रखा है, उसे हाथ में चिता पर भी लिए रहो। इतने में ही सूर्य की किरण चमकी और ज्ञात हुआ कि अभी सूर्यास्त नहीं हुआ है। श्रीकृष्ण के इशारे पर अर्जुन ने जयद्रथ का सिर काट दिया। जयद्रथ को अपने पिता से वरदान प्राप्त था कि जो उसका सिर काटकर भूमि पर गिराएगा, वह मृत्यु को प्राप्त होगा। श्रीकृष्ण को इस शाप का भी ज्ञान था और उन्होंने अर्जुन से कहा कि तीर मारकर जयद्रथ के सिर को निकट ही तपस्या कर रहे उसके पिता के पास पहुंचा दे। जयद्रथ के पिता का ध्यान भंग हुआ और उसने प्रतिक्रिया वश अपनी गोद में पड़े जयद्रथ के सिर को भूमि पर फेंक दिया तथा उसकी भी मृत्यु हो गई। श्रीकृष्ण ने गणना से यह जान लिया था कि उस समय पूर्ण सूर्यग्रहण पडऩे वाला है तथा वे जयद्रध के पिता के वरदान के विषय में भी जानते थे। किसी भी प्रबंधक के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने क्षेत्र के अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों के विषय में जितनी अधिक जानकारी रखेगा, वह उतना ही सफल प्रबंधन तथा अपनी टीम का मार्गदर्शन कर सकेगा। ‘knowledge is power’ के आधुनिक सूत्र का यह ज्वलंत उदाहरण है।
प्रबंधन में प्राय: चुनौती आती है, जब बहुत सारे लोग अपनी-अपनी प्रतिष्ठा और अपने अहं को लेकर अड़ जाते हैं तो समस्या जटिल हो जाती है। सभी की प्रतिष्ठा बनी रहे तथा समस्या का समाधान भी हो जाए, यह कुशल प्रबंधक के बस का ही काम होता है। श्रीकृष्ण ने अपनी इस प्रतिभा का अनेक अवसरों पर परिचय दिया। युद्ध में एक अवसर पर घायल होने पर युधिष्ठिर ने अर्जुन के गांडीव को बुरा-भला कहा। अर्जुन का यह प्रण था कि जो उसके गाण्डीव को अपशब्द कहेगा, वे उसका वध कर देंगे। जब अर्जुन संध्या के समय युद्ध शिविर में वापस आए तो उन्हें भी युधिष्ठिर के इस क्रोध का पता चला। प्रण के अनुसार उन्हें गाण्डीव का अपमान करने वाले का वध करना था परंतु बड़े भ्राता की हत्या? इस धर्म संकट में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि - ‘‘वे महाराज युधिष्ठिर का अपमान करें क्योंकि छोटे द्वारा बड़े का अपमान उसकी हत्या के समान ही होता है।’’ तत्पश्चात अर्जुन ने महाराज के चरणों पर गिरकर क्षमा मांग ली तथा भविष्य में और शक्ति के साथ युद्ध करने का प्रण लिया। इस प्रकार सभी के अहं तथा प्रतिज्ञाओं की रक्षा हो सकी तथा विपरीत परिस्थितियों को उन्होंने सकारात्मक ऊर्जा (Positive energy) में बदल दिया।
महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन का सारथी होना स्वीकार किया था। साथ ही अस्त्र न उठाने का वादा भी किया था परंतु युद्ध के छठे दिन जब भीष्म पितामह पाण्डव सेना के दस सहस्त्र सैनिकों का प्रतिदिन वध कर रहे थे और पाण्डवों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर रथ का पहिया उठाकर भीष्म पर आक्रमण का प्रयास किया। अर्जुन ने दौड़कर श्रीकृष्ण को पकड़ा तथा अधिक सावधानी से युद्ध करने का प्रण किया। नेतृत्व क्षमता का यह अप्रतिम उदाहरण है। जब अपना दल शिथिल हो रहा हो तथा कार्य न कर पा रहा हो, तब नेता का यह कत्र्तव्य है कि वह व्यक्तिगत मानसिकता से ऊपर उठकर किसी भी सीमा तक प्रयास करें ताकि उसके साथी उससे प्रेरणा लेकर बेहतर प्रदर्शन करें।
कर्ण ने युद्ध में अर्जुन पर शक्ति का प्रयोग किया, तब वासुदेव ने अपने बल से रथ को दो अंगुल धरती में दबा दिया तथा कर्ण की शक्ति अर्जुन का शिरस्त्राण लेकर चली गई। अपने विपक्षी के बलाबल की पूरी जानकारी होना तथा समय रहते उससे प्रतिरक्षा के उपाय करना भी उत्तम प्रबंधन का अंग है। श्रीकृष्ण ने यह करके प्रबंधन के इस आयाम में अपनी सिद्धहस्तता का परिचय दिया।
श्रीकृष्ण का एक नाम ‘रणछोड़’ भी है। भागवत में कथा है कि कालनेमि का बल देखकर श्रीकृष्ण ने युद्ध का मैदान छोड़ दिया था तथा रणक्षेत्र छोड़कर चले गए थे। सामान्य रूप से इसे कायरता कहा जाएगा परंतु यहां श्रीकृष्ण ने सिद्ध किया कि यदि अपने संसाधन कम हों तो अपनी बची हुई शक्ति की रक्षा करके भविष्य में उस स्थिति से निकला जा सकता है। प्रबंधन के इस मूलभूत सिद्धांत का पालन न करके मध्यकालीन भारत के राजा अनेकों बार विदेशी आक्रांताओं से पराजित हुए तथा देश लंबे समय तक विदेशी शासन से कराहता रहा। यदि श्रीकृष्ण की ‘Tectical ssetreat’ की नीति इन शासकों ने अपनाई होती तो संभवत: भारत का इतिहास अलग ही होता।
श्रीकृष्ण की बाल्यावस्था की घटना, जिसके कारण वे ‘गिरिघट’ कहलाए, उनके आपदा प्रबंधन तथा पर्यावरण के प्रति उनकी चिंता को इंगित करती है। कथा यह है कि गोवर्धनवासियों द्वारा पूजा न करने से इंद्रदेव रुष्ट हो गए तथा उस क्षेत्र में उन्होंने भीषण वर्षा कर दी। श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को इस अतिवृष्टि से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका पर छत्र की भांति उठा लिया तथा सभी ग्रामवासियों की रक्षा की। श्रीकृष्ण ने ही गोकुलवासियों को गोवर्धन पर्वत का पूजन करने को कहा था क्योंकि वह पर्वत उस क्षेत्र के पर्यावरण की रक्षा करता है और वर्षा होने पर भी गोवर्धन पर्वत से ही ग्रामीणों की रक्षा भी हुई। श्रीकृष्ण पर्यावरण संरक्षण तथा उससे होने वाले लाभों से भली-भांति परिचित थे। अतिवृष्टि से रक्षा करके श्रीकृष्ण ने समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व की पूर्ति की। सर्वागीण प्रबंधन का एक आयाम यह भी है कि वह समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का समुचित निर्वहन भी करें।
महाभारत के युद्ध के आरंभ में ही पितामाह, गुरु, ज्ञातिजन तथा संबंधियों को देखकर अर्जुन के अंग शिथिल हो गए और उसने युद्ध करने से इन्कार कर दिया। यदि आपकी टीम का मुख्य कार्यकत्र्ता ही कार्य करने में स्वयं को अक्षम महसूस करें तो निश्चयही यह चिंता का विषय होगा। श्रीकृष्ण की प्रबंधकीय कुशलता का सर्वोत्तम प्रदर्शन ‘श्रीमद्भागवतगीता’ के उपदेश के रूप में हुआ है। भारतीय धर्मग्रंथ होने के साथ ही गीता जहां भारतीय षड्दर्शन का कोष है, वहीं गीता अपने संसाधन को प्रेरित करने (resource mobilisation) की विधियों का भी खजाना है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ‘निष्काम कर्म’ का उपदेश दिया, वह वास्तव में परिणामपरक result orianted के स्थान पर कार्यपरक (test oriented) दृष्टिकोण अपनाने को कहते हैं। यदि कार्य को पूर्ण करने में मनोयोग से प्रयास करें, जो हमारे वश में हैं, तो परिणाम की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह हमारे वश में नहीं है। इसमें अन्तर्निहित तो यह है कि सफलता तो कार्य को भली-भांति करने पर मिल ही जाएगी। जन्म-मृत्यु, पुनर्जन्म, ईश्वर, कर्म, प्रारब्ध, सांख्य-योग, मीमांसा, द्वैत-अद्वैत आदि दार्शनिक पदों का प्रयोग श्रीकृष्ण ने अपने उपदेश में किया। इन्हें jargons कहा जाता है। मेरे विचार में श्रीमद्भागवतगीता विश्व का सबसे लंबी तथा सबसे प्रभावशाली प्रेरणात्मक उपदेश (motivational speech) है। ‘तस्मात उत्तिष्ठ कौन्तेय, युद्धाय कृत निश्चय:’ कहकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो प्रेरणा दी, उसी के बल पर पाण्डव 18दिन के युद्ध में विजय प्राप्त कर हस्तिनापुर का राज्य जीत सके। इस संपूर्ण प्रकरण में बहुत कुछ दांव पर लगा था इसीलिए श्रीकृष्ण ने इस अवसर पर अपने प्रबंधन कौशल का प्रयोग पर दिया। गीता न केवल भारतीयों का धार्मिक गं्रथ है बल्कि ऐसा जीवनदर्शन है जो पस्त मनोबल वालों को जाग्रत करने का कार्य करता है। वह अकर्मण्यता की बात कहीं नहीं करते इसीलिए वे परम अलौकिक, ईश्वर तुल्य पूजनीय हैं। सामान्य शब्दों में कहा जाए तो वे प्रबंधन के आदर्श हैं। शिथिल मनोबल वाले सिपहसालारों को इस सीमा तक प्रेरित करना ही कि वे उठकर युद्ध करें तथा अपने से अधिक शक्तिशाली शत्रु को मार गिराएं। किसी बहुत बड़े नेता और प्रबंधक के ही वश की बात है।
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद अश्वत्थामा ने अर्जुन से युद्ध के समय बचने के लिए उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया ताकि पाण्डवों का समूल नाश हो जाए। उस समय श्रीकृष्ण ने गर्भस्थ शिशु की ब्रह्मास्त्र से रक्षा की तथा जन्म के समय मृत शिशु ‘परीक्षित’ को पुनर्जीवित भी कर दिया। वे स्वयं विष्णुजी के अवतार थे परंतु संपूर्ण जीवन में उन्होंने कहीं भी विधाता के बनाए नियमों को नहीं तोड़ा। पाण्डवों के वंश का समूल नाश बचाने के लिए ही उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग किया। प्रबंधन में भी सर्वोच्च शक्ति को अपने विशेषाधिकार का प्रयोग विरलतम स्थिति में ही करना चाहिए तथा संगठन के सामान्य संचालन के लिए जो नियम बने हैं, उनमें समय-समय पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए अन्यथा संपूर्ण व्यवस्था नष्ट हो जाएगी। श्रीकृष्ण ने इस सिद्धान्त का अविकल पालन किया ताकि विधाता द्वारा रचित सृष्टि में अव्यवस्था न फैले।
युद्ध के उपरांत उन्होंने देखा कि उनकी यादव सेना का अहंकार बहुत बढ़ गया है। श्रीकृष्ण ने ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दीं कि घमंडी और बलशाली यादव योद्धा आपस में ही लड़कर मर गए। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने यह सिद्ध कर दिया कि सर्वोच्च प्रबंधक का सर्वाधिक प्रिय और व्यक्तिगत अनुचर भी यदि अनुशासनहीन तथा उद्दंड हो रहा है तो उसे भी समुचित दण्ड देने में प्रबंधक को किसी प्रकार का पक्षपात नहीं करना चाहिए। व्यक्तिगत रुचि-अरुचि, संपूर्ण व्यवस्था की संरचना को बनाए रखने के लिए बलिदान भी करनी पड़े तो शासक को उससे पीछे नहीं हटना चाहिए। आधुनिक नेतृत्व के लिए यह और भी अधिक अनुकरणीय है।
द्वौपदी के अक्षय-पात्र से शाक लेकर दुर्वासा के शाप से रक्षा हो अथवा ‘अश्वत्थामा हतो-नरो वा कुंजरो’ के कथन ने जोर का शंखनाद करना हो अथवा भीम द्वारा जरासंघा का वध हो - वे सभी घटनाएं श्रीकृष्ण द्वारा प्रबंधन की तकनीकों से विपरीत परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने के उदाहरण हैं। नारायण स्वरूप श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में फैली अव्यवस्था के प्रबंधन के लिए ही जन्म लिया था तथा वे इस कार्य को सफलतापूर्वक करके विष्णु लोक को प्रस्थान कर गए। उनके द्वारा प्रयुक्त युक्तियों का एकमात्र भी हम जैसे मत्स्य प्राणियों को इस विश्व में उत्कृष्ट कोटि का प्रबंधक बना सकता है। आइए, उस परम शक्ति को प्रणाम करें।

सप्तसिंधु संस्कृति

आर्यों का मूल स्थान तथा उनका भारतीय मूल का होना अथवा नहीं होना एक वृहद विवाद का प्रसंग है। पाश्चात्य इतिहासकारों, पुराविदों, विद्वानों ने उन्हें अभारतीय मूल का माना है। अनेक भारतीय संस्थाओं, विद्वानों ने इसी इतिहास को स्वीकार कर लिया है। कतिपय भारतीय मनीषियों-विद्वानों द्वारा ऐसे प्रसंग का प्रतिवाद अथवा खंडन किए जाने पर उसे राष्ट्रवाद की संकीर्ण मनोवृत्ति का परिचायक व्यक्त कर प्रसंग की मौलिकता के प्रति अनिश्चय की स्थिति उत्पन्न करने का वातावरण तैयार किया जाता रहा है। भारतीय विद्वानों का मत यह रहा है कि पाश्चात्य विद्वानों ने जान-बूझकर ऐसा मत व्यक्त किया जिससे भारतीय जनमानस में पीढिय़ों तक हीन-भावना का विष घुला रहे। ऐसे पूर्वाग्रह का समाधान ‘सागर मंथन’ नामक पौराणिक आख्यान के अनुरूप हो सकता है जिसमें परस्पर विरोधियों ने मिलकर अमृत अथवा समाधान पाया था। कतिपय पुराविशेष जो आज भी पाश्चात्य अथवा अभारतीय क्षेत्रों में सुरक्षित हैं, उन पर पुन: दृष्टिपात तथा उेनका पुनर्मूल्यांकन किया जाए तो सत्य समाधान आज भी पाया जा सकता है। प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक उल्लेख सप्तसिंधु संस्कृति रहा है। विदेशी आक्रमणों, विध्वंस तथा भारतीय पुरा तथा ऐतिहासिक सामग्री को भारतीयों के हाथों से छीनकर विदेशों में पहुंचा दिए जाने के कारण भारतीय संस्कृति की मौलिकता को ग्रहण लग गया है। जगद्गुरु तथा विश्व-विजेता होने के गौरवशाली आयाम से भारतीय वंचित कर दिए गए हैं। सप्तसिंधु क्षेत्र की व्यापकता कहां तक थी इसका समाधान खोजा जाए तो भारतीय संस्कृति के खोए हुए आध्यात्म पुन: जीवित हो सकते हैं।
विश्व इतिहास में ज्ञात प्राचीनतम सभ्यताएं मिस्त्र, सुमेर, बेबीलोन, असीरिया, चीन तथा सिंधुघाटी में पनपी थीं। उन सभ्यताओं के उद्गम काल में जो लगभग ई.पू. 2500 वर्ष के आस-पास का रहा है, उस काल में सप्तसिंधु क्षेत्र की सीमा कहां तक थी इस प्रसंग पर विधिवत व्याख्याएं देखने को मिलती हैं। क्या सप्तसिंधु क्षेत्र पंजाब की पांच नदियों के साथ दजला-फरात (मेसोपोटामिया) नदियों तक विस्तृत था, यह एक आधारभूत प्रश्न है? यदि ऐसा था तो इराक, ईरान, भारत का इतिहास एक सूत्र में गुंथा झलकता है। भारतीय तथा इराक की (मेसोपोटमिया) सभ्यताओं में प्राचीनकाल से ही परस्पर व्यापारिक, सांस्कृतिक और अन्य क्षेत्रों में विनिमय होता रहा है। मेसोपोटामिया में दजला-फरात नदियों के क्षेत्र में विश्व की तीन प्रमुख सभ्यताएं पनपी थीं। अनेक भारतीय विद्वानों के अनुसार असुर (असीरिया) सभ्यता के नामों तथा संस्कृत भाषा में बहुत साथ पाया गया है। सुमेर बेबीलोन क्षेत्र में सिंधु घाटी सभ्यता की मुद्राएं (सील) पाई गई हंै। बगदाद (इराक) के संग्रहालय में प्रदर्शित एक मुद्रा पर हाथी, मगरमच्छ तथा गैंडा बना हुआ है। एक अन्य चौकोर मुद्रा पर वृषभ (सांड) बना हुआ है तथा इस मुद्रा पर भारतीय भाषा में शब्द लिखा हुआ है। तत्कालीन सुमेर-बेबीलोन सभ्यता के जनक तथा शासकों के नाम जमदतनसर (अपभ्रंश यमदूत असुर अथवा यमदूत ने असुर) तथा आकड़ (अक्खड़ अपभ्रंश अक्षत) जाति के सरगौन (अपभं्रश सर्वगुण) पाए जाते हैं जिनका कार्यकाल ई.पू. 2350 के लगभग था। उसी काल में बेबीलोन के उत्तर में लगभग 500 किलोमीटर दूर दजला नदी के तट पर अक्कड़ जाति के संस्थापक सरगौन प्रथम (ई.पू. 2350) ने असुर साम्राज्य की नींव डाली थी। असुर साम्राज्य (असीरिया) को प्रथम राजधानी का नाम असुर रखा। इतिहासकारों ने असुर साम्राज्य के संस्थापक का नाम पुदूर असुर (अपभ्रंश पूज्यवर असुर) उल्लेख किया है जो कि बहुत संभव है कि एक ही व्यक्ति के नाम तथा उपाधि रहे हों। असुरों का इतिहास 2350 से 1775 ई.पू. तक का ज्ञात है तत्पश्चात् उनका इतिहास और गौरव लुप्त हो गए। ई.पू. 1000 वर्ष के आस-पास ही इन असुरों का पुन: उदय हो पाया था। ज्ञात इतिहास के अनुसार ई.पू. 1750 से ई.पू. 1000 वर्ष की अवधि के मध्य ही सिंधु घाटी सभ्यता का लोप हुआ था। क्या असुर संस्कृति तथा सिंधु घाटी सभ्यता का लोप एक समानान्तर प्रक्रिया अथवा एक ही मूलभूत निर्मित्त विशेष के कारण हो रहा है? इस संभावना पर इतिहासकार प्राय: मौन हैं। कतिपय पुरा सामग्री का विवेचन इस मौन को मुखरित होने के लिए विचार करने पर बल देता है। यथा 2350 ई.पू. में असुर नगर की स्थापना से पूर्व उसी भूमि पर बसे हुए गांव अथवा नगर (इसका नाम ज्ञात नहीं है) में ‘अनुअदाद’ नामक देवी-देवता के मंदिर में खण्डहरों में यज्ञोपवीतधारी (ब्राह्मण आर्य) पुजारी की खंडित प्रतिमा पाई गई जो असुर पर्व लगभग ई.पू. 2400 काल की है। इसका सिर गायब है किन्तु पास में गर्दन तक का धड़ उपलब्ध है जिसकी लंबाई 137 सेंटीमीटर है। आज यह प्रतिमा बर्लिन (जर्मनी) के संग्रहालय में है। पाश्चात्य विद्वानों ने इसकी पीठ पर कंधे से कटि तक स्पष्ट प्रदर्शित यज्ञोपवीत के धागे को मोटे किनारे वाला वस्त्र कहकर कदाचित् सत्य इतिहास को छुपाने का प्रयास किया है। यदि यह मोटे किनारे वाला वस्त्र होता तो उस शरीर पर जहां भी वस्त्र पहना गया है, वहां पर मोटे धागे की गहरी धारियां दिखाई जाती, किन्तु ऐसा नहीं है। ई.पू. 2400 में असुरों का उदय नहीं हुआ था, तब क्या तत्कालीन इराक में दजला में आर्य संस्कृति का शासन था तथा वे आर्य असुरों के आक्रमण को नहीं झेल पाए। परिणामस्वरूप उन्हें पलायन करना पड़ा। समानान्तर आधार पर अनार्यों द्वारा सिंधु घाटी क्षेत्र पर ई.पू. 2400-2500 के लगभग आर्य बस्तियों पर आक्रमण कर सिंधु क्षेत्र से आर्यों को भागने पर विवश किया था। कालान्तर अपने मूल स्थान सिंधु प्रदेश-पंजाब के क्षेत्र को मुक्त करवाने हेतु आर्यों ने असीरिया क्षेत्र में असुरों को पराजित कर आगे बढ़कर भारत में अपने मूल क्षेत्र को स्वाधीन करवाया था। कदाचित लिखित ऋग्वेद में आर्य-अनार्य युद्ध में आर्यों द्वारा दस्युओं तथा दासत्व के समर्थकों के विरुद्ध सफल अभियानों का ऐतिहासिक वर्णन रहा है। सिंधु घाटी सभ्यता तथा असुरों के उद्भव से पूर्वकाल की ग्रेनाइट पत्थर पर उत्कीर्ण एक सिंह की प्रतिमा बर्लिन (जर्मनी) के संग्रहालय में सुरक्षित है जो ई.पू. 3000 वर्ष पुरानी है। यह सिंह प्रतिमा लगभग आठ इंच लंबी है तथा मिस्त्र में खोज निकाली गई थी किन्तु विद्वानों के अनुसार यह सिंह प्रतिमा मिस्त्र की न होकर किसी अन्य मूल स्थान की है। आज से पांच हजार वर्ष पहले ग्रेनाइट जैसे कठोर पत्थर को काट-छांट कर उत्कीर्ण करके, मिस्त्र की प्रतिमा बनाने के लिए उत्तम इस्पात की छेनियों का उपयेाग किया जाना बहुत संभव रहा है। ग्रेनाइट बहुत कठोर पत्थर होता है जो साधारण तांबे अथवा कांसे के उपकरणों से सरलता से काटा नहीं जा सकता। तत्कालीन लोहे-इस्पात के उपकरणों का मिट्टी में दबकर गलकर नष्ट हो जाना सहज संभव है। विश्व में लोहे-इस्पात का उपयोग सर्वप्रथम भारतीयों ने ही किया था। ऋग्वेद में लोहे का उल्लेख पाया जाता है अत: यह ग्रेनाइट का सिंह ई.पू. 3000 वर्ष के समय भारत में आर्यों की उपस्थिति का मूक प्रमाण है।
इतिहास की एक महत्वपूर्ण पुरावस्तु असीरिया की एक राजधानी निनवे में पाया गया कांसे का मुख है। इतिहासकारों ने इसे असुर साम्राज्य के संस्थापक सरगौन प्रथम का माना है। यह मुख निनवे नगर की अधिष्ठात्री देवी नीना के मंदिर के तलपर में रखा हुआ पाया गया था। इस मुख को सरगौन प्रथम के पुत्र मनसतुसु (अपभ्रंश मानस युकुत्सु अर्थात् हृदय से युद्धप्रिय) ने अपने पिता की स्मृति में लगभग 2300 ई.पू. में बनवाया था। इस मुख की आंखे बहुमूल्य रत्नों से जड़ी थीं जो किसी ने चोरी करके निकाल ली थीं। सन् 1931 में इसके पाए जाने पर इसके समीप एक गोल मुद्रा (सिलिण्डर सील) पाई गई थी, जिस पर असुरागज शमशी अदाद। (अपभं्रश सतशिव आदित्य) ई.पू. 1815-1782 का नाम पाया गया था। कुछ इतिहासकारों ने इस मुख को शमशी अदाद का माना है। आज यह मुख बगदाद (इराक) के संग्रहालय में प्रदर्शित है। इतिहासकार इस प्रसंग पर मौन हैं कि इस मुख की आँखों में कौन से रत्न जड़े हुए थे। यदि हीरे थे जो तत्कालीन विश्व में हीरे केवल भारत में ही पाए जाते थे। उन हीरों अथवा रत्नों के पारखी कौन लोग थे यह भी अज्ञात है। सिंधु घाटी सभ्यता वासी हीरे से अपरिचित प्रतीत होते रहे हैं अत: भारतीय हीरों का नियंत्रण तथा उपयोग कोई साधारण श्रेणी के लोग नहीं कर सकते थे। क्या ऐसे लोग वही आर्य थे जिन्हें असुरों ने ई.पू. 2350 के लगभग उत्तरी इराक से पलायन करने पर मजबूर किया था? इतनी उत्कृष्ट कलाकृति तथा उसमें पगड़ी पहनने की परम्परा से परिचय ज्ञात सभ्यताओं में किन जातियों अथवा किस स्थान के लोगों का रहा था यह भी अज्ञात है।
निष्कर्षत: यही कहना उचित होगा कि भारतीय मनीषियों, विद्वानों तथा पुराविशेषज्ञों को भारतवर्ष की मौलिकता को आहत करने वाले असत्य इतिहास का सत्य पुन:शोधन हेतु देश-विदेश में प्रयास करना चाहिए।

नीच ग्रहों का फल -2

पिछले अंक में हमने सूर्य और चंद्रमा के अलग-अलग राशि में नीचस्थ होने के प्रभाव को जाना। अब अन्य ग्रहों के नीचस्थ स्थित होने के प्रभाव का विश्लेषण करेंगे :
विभिन्न राशियों में नीचस्थ मंगल का प्रभाव :
1. लग्न में नीचस्थ मंगल व्यक्ति के कामुक स्वभाव की ओर इशारा करते हैं। यदि मंगल नीच नवांश में हों तो व्यक्ति को रात में देखने में दिक्कतें पैदा करते हंै अन्यथा इस स्थिति में मंगल योगकारक हैं व व्यक्ति को पद प्राप्ति, यश और सम्पन्नता देते हंै।
2. द्वितीय भाव में नीचस्थ मंगल व्यक्ति को गरीबी देते हंै। नीच नवांश में होने पर कर्जदार बनाते हंै। यहां पर अशुभ मंगल शिक्षा में रुकावट डालते हैं और आंख का कष्ट देते हैं।
3. तृतीय भाव मंगल व्यक्ति को कामातुर प्रवृत्ति की ओर प्रेरित करते हैं। तीसरे भाव के नवांश में व्यक्ति चिकित्सों, वैद्यों एवं सेवकों से मित्रवत होता है। व्यक्ति को छोटे भाई-बहिन का अभाव होता है।
4. चतुर्थ भाव में नीचस्थ मंगल व्यक्ति को प्राय: सुखी नहीं रखते हैं तथा इस भाव के नीच नवांश में व्यक्ति दूसरों की देखभाल, पोषण करके सुख पाता है, माँ को कष्ट होता है।
5. पंचम भाव में नीचस्थ मंगल व्यक्ति के पुत्रों को दूसरी स्त्रियों की ओर आकर्षित करते हैं, नीचस्थ नवांश में व्यक्ति को अल्प आयु, पुत्र की प्राप्ति हो सकती है। यदि पुत्र जीवित रहें तो कष्ट दें।
6. षष्ठ भाव में नीचस्थ मंगल व्यक्ति की मित्रता निम्न जाति (शूद्र) के लोगों से होती है, नीच नवांशगत मंगल इस भाव में होने पर व्यक्ति की कृषि कार्य में संलग्न व्यक्तियों से कटु संबंध रहते हैं।
7. सप्तम भाव में नीचस्थ मंगल होने से व्यक्ति की पत्नी बहुत जिद्दी व बोलने में कटु होती है। नीच नवांश में होने से उसकी पत्नी के कई शत्रु होते हैं।
8. अष्टम भाव में नीचस्थ मंगल मनुष्य की मृत्यु अपने ही हाथों होती है, नीच नवांश में आत्महत्या के प्रयास भी संभावना बढ़ जाते हैं। पिता की जल्दी मृत्यु, आंख की समस्या, पेशाब संबंधित रोग होते हैं।
9. नवम भाव का नीचस्थ मंगल व्यक्ति को धर्मप्रियता का विरोधी एवं बंधन आदि दर्शित करते हैं। नीच नवांश में व्यक्ति दूसरे की स्त्री को हथाने को ही धर्म मानते हैं, पिता सुख कम, विवाह के बाद स्थिरता आती है।
10. दशम भाव में नीचस्थ मंगल दूसरे की स्त्री के संपर्क से जीविकापार्जन करते हैं। नीचस्थ नवांश होने से व्यक्ति वैश्या कर्म (अथवा नीच कर्म) से जीविकापार्जन करते हैं, बड़े भाई की उम्र कम होती है।
11. एकादश भाव के नीचस्थ मंगल व्यक्ति को चोरी से लाभ देते हैं, नीचस्थ नवांश में मंगल होने से वह धोखेबाजी व ठगी से लाभ कमाने मेें चतुर होते हैं।
12. द्वादश भाव के नीचस्थ मंगल व्यक्ति का धन नीच लोगों की मित्रता में अपव्यय होते हंै, नीचस्थ नवांश का व्यक्ति अनेक बुरे कामों में धन का नाश करते हैं। व्यक्ति गठिया, अल्सर जैसी बीमारी से पीडि़त होता है।
विभिन्न राशियों में नीचस्थ बुध का प्रभाव :
1. प्रथम भाव में नीचस्थ बुध के व्यक्ति के मुख से दुर्गन्ध आती है तथा यदि नीच नवांश हो तो मनुष्य का मुख कुरुप तथा जीभ मोटी और चौड़ी होती है। व्यक्ति अस्वस्थ रहे व भूत-पिशाच की पूजा करें।
2. द्वितीय भाव में नीचस्थ बुध के व्यक्ति निकृष्ट कार्यों से धन कमाता है। यदि नीच नवांश में हो तो धन प्राप्ति शत्रु पक्ष से अथवा छोटे-मोटे रोजगार से जीविका कमाते हैं, व्यक्ति की शिक्षा अधूरी रहती है।
3. तृतीय भाव के नीचस्थ बुध के व्यक्ति की मित्रता पापकर्मियों से होते हंै। इस भाव के बुध नवांश मनुष्य की मित्रता गाय, भैंस आदि को पालने वालों से होती है।
4. चतुर्थ भाव के नीचस्थ बुध के व्यक्ति को कलह उपरान्त सुख देते हंै परंतु नीच नवांश में बुध का व्यक्ति दूसरे की सेवा करे सुख पाते हंै।
5. पंचम भाव में नीचस्थ बुध के व्यक्ति के पुत्र काफी कष्ट पाते हैं परंतु नीच नवांश में होने से उसके पुत्र दृष्ट स्वभाव एवं दूषित कार्यों में संलग्न होते हैं, संतान कष्ट में रहती है।
6. छठे भाव के नीचस्थ बुध व्यक्ति की शत्रुता, कुरूप एवं नेत्रहीन मनुष्यों से होती है। इस भाव में नीच के नवांश, आलसी और रोगग्रस्त तथा विकलांग लोगों को शत्रु बनाते हैं।
7. सप्तम भाव के नीचस्थ बुध व्यक्ति की पत्नी के पर पुरुष से संबंध होते हैं। इस भाव के नीच बुध नवांश उसकी पत्नी को बुरी आदतें त्रस्त करती है। व्यक्ति का वैवाहिक जीवन कष्टमय होता है।
8. अष्टम भाव के नीचस्थ बुध व्यक्ति की मृत्यु, घाव संक्रमण के होने के कारण होती है। यदि बुध नीच नवांश में हैं तो व्यक्ति भय से मृत्यु प्राप्त करता है।
9. नवम भाव के नीचस्थ बुध व्यक्ति को कपटपूर्ण धर्मपालन की और तत्पर होते हैं। इस भाव के नीचस्थ नवांश व्यक्ति को जादू-टोना की ओर पे्ररित करते हैं।
10. दशम भाव के बुध व्यक्ति को स्वरोजगार दिलाते हैं जबकि नीचस्थ नवांश परदेश से जीविकोपार्जन करवाते हैं।
11. एकादश भाव में नीचस्थ बुध व्यक्ति को आर्थिक लाभ, नीच लोगों की संगत से प्राप्त होते हैं जबकि बुध नीचस्थ नवांश में होने से नकली, बनावटी काम करके धन अर्जन करते हैं।
12. द्वादश भाव के नीचस्थ बुध में व्यक्ति अपना धन शेयर निवेश अथवा ब्याज आदि पर व्यय करते हैं। इस भाव के नवांश का व्यक्ति अपना धन निम्न संगत के लोगों में बर्बाद करते हैं। व्यक्ति की शिक्षा कम होती है तथा व्यक्ति बीमार रहता है।

प्रभु को भोग

भारतीय संस्कृति में रचे-बसे संस्कारों की वैज्ञानिकता की इस लेखमाला में हम हमारे संस्कारों के पीछे छिपे रहस्यों के उद्घाटन का प्रयास कर रहे हैं। हमारा ध्येय है कि हम हमारे संस्कारों के गर्भ में गर्भित उस मूलभूत पहलू या धारणा को जानें जिसके कारण उस संस्कार का जन्म हुआ है। अब तक हमने हमारी संस्कृति के कई संस्कारों पर अपने विचार रखे हैं और पाठकवृंद ने उन्हें मुक्तकंठ से सराहा है। इस बार हम संंस्कृति के एक अहम् संस्कार पर अपने विचार रख रहे हैं - ‘प्रभु को भोग’। लेखक ने अपने पूर्व के ऐसे ही लेखों में यह निवेदन कर दिया है कि संस्कारों की गर्भित पृष्ठभूमि के जागरण में किसी धर्म विशेष की प्रशंसा करना या किसी धर्म विशेष की उपेक्षा करना हमारा उद्देश्य नहीं है। हमारा उद्देश्य है धर्म निरपेक्ष रहकर किसी संस्कार विशेष पर अपनी लघु मीमांसा प्रकट करना कि किसी संस्कार की जड़ें समाज के सभी धर्मों में किसी न किसी रूप में क्यों फैली हुई हैं? कोई तो ऐसा रहस्य है कि उस संस्कार को कई धर्म तनिक् परिष्कृत करके या उसका स्वरूप बदलकर, उसे स्वीकार कर अपनी दिनचर्या का अभिन्न अंग बना लेते हैं।
प्रभु को भोग देना, प्रसाद चढ़ाना, प्रसादी करना, लंगर लगाना, खैरात करना, नैवेद्य समर्पित करना, भोजन-प्रसादी बनाना आदि सभी क्रियाएं एक ही संस्कार के विभिन्न रूप हैं।
ईश्वर को भोग लगाना या नैवेद्य अर्पित करने का आशय है कि हमें जो कुछ मिला है या हम जिसे भोगने वाले हैं, उस में से सबसे पहले उसको अर्पित कर दें जिसकी कृपा या रहम से हमने उस अन्न को पाया है। ईश्वर सर्वशक्तिमान है, सर्वसम्पन्न है, सब पर दया करता है, सबका पालन करता है, वही सबका दाता है, वही सबको संरक्षण और जीवन देता है। मनुष्य उसका ही एक अंश है। शास्त्रों में स्वीकारोक्ति भी है कि ईश्वर अंश जीव अविनाशी अर्थात् मनुष्य ईश्वर का अंश है। परमात्मा की शक्ति और ज्ञान के कारण ही हम सब कुछ कर सकते हैं। इसी प्रकार मुस्लिम धर्म के पवित्र और आदरणीय ग्रंथ ‘कुरआन शरीफ’ में भी प्रार्थना में यही कहा जाता है कि - ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानि रहीम’ अर्थात् शुरु करता हँू उस परम पावन पवित्र अल्लाह के नाम से-जो रहम दिल है, सबका कल्याण करता है और सब पर दया करता है।
यही कारण है कि मुस्लिम धर्म में भी अन्नदान (खैरात करना) को विशेष दर्जा प्राप्त है। भारतीय धार्मिक संस्कृति में अन्न के दान की पराकाष्ठा का वर्णन मिलता है। ‘अन्नदानं परमदानं विद्या दानमते परम’ अर्थात् अन्न का दान परम दान है, उससे बड़ा ज्ञान दान होता है। ज्ञान प्रत्येक के पास नहीं होता परंतु अन्न सभी के पास न्यूनाधिक होता है इसलिए अन्न का दान किया जा सकता है और व्यक्ति अन्नदान करके आत्मिक संतुष्टि का अनुभव करता है। यही परंपरा सिक्ख धर्म में भी देखने को मिलती है। सिक्ख धर्म ने तो भारतीय संस्कृति के कई संस्कारों को सर्वोच्चता प्रदान कर दी। देखें गुरुपूजा, गुरु भक्ति, गुरु श्रद्धा, गुरु सेवा, गुरु ज्ञान के प्रति अगाध श्रद्धा (गुरु ग्रंथ साहिब में परम विश्वास), गुरु आदेश को ही अपने जीवन का ध्येय मानना, गुरु आदेश से सदैव अन्नदान (लंगर) करते रहना आदि ऐसे उदाहरण हैं जो अद्वितीय हैं और जिन्हें पराकाष्ठा पर पहुंचाया है सिक्ख धर्म ने। हम देख सकते हैं कि शायद ही कोई गुरुद्वारा ऐसा होगा जहाँ नियमित कोई प्रसादी या लंगर नहीं चलता हो। अन्नदान का श्रेष्ठतम उदाहरण है ‘लंगर’। ‘लंगर’ शब्द से आशय गुरुद्वारे में भोजन स्वरूप वितरित किया जाने वाला प्रसाद जो ‘गुरु प्रसादी’ के रूप में होता है।
मैं यहां पाठकवंृद का ध्यान आकृष्ट करना चाहता हँू कि अपने जीवन में किए गए कर्मों द्वारा हमें जो कुछ भी मिला वह परम पिता परमात्मा की देन है और उसमें से सर्वप्रथम ‘भोग स्वरूप’ हम ईश्वर को अर्पित कर इस सत्य को स्वीकारते हैं कि जो कुछ हमें मिला है, वह सब हे प्रभु, तेरी ही कृपा से मिला है और उस पर भोग का अधिकार भी तेरा ही है। जो लोग मंदिर-मस्जिदों और गुरुद्वारों या गिरजाघरों में बनने वाले ‘प्रभु के भोग’ को आराध्य को अर्पित करते हुए देखते हैं तो पाते हैं कि विशाल भंडारे में से तनिक मात्र ईश्वर के समक्ष रखा जाता है, उसे बाद में सादर उठाकर संपूर्ण भंडारे या खैरात सामग्री, प्रसाद या लंगर में मिला दिया जाता है और उस भंडारे का वितरण किया जाता है। यहां इस तथ्य पर भी हमारा ध्यान जाता है कि जो भोग हमने ईश्वर के समक्ष अर्पित किया न तो उसे व्यावहारिक रूप से ईश्वर ने खाया, न ही छुआ, केवल हमारा समर्पण था, हमारी आत्मिक संतुष्टि के लिए हमने ऐसा किया कि हे ईश्वर! इस सब पर सर्वप्रथम भोग का अधिकार तुम्हारा है।
यहां हमारी वृत्ति और अवधारणा बन जाती है कि ‘तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा’ अर्थात् मेरा इसमें कुछ भी नहीं है, जो कुछ है सो तेरा है, उसे तुझे अर्पित करके मैं संतुष्ट होना चाहता हँू और स्वयं में दिव्यता का आभास करता हँू। ऐसा जानकर भोजन, भोग, प्रसादी, लंगर, खैरात आदि के प्रति हमारा व्यवहार बदल जाता है। हम श्रद्धा से उसके प्रति जुड़ जाते हैं, उस भोग के ग्रहण करने पर हमारा स्वाद, हमारा स्वास्थ्य के प्रति दृष्टिकोण आदि सब कुछ बदल जाते हैं। चाहे कोई व्यक्ति कुछ भी न ग्रहण करें परंतु ईश्वर को चढ़ाया हुआ भोग वह शत्रु के हाथ से पाकर भी स्वयं को धन्य महसूस करता है, जो भोजन प्रसादी हमें दूसरों के साथ मिलती है, हम उसे ग्रहण करने से पूर्व बांटकर लेते हैं। परस्पर प्रेम, भाई-चारा, सौहार्द्र और विश्वास बनता है, जात-पात, धर्म, आडंबर, सबसे ऊपर उठकर हम लंगर, प्रसाद, खैरात को ग्रहण करते हैं। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा जो ऐसे ‘प्रभु को अर्पित भोग’ को ग्रहण करने पर उसमें दोष बताए। यही होती है ‘प्रसाद बुद्धि’। ‘प्रसाद बुद्धि’ से जीवन में हम हर प्रकार की वस्तु को ‘प्रसाद’ स्वरूप अपना लेते हैं। संतों का तो यहाँ तक कहना है सुख-दु:ख सब ईश्वर के प्रसाद हैं, इन्हें सहर्ष स्वीकार करते चलें।
भारतीय वैदिक संस्कृति की संस्कारजन्य परंपराओं पर दृष्टिपात करें तो हम पाते हैं कि मनुष्य निम्न पांच प्रकार के ऋणों को जीवनभर चुकाता रहता है।
देवऋण : जिसने हमें दिया है, उसे हम सब कुछ दें।
पितृऋण : पूर्वजों की पारंपरिक रीतियों और पारिवारिक समृद्धि के लिए अर्पण करते रहें।
ऋषिऋण : धार्मिक आस्था और ज्ञान के प्रदायक गुरुजन, ऋषिगण के प्रति हमारा अर्पण।
मनुष्य ऋण : जो दैनिक जीवन में हमारे साथ रहते हैं, उनके सुखों के लिए अर्पण या त्याग।
भूत ऋण : ऐसे प्राणियों के प्रति हमारा त्याग या अर्पण जो हमारे लिए हितकर हैं, नि:स्वार्थ हैं, मौन-मूक हैं, पशु, पक्षी आदि।
हम पाते हैं कि हिन्दू धर्म में भोजन करने से पूर्व पांच ग्रास या निवाले अलग रखे जाते हैं, बाद में उन्हें गाय या पशु-पक्षियों आदि को दे दिया जाता है। मेरी मति के अनुरूप हमारी संस्कृति में पांच निवाले निकालने की यह परंपरा पंच महाभूतों के प्रति अपनी आस्था और विश्वास का प्रतीक भी हो सकता है कि हम जो कुछ भी ग्रहण कर रहे हैं, वह इन पंच महाभूतों की कृपा से है जो पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल और आकाश हैं। महात्मा तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है : ‘क्षिति जल, पावक, गगन, समीरा।
पंचरचित अति अधम शरीरा।।’
अर्थात् हमारा शरीर पंचतत्वों से मिलकर बना है और इन पांच तत्वों से बना प्रसाद ही ग्रहण करके हम इस शरीर को प्रसन्न कर रहे हैं। इन पांचों तत्वों से ही हमारा शरीर बना है, फिर वही सत्य आ जाता है कि ‘तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा’ अर्थात् पंच-महाभूत निर्मित शरीर में पंच महाभूत की आहुति दे रहे हैं। ईश्वर इन्हीं पांचों तत्वों में समाया हुआ है, यही पांचों तत्व हमारे जीवन को चलाते हैं और ये तत्व हमें भोजन से मिलते हैं, वायु को छोड़कर। प्रभु को भोग देते समय हम यह कहते हैं :
प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा।
उदानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा, ब्रह्मणे स्वाहा।।
अर्थात् पांच प्रकार के प्राणों को हम अंगीकार करने की चेष्टा करते हैं, ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि इस भोग में पंच महाभूतों से निर्मित पंच प्राणों की महाशक्तियों को समाविष्ट कर दें और उसे हम ग्रहण कर जीवन को सहजता से जीएं।
यहां मैं पाठकवृंद का ध्यान गीता के निम्न श्लोक की ओर आकृष्ट करना चाहूंगा :
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित:।
प्राणापान समायुक्त: पचाम्यन्नं चतुर्विधम।।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि ‘मैं ही सब प्राणियों के शरीर में रहने वाला प्राणी हँू और अपान से संयुक्त वैश्वानर अग्नि रूप होकर मैं चार प्रकार के अन्न को पचाता हँू।’ अर्थात् ईश्वर जगत के कण-कण में भोग स्वरूप व्याप्त है, उसे हम उसी का दिया हुआ अर्पित करके उसके प्रति अपनी आस्था को दर्शाते हैं।
उदाहरण : ब्रह्मार्पणं ब्रह्महवि: ब्रह्मग्नौ ब्रह्मणा हुतम।
ब्रह्मैव तेन गंतव्यं, ब्रह्मकर्म समाधिना।।
अर्थात् यज्ञ में हम जो अर्पित करते हैं, वह भी ब्रह्म ही है और हवन किए जाने योग्य द्रव्य भी ब्रह्म है तथा ब्रह्मस्वरूप अग्नि में स्थित रहने वाले योगी द्वारा प्राप्त किए जाने योग्यफल भी ब्रह्म हैं। हमारा आशय है कि ‘प्रभु को भोग’ अर्पण करना समस्त चराचर जगत में अपना विश्वास और निष्ठा प्रकट करना है।

राशिफल

यह राशिफल जन्म राशि पर आधारित है। अगर विंशोत्तरी दशा शुभ चल रही हो तो शुभ प्रभाव में वृद्धि हो जाएगी, अगर विंशोत्तरी दशा अशुभ चल रही हो तो शुभ प्रभाव में कमी आ जाएगी। जन्म नक्षत्र पर आधारित जो नाम होता है यदि उसके अतिरिक्त किसी ने अन्य नाम रख लिया है तो यह राशिफल उस पर लागू नहीं होगा। आपके जन्म समय चन्द्रमा जिस अंक पर थे, वही आपकी राशि कहलाएगी।
अंकों का विवरण इस प्रकार है: 1. मेष 2. वृषभ 3. मिथुन 4. कर्क 5. सिंह 6. कन्या 7. तुला 8. वृश्चिक 9. धनु 10. मकर 11. कुंभ 12. मीन। इस राशिफल कथन में नक्षत्र ज्योतिष का प्रयोग किया गया है। - सतीश शर्मा
मेष (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
व्यक्तिगत: इस महीने ग्रह स्थितियां परिवर्तित हो रही हैं और समय आपके पक्ष का बन रहा है। महीने का उत्तराद्र्ध, पूर्वाद्र्ध की बजाए ज्यादा अच्छा है और आप बिखरे हुए मामलों को समेटने में सफल रहेंगे। आपकी स्वयं की जीवनी ऊर्जा पर्याप्त है परन्तु इस समय आप अन्य कई लोगों का सहयोग लेंगे, स्त्री वर्ग का सहयोग प्रमुखता से मिलेगा। व्यावसायिक कार्यक्षेत्र में जो परिवर्तन आप लाएंगे उसका गहरा असर आपके घर में देखने को मिलेगा और कुछ क्षण नोंक-झोंक के भी आ सकते हैं। इस समय आप नए सपने बुनने में लगे हुए हैं और अपने इर्द-गिर्द चल रही सारी गतिविधियों को एकदम से नियंत्रण में ले आना चाहते हैं। आर्थिक दृष्टिकोण से लोग आपको सहयोग तो कर सकते हैं परन्तु किसी भूमि या भवन पर दबाव आ सकता है।
व्यावसायिक: व्यावसायिक दृष्टिकोण से यह एक अनुकूल महीना है जिसमें आपके द्वारा किए जा रहे सारे प्रयास सफल सिद्ध होंगे और आप नए विषय जोड़ पाने में भी सफल रहेंगे। नई तकनीक का प्रयोग करेंगे, नई विद्याएं सीखेंगे या अधिक कौशल युक्त व्यक्तियों का लाभ उठाएंगे। जीवनसाथी से इस समय भारी मदद मिलने वाली है या यह भी संभव है भागीदारी के मामलों में आपको अच्छा समर्थन मिले और आप और अधिक कमाई के रास्ते खोज लें। किसी आकस्मिक भुगतान का संकेत है। इस महीने के उत्तराद्र्ध में कुछ अनजाने लोग जो आपकी परम्परा के नहीं हैं, सहयोग करने की चेष्टा करेंगे और आप स्वीकार भी कर लेेंगे। यह ऐसा समय है जब आपके व्यावसायिक जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन आ सकता है। आप देखें, जांच करें और आगे बढ़ें। कम से कम बृहस्पति और शनि आपको निराश नहीं करेंगे। इस समय संतान आपके लिए शानदार काम करेगी और आप उनकी बुद्धि और कार्यक्षमता पर भरोसा कर सकते हैं।
स्वास्थ्य: स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह महीना अच्छा जाएगा, उच्चकोटि का भोजन, अधिक कैलोरीयुक्त भोजन और अनेकों तरीके के स्वाद मिलेंगे। महीने के पूर्वाद्र्ध में इतनी पार्टियां खाएंगे कि खुद परेशान हो जाएंगे। हर आदमी से उसके वजन की और अपने वजन की चर्चा करेंगे। कपड़ों की नाप छोटी हो जाएगी और अखबारी विज्ञापनों में भरोसा करेंगे। उत्तराद्र्ध में दवाओं का कुछ खर्चा है परन्तु पाचनतंत्र के विकार ही अधिक परेशान करेंगे।
रिश्ते-नाते: पूर्वाद्र्ध वैवाहिक जीवन के लिए शानदार जाने वाला है। इस समय नए प्रेम संबंध विकसित होने की संभावना है। आपने अकारण ही किसी को त्याग दिया तो आपको बहुत पछतावा होगा। भागीदारी में भी एक बहुत शानदार व्यक्ति अंदर आने की कोशिश कर रहा है, लगता है वह काफी फायदा देने वाला है। वाणी की कड़वाहट से एक प्रमुख कर्मचारी या सहयोगी को खो देंगे।
वृषभ (ई,उ,ए,ओ,वा,वी,वू,वे,वो)
व्यक्तिगत: इस महीने थोड़ा-थोड़ा करके समस्याओं का समाधान आना शुरु हो जाएगा। व्यक्तिगत मामले जहां गति पकड़ेंगे और समस्या के रूप में पनप जाएंगे, दूसरे मामलों में आपको न केवल आर्थिक सुविधा अधिक मिलेगी बल्कि सार्वजनिक सम्मान भी मिलेगा। कठिनाइयों और उपलब्धियों का यह मिश्रित महीना है जिसमें आप अपनी सम्पूर्ण जीवन शक्ति का प्रबंधन शानदार ढंग से करेंगे और सफलता हासिल करेंगे। केवल एक मामला ऐसा है जिसमें आप पाला बदल सकते हैं। आपको सलाह है कि निजी मामलों में ऐसा कुछ भी नहीं करें जिससे किसी का मन बहुत ज्यादा दुखने लगे। महीने के उत्तराद्र्ध में दूर यात्राएं करेंगे और उसका असर व्यवसाय पर आएगा।
व्यावसायिक: व्यावसायिक मामले कुछ ज्यादा ही ध्यान चाहते हैं। दूसरे सप्ताह तक आप भाग-दौड़ करते रहेंगे और परिवार को कम समय दे पाएंगे। यदि आप नौकरी करते हैं तो भी आपको महत्वपूर्ण कार्य पर ध्यान देना पड़ सकता है और इस कारण से परिवार में थोड़ी बहुत असहमति चलती ही रहेगी। उत्तराद्र्ध में परिस्थितियां बदल जाएंगी। अब आपको सहज कार्य के अलावा कानूनी मामलों में भी ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता पड़ेगी। अचानक धन प्राप्ति होना संभव है परन्तु आप उसको रोक नहीं पाएंगे और उसे पहले से खर्च किया हुआ मानिए। इन दिनों प्रेम संबंध पर काफी धन और समय खर्च करेंगे और यह आगे चलकर आपको भारी पड़ेगा। अभी आपको चाहिए कि पूरी तरह काम पर ध्यान दें।
स्वास्थ्य: उत्तराद्र्ध में पित्त विकार अधिक रहेगा। महीने की शुरुआत से ही कफ की बढ़ोत्तरी होगी, अंग्रेजी दवाइयां खाएंगे और उसके दुष्परिणाम के रूप में महीने के अंतिम सप्ताह में पित्त के साथ-साथ पाचनतंत्र संबंधी विकार परेशान करेंगे। चर्म रोग की भी दवाइयां खानी पड़ सकती हैं। इस समय शक्तिवद्र्धक दवाइयों का सेवन उचित रहेगा।
रिश्ते-नाते: रिश्ते-नातों के लिए समय में तेजी से परिवर्तन चल रहा है। यदि सगाई संबंध के लिए महीने के पूर्वाद्र्ध में बात चलाएं तो किसी रिश्तेदार के कारण विघ्न आ सकता है। यदि आप अविवाहित हैं और कहीं प्रेम संबंध हैं तो स्वयं पर नियंत्रण रखिए और कोई अन्य आपके जीवन में प्रवेश नहीं कर जाए इसके लिए अतिरिक्त सावधानी बरतें। नौकरी के कारण से आप कई दिनों के लिए घर से दूर जा सकते हैं। इन दिनों उच्च राशि में शनि हैं, इसका प्रभाव आपके स्वभाव पर पड़ रहा है और अहंकारवश कई रिश्तों से आप किनारा कर लेंगे।
मिथुन (क,की,कू,घ,ङ, छ, के,को, ह)
व्यक्तिगत: यह बहुत शानदार समय है जिसमें व्यक्तिगत उपलब्धियां बढ़ सकती हैं। कार्य-पद्धति में विशेष परिवर्तन हो सकते हैं और आपकी महत्वांकाक्षाएं बढ़ सकती हैं। घर के अंदर की बातों से आप परेशान रहेंगे परंतु घर से बाहर आपकी पूछ बढ़ेगी। इन दिनों आप अपनी व्यक्तिगत सफलता-असफलता को लेकर बहुत अधिक चिंतित रहेंगे। अंतिम सप्ताह में जबकि बृहस्पति वक्री नहीं रहेंगे आप पुन: अपनी शक्ति का संयोजन करेंगे और अपने कामकाज के नए पैमाने तय करेंगे। शत्रु सिर उठाएंगे परंतु आपका कुछ बिगाड़ नहीं पायेंगे। संतान को लेकर आप थोड़ा निश्ंिचत रहेंगे परंतु अन्य मामलों में इतने निश्ंिचत नहीं होंगे। आपके समर्थक वर्ग के सहयोग से आप प्रसन्न रहेंगे और आगे बढ़ पायेंगे।
व्यावसायिक: आपकी कार्यपद्धति में एक नया परिवर्तन आ रहा है। इस महीने तो आपको भागीदारी इत्यादि के मामलों में बहुत अधिक सावधानी बरतनी होगी परंतु इसके बाद बातें अपने आप ही ठीक होने लगेंगी। अगर कोई बिगाड़ आना हो तो इस महीने हो जाएगा परंतु आर्थिक हानि नहीं दिख रही है। आप संबंधों को ही बचाने की चेष्टा करें। धन प्राप्ति के अवसर यथावत रहेंगे। महीने का अंतिम सप्ताह उपलब्धियों का हो सकता है परंतु बढ़ते हुए खर्चों को आप नहीं रोक पायेंगे। अधीनस्थ लोग अच्छा काम करके देंगे।
स्वास्थ्य: स्वास्थ्य की दृष्टि से यह महीना मध्यम रहेगा। स्वास्थ्य के कारण से कुछ काम में विघ्न रहेगा। जुकाम, नजला या श्वांस से संबंधित तकलीफ रहेगी। बुजुर्ग लोगों को मूत्रतंत्र से संबंधित समस्याएं अधिक रहेंगी। इस महीने खान-पान उच्च-कोटि का रहेगा और दावतें खाने को मिलेंगी। मन पर नियंत्रण नहीं कर पायेंगे और वजन बढऩे की शिकायत रह सकती है। उत्तराद्र्ध में मानसिक तनाव बहुत ज्यादा रहेगा और उसका एक प्रमुख कारण गृह-कलह होगी।
रिश्ते-नाते: प्रेम संबंधों में सावधानी बरतें। घटनाक्रम विशेष मोड़ ले रहा है। एक-दूसरे पर व्यर्थ के आरोप-प्रत्यारोप लगायेंगे। छोटी-छोटी बातें भी जोर पकड़ेंगी। नए प्रेम-संबंध भी जन्म ले सकते हैं। वैवाहिक जीवन में कलह बढ़़ेगी। अपने बॉस से रिश्ते सुधरेंगे तथा मित्रों से भी संबंध और प्रगाढ़ हो जायेंगे। एक तरफ निजी रिश्तों में बिगाड़ आयेगा तो दूसरी तरफ अन्य सार्वजनिक संबंध और भी अच्छे हो जायेंगे। तनाव झेलना आपकी आदत है और इन बातों को भी आप आराम से सह लेंगे।
कर्क (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
व्यक्तिगत: यह महीना अर्थ-प्रबंध करने में ही गुजरेगा। आर्थिक दबाव बहुत ज्यादा होने के कारण आप कोई विशेष उपाय करने की सोचेंंगे। विवादों से मुक्ति पाने के लिए आपको विशेष कोशिश करनी पड़ जाएगी। भूमि संबंधी कोई विवाद या वाहन संबंधी कोई समस्या आ सकती है। अर्थ-प्रबंध के लिए जितनी अधिक कोशिशें आप करेंगे, उनमें से आधी तो निष्फल हो जाएंगी। महीने का पूर्वाद्र्ध थोड़ा बहुत ठीक जा सकता है परंतु उत्तराद्र्ध में समस्या रहेगी। किसी एक मामले में बात को निर्णायक मोड़ तक ले जाएंगे और हार-जीत की परवाह ना करते हुए दृढ़ता से काम करेंगे। इस समय ग्रह ही आपकी रक्षा करेंगे। शत्रुओं पर आप भारी पड़ेंगे। व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता का पूरा लाभ आपको मिलेगा परंतु यह सब करने में पसीना आ जाएगा।
व्यावसायिक: आर्थिक दृष्टि से समय अच्छा रहेगा। जितना लाभ होगा, उतना खर्चा भी बढ़ेगा। इस समय छोटे-मोटे कई खर्च संभावित हैं। बजट नियंत्रण से बाहर होगा। थोड़ा बहुत ऋण भी हो सकता है। भूमि या वाहन से संबंधित कोई कार्यवाही आप कर सकते हैं। नौकरीपेशा लोग ज्यादा आराम से रहेंगे। इस समय किसी विवाद में आपकी विजय होगी परंतु महीने के उत्तराद्र्ध में उसके पहले आप परेशान रहेंगे। घरेलू नोंक-झोंक सामने आ सकती है। बेनामी व्यवसाय में लाभ होगा। पत्नी के नाम से किए गए कार्य में भी लाभ होगा। यात्राएं लाभदायक सिद्ध हो सकती हैं। यदि एक से अधिक व्यवसाय हों तो एक मामले में हानि होगी बाकी सबमें लाभ होगा। यात्रा करेंगे, मनोरंजन पर खर्चा करेंगे। संतान के साथ थोड़ा बहुत मतभेद चल सकते हैं। महीने का अंतिम सप्ताह फिर भी अनुकूल जाएगा, तब व्यावसायिक मतभेदों में कमी आएगी। फिर भी इस समय व्यावसायिक परिवर्तन के लिए आप गंभीर रूप से चिंतन करें और बात को आगे बढ़ाएं। व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में आप सफल हो सकते हैं परंतु आपको कोई बड़ा दांव करना पड़ेगा।
स्वास्थ्य: स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से महीना साधारण है परंतु सर्दी-जुकाम, खाँसी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। बुजुर्गों को मूत्र तंत्र संबंधी कष्ट आ सकते हैं। साधारण इन्फेक्शन भी हो सकता है।
रिश्ते-नाते: जीवनसाथी के लिए यह अच्छा समय चल रहा है। उन्हें हर तरफ से लाभ होगा। प्रेम संबंधों में थोड़ी सी कड़वाहट रहेगी और मतभेदों को दूर करने की आवश्यकता पड़ेगी। पिता से असहमति रहेगी परंतु समाधान हो जाएगा। दोस्तों से अच्छी मदद की उम्मीद की जा सकती है।
सिंह (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
व्यक्तिगत: इस महीने आप में अतिरिक्त उत्साह रहेगा। कहीं से आशावादी समाचार के कारण आपकी कार्यप्रणाली में तेज गति से सुधार आएगा और आप जोश से भर जाएंगे। महीने में आर्थिक साधन इतने नहीं बढ़ेंगे जितना कि आपका कामकाज का तरीका या शैली। कुछ तकनीकी लोगों को जोड़कर आप कार्य विस्तार करना चाहेंगे और ऋण प्रबंध पर भी ध्यान देेंगे परन्तु वह सीमित मात्रा में ही हो पाएगा। नई जगह प्राप्त करने में या जन्म स्थान के आसपास यात्रा करने में आपको सुविधा रहेगी तथा उसका बहाना भी मिल जाएगा। इस समय दैनिक आय बढ़ सकती है तथा किसी-किसी मामले में कोई अचानक आय भी हो सकती है।
व्यावसायिक: व्यावसायिक दृष्टि से यह समय शानदार है जब आप नई व्यवस्थाओं को जन्म देंगे और पुरानी कार्यशैली में समय के अनुसार परिवर्तन लाने की सोचेंगे। महीने के पूर्वाद्र्ध में जहां व्यावसायिक यात्राएं लाभप्रद हो सकती हैं, उत्तराद्र्ध में स्थायी लाभ बढ़ेगा। यह ऐसा महीना है जिसमें घर के कई लोग अपनी आय बढ़ाने के लिए श्रम करेंगे और सफल हो जाएंगे। इस समय व्यवसाय के कार्यों में संतान को जोड़ा जाना मुनासिब नहीं है क्योंकि कोई विवाद अशांति को जन्म देगा। व्यवसाय में नए साधन भी जोड़ेंगे। भागीदारी के मामलों में यह शानदार समय चल रहा है और लाभ की मात्रा बढ़ सकती है। यदि आप नौकरी करते हैं तो थोड़ी जवाबदेही बनेगी और किसी काम के कारण आपकी आलोचना हो सकती है।
स्वास्थ्य: सर्दी इत्यादि से बचें, सर्दी से होने वाले कष्ट कुछ दिन परेशान करेंगे। इस महीने तेज गति से काम करने के कारण खान-पान भी उतनी ही तेज गति से करेंगे और उसका दुष्परिणाम भी भोगेंगे। लम्बी यात्राएं करनी पड़ सकती हैं और संभव है कि आप उन्हें व्यावसायिक यात्राओं में बदल दें। माता के स्वास्थ्य की थोड़ी सी समस्या रहेगी और पिता को मानसिक रूप से परेशानी रहेगी। उनको कोई समस्या बहुत ही सताएगी और दो-तीन दिन के बाद शांति आ जाएगी। इस महीने गरिष्ठ भोजन ज्यादा मिलेगा।
रिश्ते-नाते: जीवनसाथी के लिए यह शानदार महीना है, उनके कामकाज में प्रगति होगी और अच्छा लाभ कमाएंगे। जो अविवाहित हैं उन्हें अपनी बात आगे बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए। नए प्रस्तावों को सावधानी से लें। नौकरी करने वालों के लिए बॉस की नाराजगी इस महीने मायने रखेगी। जो व्यवसायी हैं उन्हें नए कर्मचारियों के चयन में रुचि लेनी चाहिए। कामकाज बहुत पिछड़ रहा है।
कन्या (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
व्यक्तिगत: यह महीना एक तरफ जहां सफलताओं से भरा हुआ है वहीं दूसरी तरफ कुछ परेशानियां भी उत्पन्न करने वाला है। कामकाज की भाग-दौड़ में आप निजी पारिवारिक जीवन में कुछ बातों को भूल ही जाएंगे। महीने के पूर्वाद्र्ध में जहां लम्बी यात्राएं होंगी, उत्तराद्र्ध में आप स्थिर होकर काम करने की सोचेंगे। इस समय भूमि-भवन से संबंधित कोई लाभ संभावित है और आप उसके लिए भागदौड़ करेंगे, वाहन से संबंधित भी कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं। व्यक्तिगत मामलों को व्यावसायिक मामलों से दूर रखने के लिए आप कोशिश करेंगे परन्तु संभवत: ऐसा होना संभव नहीं है। किसी वाहन या भूखण्ड का निष्पादन कर सकते हैं। इस समय कोई अत्यन्त महत्वपूर्ण व्यक्ति आपके व्यवसाय में सहायक सिद्ध हो सकता है।
व्यावसायिक: व्यवसाय बढ़ाने के लिए जो प्रयास आप कर रहे हैं वे सफल सिद्ध होने वाले हैं। साढ़े साती की आखिरी ढैय्या में स्थान छूटने जैसी परिस्थितियां बन सकती हैं परन्तु आपका व्यवसाय यदि अन्य कई शहरों से बढ़ा तो यह बात टल सकती है। यदि आप महत्वपूर्ण अधिकारी हैं और व्यावसायिक यात्राएं ज्यादा होती हैं तो भी आपका स्थान परिवर्तन टल सकता है। विस्तार कार्यक्रमों में आप जोर-शोर से रुचि लेंगे और भारी खर्चा करेंगे। विदेशी आय के प्रयास सफल हो सकते हैं। पिछले दो-तीन महीनों से विदेश संबंधों को लेकर ग्रह आपके पक्ष में बने हुए हैं और वे कोई अच्छी भूमिका निभा सकते हैं।
स्वास्थ्य: स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से समय अच्छा चल रहा है और खान-पान में शुचिता बरतेंगे। इस समय आप शाकाहार पर ज्यादा ध्यान देंगे और योग जैसी विधियों पर भी बहुत ज्यादा ध्यान देंगे। मानसिक तनाव इतना अधिक नहीं है परन्तु शारीरिक थकान को आप रोक नहीं पाएंगे। खान-पान में कई बार अनियमितता होगी और बाद में आप उसको ठीक करने की कोशिश करेंगे। बुजुर्ग लोगों को पाचनतंत्र के विकार या पाइल्स जैसी समस्या उभर कर सामने आ सकती है। स्नायु विकार भी साधारण दर्जे के ही होंगे। माता पर दवाई का खर्चा बढ़ेगा।
रिश्ते-नाते: जीवनसाथी के लिए यह अत्यन्त शानदार समय चल रहा है। जीवन संघर्ष के चरम में भी वे नई ऊर्जा महसूस करेंगे और आपको साथ लेकर चलने की चेष्टा करेंगे। आपकी व्यावसायिक संधियां भी इस समय सफल रहेंगी, यद्यपि गणित एकदम से आपके पक्ष में नहीं है फिर भी कोई बड़ा आश्वासन आपको टिके रहने की शक्ति देगा। भाई-बहिन से संबंध अच्छे रहेंगे और माता की बजाए पिता से अधिक निकट रहेंगे। बॉस से अच्छे रिश्ते रहेंगे तो संतान भी इस महीने आपका ज्यादा सम्मान करेगी।
तुला (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
व्यक्तिगत: महीने का पूर्वाद्र्ध अच्छा है और आप अपनी नौकरी या व्यवसाय को नए दृष्टिकोण से देखने लगेंगे। आपमें उत्साह का संचार होगा और घटनाक्रम को अपने अनुकूल करने की चेष्टा करेंगे। आर्थिक दबाव होते हुए भी आप विचलित नहीं होंगे और अपने कार्यक्रम को यथावत जारी रखेंगे। कोई छोटी-मोटी आर्थिक उपलब्धि इन दिनों हो सकती है। महीने का उत्तराद्र्ध ज्यादा अनुकूल रहेगा जब आपसे नए लोग मिलेंगे, नए वादे करेंगे और कामकाज को गति देने में मदद करेंगे। इन दिनों कुछ संबंध ऐसे होंगे जो आपको परेशान करेंगे। थोड़ा बहुत गृह-कलह से आप परेशान रहेंगे। कई बार आपको लगेगा कि आपका वजूद ही समाप्त हो गया। दु:साहस पूर्ण निर्णय लेने का भी ख्याल बार-बार आपके मन में आयेगा और आप ऐसा कर भी सकते हैं।
व्यावसायिक: व्यावसायिक दृष्टिकोण से महीना अच्छा है, आर्थिक लाभ होगा। जिस काम में आप हाथ डालेंगे उसमें सफलता मिलेगी। भागीदारी के मामलों में कलह रहेगी परंतु महीने के अंतिम सप्ताह में वातावरण थोड़ा सुधर सा जाएगा। व्यर्थ के खर्चे बहुत अधिक होंगे। कुटुंब की कलह सामने आयेगी और उससे व्यवसाय प्रभावित होगा। नौकरीपेशा लोगों के लिए समय अच्छा है। कामकाज इतना बढ़ जाएगा कि अवकाश ही नहीं मिलेगा। खान-पान की आदतों में बड़ा परिवर्तन आएगा। व्यवसाय से संबंधित दावतों में वाणी पर नियंत्रण रखें नहीं तो समस्याएं उठ खड़ी होंगी।
स्वास्थ्य: मानसिक तनाव अनुमान से भी ज्यादा रहेगा। स्वास्थ्य इतना खराब नहीं होगा, जितना कि मानसिक स्वास्थ्य। खान-पान में अनियमितताएं रहेंगी। महीने में कई बार बहुत गरिष्ठ भोजन करेंगे और वजन बढऩे से नहीं रोक पायेंगे। यात्राओं के कारण भी खाने-पीने का संयम नहीं रहेगा। योग या मार्निंग वॉक में आप बिल्कुल भी नियमित नहीं रहेंगे। पाचन-तंत्र के विकार यथावत रहेंगे। आर्थिक दृष्टि से जो दबाव चल रहे होंगे उनको लेकर आपके मन में इतनी चिंता नहीं रहेगी। इस कारण से उच्च रक्तचाप या डिप्रेशन जैसी समस्याएं नहीं होगी परंतु तनाव फिर भी बना रहेगा।
रिश्ते-नाते: संबंधों को लेकर आप दबाव में रहेंगे। एक महत्वपूर्ण मित्र की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। इस समय बॉस से भी संबंध बनाए रखने में परेशानी रहेगी। इस समय नीति व रीति की आलोचना देखने को मिलेगी। प्रेम संबंध में अति सावधानी बरतें। जरा सी भी लापरवाही भारी पड़ सकती है। आपका कोई उपाय काम नहीं आयेगा, केवल वाणी पर नियंत्रण रखना ही जरूरी है। घर में पूर्वाद्र्ध में थोड़ा तनाव रहेगा बाद में परिस्थितियां थोड़ी शांत हो जाएंगी। मित्रों से विवाद यथावत बना रहेगा।
वृश्चिक (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
व्यक्तिगत: महीने के पूर्वाद्र्ध में राशि पर से भ्रमण कर रहे कई ग्रह आपके बढ़ते हुए तनाव की सूचना दे रहे हैं। राशि से भ्रमण कर रहे दशम मंगल आपके उत्साह में वृद्धि करेंगे और आप अद्भुत नेतृत्व शक्ति का परिचय देंगे। साढ़ेसाती की शुरुआत हुई है और ऐसे में ग्रहस्थितियां अनुकूल हो सकती हैं। राशि से छठे बृहस्पति की स्थिति और उस पर शनि की दृष्टि आपको बड़े निर्णयों की ओर ले जा सकती है परंतु आपने जरा सी भी गलती की तो वह नुकसान व परेशानियों में बदल सकती है। जीवनसाथी का स्वास्थ्य एक तरफ परेशानी का विषय रहेगा तो दूसरी तरफ बाहरी लोगों से कोई बड़ा कार्य करने की प्रेरणा देगा।
व्यावसायिक: इस महीने महत्वपूर्ण व्यावसायिक निर्णय ले सकते हैं। महीने के पूर्वाद्र्ध में आप अत्यधिक तनाव में रहेंगे परंतु अंतिम भाग में जब बृहस्पति मार्गी हो जाएंगे तनाव एकदम से हट जाएगा। इस समय आपको अत्यधिक आर्थिक मदद की आवश्यकता होगी परंतु आप दु:साहस के साथ अपना काम पूरा करने में लगे रहेंगे। आर्थिक लाभ के अवसर बढ़ रहे हैं परंतु आपको बहुत अधिक सावधानी बरतनी होगी। 12वें शनि खर्चे भी बहुत कराते हैं। महीने के उत्तराद्र्ध में सूर्य तभी अनुकूल होंगे जब धनु राशि में आ जाएंगे और आपके आर्थिक साधन बढऩे की संभावनाएं बना देंगे। दशम मंगल आपको अन्य से अग्रणी बना लेंगे।
स्वास्थ्य: आमतौर से स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। शारीरिक श्रम बहुत अधिक करना होगा। पेट के रोग ज्यादा सताएंगे। जिन्हें उच्च रक्तताप है उन्हें अधिक सावधानी बरतनी होगी और जिन्हें वजन बढऩे की समस्या है उन्हें और भी अधिक ध्यान रखने की समस्या रहेगी। यद्यपि मंगल आपका स्वास्थ्य बनाए रखेंगे और आप किसी भी परिस्थिति से नहीं घबराएंगे। छोटी-मोटी स्वास्थ्य की खराबी से भी आप कामकाज रोकेंगे नहीं बल्कि यथावत करते रहेंगे।
रिश्ते-नाते: यह समय थोड़ा नाजुक है और रिश्तों को बचाने के लिए आपको कोशिश करनी चाहिए। कोई अत्यंत प्रिय आपकी किसी बात से नाराज हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि कुछ दिन का अलगाव हो। जीवनसाथी से मधुर संबंध बनाए रखना एक चुनौती होगी। आर्थिक परेशानियां रिश्तों पर तो आंच नहीं लायेंगी परंतु कभी-कभी ऐसा लगेगा कि इसका असर जीवन में आ रहा है। मित्र लोग आपकी मदद करेंगे जिसके कारण व्यावसायिक संबंध सुधरेंगे और आप आगे बढ़ेंगे।
धनु (ये, यो, भ, भी, भू, धा, फा, ढा, भे)
व्यक्तिगत: राशि से ग्यारहवें शनि आपके आने वाले संपूर्ण घटनाक्रम को प्रभावित करेंगे। आपमें अचानक साहस आ जाएगा और आप बड़े कार्यों को अजांम देने की सोचेंगे और सभी संबंधों की पुन: समीक्षा करेंगे। आर्थिक दृष्टि से जो बातें आपको मुश्किल लगती हैं अब आसान हो जाएंगी। संतान महीने के अंत में ही थोड़ा अनुकूल होगी परंतु महीने के मध्य भाग में संबंध थोड़ा तनावपूर्ण रहेंगे। आप बार-बार किसी खास काम को करने की सोचेंगे परंतु मन गवाही नहीं देगा और आप उसे स्थगित करते चले जाएंगे। आर्थिक दबाव और खर्चे इस ढंग से सोचने को मजबूर कर देंगे।
व्यावसायिक: कामकाज आगे बढ़ेगा। एकदम से प्रत्यक्ष लाभ नहीं दिखेंगे परंतु आगे चलकर लाभ में बदल जाएगा। आपको भुगतान स्थगित करने पड़ेंगे और आपको लौटने वाला पैसा भी टुकड़ों-टुकड़ों में प्राप्त होगा। नौकरीपेशा लोगों पर आरोप आयेंगे और उनसे बाहर निकलना एक बड़ी समस्या रहेगी। इन दिनों अधीनस्थ लोगों से आज्ञापालन करवाना एक बड़ी समस्या रहेगी। अवज्ञा के कारण आप किसी को दंडित भी कर सकते हैं। भागीदारी के मामलों में थोड़ा सा संयम से काम लें और अभी बड़े निर्णय ना लें। भाई-बहिनों से संबंध सुधरेंगे और उनके साथ व्यावसायिक संबंधों में भी निर्बलता आ सकती है।
स्वास्थ्य: पेट के रोग परेशान करेंगे। त्वचा की एलर्जी भी हो सकती है। जल से उत्पन्न होने वाले रोग या डायरिया जैसी स्थिति भी आ सकती है। पूरे महीने खान-पान उच्चकोटि का रहेगा और कभी-कभी बदहजमी का शिकार हो जायेंगे। राशि पर लगातार बृहस्पति की दृष्टि है जिसके कारण वजन बढ़ेगा। वजन घटाने के कई उपाय आप करेंगे परंतु गरिष्ठ भोजन के कारण परिस्थितियों में कोई अंतर नहीं आयेगा। आप मशीनों की मदद भी ले सकते हैं। यात्राओं के कारण आपका खान-पान अनियमित रहेगा।
रिश्ते-नाते: व्यक्तिगत संबंधों की दृष्टिकोण से महीना अच्छा है और आपको अनुकूल व्यवहार मिलेगा। संबंधों के मामलों में आप स्वयं भी कोई होशियारी ना करें, नहीं तो आपका स्वयं का मन ग्लानि से भर जायेगा। पिता से संबंधों में नाटकीयता महीने के अंत तक कम हो जायेगी और आप घटनाक्रम को उसके यथार्थ स्वरूप में ही लेंगे। जीवनसाथी को इंफैक्शन जैसी समस्या होगी और आप उसको गंभीरता से लेंगे, इससे आपके रिश्तों में भी सुधार आ सकता है। महीने में कई बार क्रोध के क्षण आयेंगे इससे आपके आस-पास का वातावरण और संबंध प्रभावित हो सकते हैं।
मकर (भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, ग, गी)
व्यक्तिगत: दिसंबर में लाभ प्राप्ति के लिए एक ओर तो आप हर तरह से उपक्रम करेंगे और उचित-अनुचित का विचार नहीं करेंगे। इस समय साधनों की पवित्रता का ध्यान रखना आवश्यक है। इन्हीं दिनों सपने दिखाने वाले कुछ लोग मिलेंगे, आपको भ्रमित भी करेंगे। यदि आप साधारण तरीके से भी चलते रहे तो कोई दिक्कत नहीं आने वाली और आर्थिक लाभ भी होगा। 20 दिसंबर के बाद परिस्थितियां आपके पक्ष में हो जाएंगी, तब तक आपको बहुत अधिक तिकड़म के कार्यों से बचकर रहना होगा। व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए जगह बदलने की बात बार-बार सामने आएगी। घर की परिस्थितियों में इस बात का असर देखने को मिलेगा। आप पर एक अज्ञात सा दबाव काम करेगा कि जगह बदलनी है, मकान बदलना है या कार्यालय बदलना है और कहीं इन सबसे नकारात्मक असर तो नहीं आ जाएगा।
व्यावसायिक: व्यावसायिक दृष्टिकोण से समय अच्छा है परंतु लाभ की अपेक्षा प्रभाव अधिक बढ़ेगा, यश-प्रतिष्ठा बढऩे का समय है और लोग आपके प्रति दो राय रखते हुए भी आपका सम्मान करेंगे। इस समय कार्य-कौशल में वृद्धि की उम्मीद की जा सकती है परंतु राशि से आठवें मंगल स्वभाव में कुछ आक्रामकता और उग्रता देंगे जो कुछ लोगों को पसंद नहीं आएगी। संतान से ताल-मेल थोड़ा बढ़ेगा परंतु व्यवसाय में किसी सहयोग की बड़ी उम्मीद किसी से नहीं करेंगे। संतान के मन में बार-बार उच्चाटन होगा और वह कहीं अन्य जगह जाने की सोचेंगे। इस समय सरकारी लोगों से लाभ हो सकता है। ऋणों के पुनर्भुगतान में आपको ज्यादा मदद नहीं मिल पाएगी। अंतिम सप्ताह थोड़ा ठीक जा सकता है परंतु किसी रुपये की वसूली करने में आपको फिर भी दिक्कतें आएंगी।
स्वास्थ्य: पित्त व एसिडिटी प्रमुख समस्या रहेगी। संतान के व्यवहार से मन उखड़ा-उखड़ा रहेगा, उधर माता के स्वास्थ्य की चिंता रहेगी। इनमें से कोई सा भी कष्ट काबू से बाहर तो नहीं होगा पर कामकाज के करने में जोश में कमी आ सकती है। इस समय आपको कोई भी बाधा सहन नहीं हो पाएगी। जो भी आपके काम-काज में बाधा करेंगे आप क्रोध का प्रदर्शन करेंगे और मन ही मन परेशान रहेंगे।
रिश्ते-नाते: महीने का पूर्वाद्र्ध कुछ ठीक है परंतु मध्य भाग में वैवाहिक जीवन में कुछ परेशानियां रहेंगी परंतु महीने का अंतिम सप्ताह बहुत अच्छा जाने वाला है। प्रेम संबंधों में कोई खास बात आ सकती है और महीना बीतते-बीतते संबंध और भी मधुर हो जाएंगे। आप प्रेम का खुलकर प्रदर्शन करेंगे। सगाई संबंध की बात आगे बढ़ाई जा सकती है।
कुंभ (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
व्यक्तिगत: महीने का पूर्वाद्र्ध परिणामदायक है और अर्से से किए जा रहे कार्यों का शुभ परिणाम इस समय आएगा। काम-काज को लेकर मन में जो भी विचार चल रहे होंगे या अनिश्चय चल रहा होगा वह महीने के उत्तराद्र्ध में दूर हो जाएगा। इस समय भागीदारी के कार्यों में अच्छी सफलता मिल रही होगी और ना केवल दैनिक आय बढ़ेगी बल्कि नए प्रस्ताव भी मिलेंगे। इस समय विश्वस्त लोग मिलेंगे और उनकी मदद से कार्यक्षेत्र का विस्तार ढंग से हो पाएगा। आजीविका क्षेत्र की कुछ बाधाएं यथावत बनी रहेंगी और कहीं-कहीं नुकसान की संभावनाएं भी दिखेंगी। यदि आप व्यवसाय कर रहे हैं तो इस समय किसी एक तरफ से लाभ हो रहा होगा और किसी एक तरफ हानि चल रही होगी।
व्यावसायिक: वर्ष का सर्वाधिक व्यस्त महीना चल रहा होगा जब आप नए लोगों को जोडऩे के लिए भारी परिश्रम कर रहे होंगे। इसी अवधि में कोई-कोई आपसे दूर भी चला जाएगा। आगे चलकर ऐसा ही कुछ माहौल रहेगा। आर्थिक लाभ की मात्रा दैनिक रूप से बढ़़ती चली जाएगी। यदि आप नौकरी करते हैं तो बॉस प्रसन्न रहेंगे और असीमित अधिकार मिलेंगे। आप दूसरे लोगों से काम लेने में थोड़ा सा छल-कपट का सहारा भी लेंगे। वर्ष का अंतिम सप्ताह आपके कार्यक्षेत्र का निर्णायक क्षण होगा जब आप व्यवसाय में विस्तार या बढ़ोत्तरी में उच्चकोटि के कौशल का प्रदर्शन करेंगे। यदि आप व्यवसायी हैं तो धन-बल का सहारा भी लेंगे। राशि से छठे भाव पर शनि और राहु का सम्मिलित प्रभाव आपकी मारक क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है। इस समय आपकी हर कूटनीति सफल रहेगी।
स्वास्थ्य: यह महीना अपार मानसिक चिंताओं में बीतेगा। जीवनक्रम में जटिलता बढ़ती जाएगी और आप अपनी ही बातों से स्वयं ही परेशान होते जाएंगे। इस समय वायु विकार बढ़ेंगे और पित्त भी बढ़ेगा। पिता के लिए यह समय अच्छा नहीं है और उन्हें कई तरह की परेशानियां आएंगी। यदि वे अधिक उम्र के हुए तो कुछ ज्यादा ही ध्यान देना होगा।
रिश्ते-नाते: वैवाहिक जीवन में साधारण तनाव बना रहेगा यद्यपि संबंध अच्छे बने रहेंगे। यदि प्रेम संबंध हैं तो यह पराकाष्ठा का समय है और महीने का उत्तराद्र्ध बहुत सुखद बीतेगा। इस समय आपको महत्वपूर्ण निर्णय ले लेना चाहिए। विवाह ना होने पर भी प्रेम संबंधों में गर्मी बनी रहेगी और अगला महीना और भी शानदार जाएगा। इस समय व्यावसायिक उपलब्धियां भी बढ़ जाएंगी। अपने प्रिय से महंगे उपहार मिलेंगे और उनके जीवन की संपन्नता का असर सब ओर देखने को मिलेगा।
मीन (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
व्यक्तिगत: इस महीने ग्रह स्थिति सुधर रही है और घटनाओं की तीव्रता में कमी आ रही है। आप धीरे-धीरे करके तसल्ली से अपना काम बढ़ायेंगे और काम पर अपनी पकड़ बढ़ायेंगे। कुछ बड़े लोगों का सहयोग नहीं मिल रहा था, अब धीरे-धीरे या तो सहयोग प्राप्त कर लेंगे या उनसे किनारा कर लेंगे और आगे बढ़ जायेंगे। अर्थ-लाभ की प्राप्ति आपका काम आसान कर सकती है परन्तु यह प्राप्ति टुकड़े-टुकड़े करके होगी और आप अपनी योजनाओं को सही ढंग से पूरा नहीं कर पायेंगे। यह अवश्य है कि आपके संसाधन बढ़ रहे हैं और तदानुसार ही अपने काम-काज को गति दे सकेंगे।
व्यावसायिक: व्यवसाय में कई तरह की समस्याएँ आ रही हैं और अवरोध भी बढ़ रहे हैं। कोई कानूनी मामला परेशान कर सकता है। कोई नियोजक या कोई सरकारी ऑफिसर आपसे विपरीत गति चल सकता है। इस समय टैक्स इत्यादि भरने में भी सावधानी बरतें। व्यावसायिक निर्णयों में आप जल्दी नहीं करें क्योंकि उनमें दोष रह जाने की संभावना है। जितना अर्थ-लाभ कर पायेंगे, उतना ही आप खर्चा कर डालेंगे। काम-काज में गुणात्मक परिवर्तन आने की संभावना है और ऐसा करने में आप कई विशेषज्ञों की मदद लेंगे। महीने के उत्तराद्र्ध में राशि से दशम सूर्य आपकी प्रतिष्ठा अचानक उठायेंगे और किसी एक महत्त्वपूर्ण काम के बन जाने के कारण आपको न केवल शांति मिलेगी बल्कि लाभ भी होगा। सिर से एक बड़ा बोझ उतर जायेगा। पारिवारिक व्यवसाय में थोड़ी बहुत अनबन हो सकती है परन्तु उसे आप महत्त्व नहीं दें।
स्वास्थ्य: वायु विकार परेशान करेंगे। खान-पान में अनियमितता के अलावा यात्राएँ कष्टदायक सिद्ध होंगी। राशि से नवम और दशम सूर्य बहुत शक्तिशाली हैं और अहंकार की सृष्टि करते हैं। आप क्रोधी हो जायेंगे और थोड़े से जिद्दी भी हो जायेंगे। उत्तराद्र्ध में गलत निर्णय भी लेंगे और बाद में कष्ट आयेंगे। जीवनसाथी को इस समय गायनिक समस्या हो सकती है। खर्चा कुछ ज्यादा होगा परंतु आप उसको खुशी-खुशी करेंगे। संतान के लिए शुभ समय है और उनके लिए आप हर तरह से सहज और सुलभ रहेंगे।
रिश्ते-नाते: कुटुम्ब में किसी विवाद को तूल देने के बाद आप ही हल करने के लिए कदम उठायेंगे। इस समय बड़े भाई-बहिन आपके सहयोग में रहेेंगे और आप भी उनके कष्टों में सहयोग देंगे। छोटे भाई-बहिनों से दूर रहना हो सकता है। जन्म स्थान के आस-पास स्थानान्तरण चाहते हैं पर अभी थोड़ा सा समय है। इस महीने ऋणों के पुनर्भुगतान के लिए आप मित्रों का सहयोग लेंगे। प्रेम-संबंध अच्छे उपहार की उम्मीद करते हैं, आपको पहल करके ऐसा करना चाहिए।