Saturday, July 30, 2011

क्या राहु दशा का है इंतजार? - 4

बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं और उन्हें ब्रह्मा की सभा में बैठने का अधिकार है। उनका शौक ब्राह्मण जैसा हैं, उन्हें पवित्र व दैवीय गुणों से युक्त माना जाता है। वे शिक्षक हैं, उपदेशक हैं और धर्म-कर्म इत्यादि के प्रवक्ता हैं। सभी गुरुओं में, धर्माचार्यों में, न्यायाधीशों में, अमात्य व मंत्रियों में और वित्त से संबंध रखने वाले व्यक्तियों में बृहस्पति का अंश है। ये ज्ञान और सुख स्वरूप हैं, गौर वर्ण हैं, इनके प्रत्यधि देवता इन्द्र हैं और इन्हें पुरुष ग्रह माना जाता है। इनकी सत् प्रकृति, विशालदेह, पिंगल वर्ण केश और नेत्र, कफ प्रकृति, बुद्धिमान और सभी शास्त्रों के ज्ञाता हैं। शरीर में वसा या चर्बी पर इनका अधिकार है। मधुर वस्तुओं पर उनका अधिकार है। संसार भर के कोष पर उनका अधिकार है। पूर्व दिशा में बलवान हैं तथा यदि दिन में जन्म हो तो यह अधिक शक्तिशाली माने गए हैं। फल वाले वृक्षों को भी बृहस्पति उत्पन्न करते हैं। गुरु के वस्त्र पीले हैं और हेमन्त ऋतु पर इनका अधिकार माना गया है। इन्हें कर्क राशि में उच्च का, मकर राशि में नीच का और धनु राशि में मूल त्रिकोण का माना गया है। ग्रहमण्डल में सूर्य, चंद्रमा और मंगल इनके मित्र माने गए हैं। शनि सम माने गए हैं और बुध शत्रु माने गए हैं।
जन्मपत्रिका में बृहस्पति की दो राशियां मानी गई हैं - धनु तथा मीन। धनु राशि को पृष्ठोदयी माना गया है। यह राशि अपने अंतिम रूप में परिणाम देती है। इस राशि में पिंगल वर्ण, रात्रि में बलवान, अग्नि तत्व, क्षत्रिय स्वभाव, धनुषधारी, पूर्व दिशा में बसने वाली, भूमि पर भूचारी और तेजस्वी माना गया है। इस राशि में प्रशासनिक लक्षण हैं और अत्यंत ऊर्जावान है। बृहस्पति की ही दूसरी राशि मीन है। ऐसे दो मछलियां जिनके मुंह एक-दूसरे की पूंछ की तरह हैं। ये राशि दिन में बलवान होती है। इस राशि से प्रभावित लोग जल में या जल के आसपास में होते हैं। ब्राह्मण राशि मानी गई है।
खगोलशास्त्र की दृष्टि से बृहस्पति बहुत बड़े ग्रह हैं और उन पर एक बड़ा गड्ढा है जिसमें हमारी पांच पृथ्वी समा जाएं। बृहस्पति में अमोनिया गैस बहुत ज्यादा पाई जाती है जिसके कारण यह बहुत शीतल है। जब किसी ग्रह पर बृहस्पति की दृष्टि होती है तो सारे दोष दूर हो जाते हैं और इनकी दृष्टि को अमृत माना गया है। जिस भाव को बृहस्पति दृष्टि कर लेते हैं उस भाव में शुभत्व आ जाता है और उस भाव की रक्षा होना माना गया है। बृहस्पति को पुत्र का कारक माना गया है। जन्मपत्रिकाओं में बृहस्पति से पुत्र के शुभ-अशुभ देखे जाते हैं। बृहस्पति हर लग्न के लिए शुभफल नहीं देते। सामान्य रूप से बृहस्पति की महादशा में नवीन वस्त्र की प्राप्ति होती है। नौकर-चाकर और परिवार के लोगों में वृद्धि होती है, पुत्र की प्राप्ति होती है, धन व मित्रों में वृद्धि होती है, प्रशंसा मिलती है, श्रेष्ठ व्यक्तियों से सम्मान प्राप्त होता है परंतु गुरुजनों का, पिता आदि का वियोग सहना पड़ता है। कफ रोग होते हैं और कान से संबंधित समस्याएं आती हैं।
बृहस्पति को 2, 5, 9, 10 और 11वें भाव का स्थिर कारक माना गया है। आमतौर से अपने ही भाव में कारक को अच्छा नहीं माना गया है परंतु दूसरे भाव में बृहस्पति को लाभ देने वाला माना गया है।
प्रत्येक लग्र के लिए बृहस्पति का शुभ-अशुभ: मेष लग्न में बृहस्पति योगकारक हैं। वृषभ व मिथुन लग्न के लिए पाप फल देते हैं। कर्क, सिंह लग्न के लिए बृहस्पति शुभ फलदायी हैं परंतु कन्या और तुला लग्न के लिए अशुभ फलदायी होते हैं। वृश्चिक लग्न के लिए बृहस्पति शुभफल देने वाले, धनु लग्न के लिए सम, मकर और कुंभ लग्न के लिए पाप फल देने वाले और मीन लग्न के लिए शुभफल माने गए हैं।
बृहस्पति जन्मपत्रिका में जब वक्री होते हैं तब अत्यंत शक्तिशाली परिणाम देते हैं। आमतौर से बृहस्पति अपनी सोलह वर्ष की दशा भोगने के बाद ही पूरे परिणाम देते हैं और जिस भाव के अधिपति होते हैं उसका तो निश्चित परिणाम देते हैं। जिस भाव पर इनकी दृष्टि हो, उस भाव के भी शुभ परिणाम देेते हैं। दैनिक भ्रमण में भी बृहस्पति जिस-जिस भाव पर दृष्टि करते हुए चलते हैं उस भाव के शुभ परिणामों में वृद्धि हो जाती है। जिस भाव के स्वामी के साथ बृहस्पति युति कर रहें हो तो उस भाव के स्वामी के भी शुभफल आना शुरु हो जाते हैं। बृहस्पति अस्त होते हैं तो अशुभ परिणाम देते हैं। जन्मपत्रिका में अस्त होने से शरीर में वसा संबंधी विकृतियां आती हैं और आमतौर से पेट और लीवर इत्यादि प्रभावी होते हैं। बृहस्पति जब आकाश में अस्त चल रहे होते हैं तो मुहूर्त नहीं निकाले जाते। मूल जन्मपत्रिका में भी यदि बृहस्पति अस्त हो गए हों तो विवाह में शुभ नहीं माने जाते हैं। कन्याओं की जन्मपत्रिकाओं में बृहस्पति को विवाह का कारक माना जाता है और इनका अस्त होना अच्छा नहीं माना जाता। मंगल और बृहस्पति का जन्मपत्रिका में परस्पर संबंध भी शुभ नहीं माना जाता।
बृहस्पति जिस भाव में बैठे होते हैं उसी भाव की चिंता कराते हैं। सप्तम भाव में स्थित बृहस्पति विवाह के लिए शुभ नहीं माने जाते हैं। या तो यह विवाह होने नहीं देते या विवाह को टिकने नहीं देते। पंचम भाव में स्थित बृहस्पति अधिकांश राशियों में कन्या अधिक देते हैं और पुत्र कम देते हैं।
यदि बृहस्पति जन्मपत्रिका में अस्त या वक्री हों तो मोटापे से संबंधित दोष आते हैं और पाचन तंत्र के विकार परेशान करते हैं। जब-जब गोचर में बृहस्पति लग्न, लग्नेश तथा चंद्र लग्न को देखते हैं तो वजन बढऩे लगता है क्योंकि खानपान का स्तर उच्चकोटि का रहता है। बृहस्पति जब-जब बलवान होंगे, गरिष्ठ भोजन करने को मिलेगा और सभाओं में और दावत में जाने का अवसर मिलता रहेगा।
बृहस्पति अपनी दशाओं में व्यक्ति को लेखक बनाते हैं, धार्मिक बनाते हैं, व्यक्ति की प्रसिद्धि कराते हैं और लोग व्यक्ति से सलाह लेने आते हैं। व्यक्ति की मित्रता राज्य के अधिकारियों से होती है और वह बड़े लोगों की संगत में बैठता है। बृहस्पति ज्ञान में वृद्धि करते हैं, यज्ञ-हवन कराते हैं और शरीर व मस्तिष्क पर तेज आता है। यदि जन्मकाल में बृहस्पति केन्द्र में उच्च या स्वराशि में होकर बैठ जाएं तो हंसयोग बनाते हैं जिसमें व्यक्ति महान होता चला जाता है। यदि चंद्रमा से केन्द्र में बृहस्पति हों तो गजकेसरी योग बनता है जिसके प्रभाव में व्यक्ति समाज में ऊंचा उठता हुआ चला जाता है। हंसयोग में जन्मे व्यक्ति के हाथ व पैरों में शंख, कमल आदि के चिन्ह मिलते हैं। सौम्य शरीर होता है, उत्तम भोजन करने वाला होता है और लोग उसकी प्रशंसा करते हैं।
बृहस्पति के बारे में कुछ विशेष : यदि नीच राशि के हों, अस्तंगत हों, लग्न से 6, 8, 12 में हों, शनि, मंगल से दृष्ट हों या युत हों तो अपने करीबी लोगों से और सरकार से कलह होती है, चोर से कष्ट होता है, माता-पिता के लिए हानिकारक है, मानहानि होती है, राजभय होता है, धन नाश होता है, विष से या सर्प से या ज्वर से पीड़ा होती है और खेती और भूमि की हानि होती है।
यदि महादशानाथ से बृहस्पति केन्द्र-त्रिकोण में हों या 11वें भाव में हों और षड्बल से युक्त हों तो बंधुओं से और पुत्र से सुख होता है, उत्साह होता है, धन, पशु और यश की वृद्धि होती है और अन्न इत्यादि का दान करते हैं। आजकल पशुओं की जगह कारें आ गई हैं। यदि महादशानाथ से 6, 8, 12 में स्थित बृहस्पति निर्बल हो जाएं तो दु:ख, परेशानियां, रोग, भय, स्त्री और बंधु से द्वेष होता है, बहुत ज्यादा खर्चा होता है, राजकोप होता है, धन हानि होती है और ब्राह्मण से भय होता है। बृहस्पति यदि द्वितीयेश या सप्तमेश हों या दूसरे और सातवें भाव में हों तो कष्ट होता है।
बृहस्पति के दोषों के निवारण के लिए शिव सहस्त्र नाम जप, गऊ और भूमि का दान तथा स्वर्ण दान करने से अरिष्ट शांति होती है।
गजकेसरी योग: चन्द्रमा से केन्द्र में यदि बृहस्पति हों तो गजकेसरी योग होता है। गजकेसरी योग में व्यक्तिमें गज और केसरी दोनों के गुण आते हैं। हाथी जैसा बल और सिंह जैसा चातुर्य दोनों जिसमें हों वह व्यक्ति धीरे-धीरे जीवन में प्रगति करता है और सबसे ऊपर उठ जाता है परन्तु इस योग में भी बहुत सारे स्तर हैं। जैसे- अष्टम में चंद्रमा हों और तब उससे गजकेसरी योग बने तो कमजोर हो जाता है। इसी प्रकार बृहस्पति 6, 8, 12 भाव में बैठकर चंद्रमा से गजकेसरी योग बनाएं तो कमजोर हो जाता है।
यदि चंद्रमा अपनी ही राशि में हों और उसी में बृहस्पति हों तो गजकेसरी योग बहुत शक्तिशाली होगा परन्तु यही योग यदि लग्न में हो तो वह योग और भी शक्तिशाली हो जाएगा। केन्द्र में कर्क राशि में बनने वाला गजकेसरी योग सर्वाधिक शक्तिशाली माना जाता है क्योंकि केन्द्राधिपति दोष न होने पर भी लग्नेश चंद्रमा लग्न में हों तो सबसे अधिक शक्तिशाली होते हैं। यहां पर बृहस्पति नवमेश भी होने के कारण भाग्येश हुए और व्यक्ति के जीवन में बहुत उन्नति देखने को मिलेगी। एक अन्य शक्तिशाली स्थिति है जिसमें कर्क राशि पंचम भाव में हो और बृहस्पति दूसरे भाव में हों। यह दोनों अत्यन्त शक्तिशाली स्थितियां हैं। एक अन्य परिस्थिति है जिसमें चंद्रमा धनु लग्न में हों और बृहस्पति मीन राशि में हों। यह भी अतिशक्तिशाली योग है परन्तु इनमें से एक भी ग्रह खराब भाव में चला गया तो गजकेसरी योग में कमी आ जाती है। गजकेसरी योग अन्य जिन बातों के कारण कमजोर होता है उनमें बृहस्पति और चंद्रमा का केन्द्राधिपति दोष से पीडि़त होना, चंद्रमा का क्षीण होना तथा चंद्रमा या बृहस्पति का नीच राशि, शत्रु राशि, नीच नवांश, अस्तंगत होना या पापकर्तरि में होना शामिल है। गजकेसरी योग बलवान हो जाता है यदि योग बनाने वाले ग्रह उत्तम वर्गों में हों या शुभ ग्रहों से दृष्ट हों या युत हों तथा चंद्र और बृहस्पति षड्बल से युक्त हो जाएं। दो गजकेसरी योगों के फलों में 1 और 100 का अनुपात हो सकता है।
स्त्री जातक और बृहस्पति: स्त्रियों के गुण-अवगुणों का पता लगाने के लिए त्रिंशांश कुण्डली का प्रयोग किया जाता है। त्रिंशांश कुण्डली में मंगल और शनि के त्रिंशांश बहुत ही खराब माने गए हैं परन्तु यदि बृहस्पति के त्रिंशांश में हों तो वह स्त्री बहुत गुणी मानी जाती है। चंद्रमा, शुक्र और बुध के त्रिंशांश में भी दोष बताए गए हैं परन्तु किसी भी लग्न में लग्नेश या ग्रह बृहस्पति के त्रिंशांश में हों तो वह स्त्री अत्यन्त गुणवती मानी गई है। बृहस्पति एकमात्र ऐसे ग्रह हैं जो किसी भी राशि में हों, अगर कोई ग्रह बृहस्पति के त्रिंशांश में पड़ जाए तो उसे शुद्ध, पवित्र और मंगलकारी माना गया है।
वेद आदि का ज्ञान: यदि लग्न समराशि हो और बृहस्पति बलवान हों तो स्त्री शास्त्रों में निपुण और वेदों के अर्थ को जानने वाली होती है।
विवाह लग्न: विवाह लग्न में यदि बृहस्पति हों तो वह स्त्री धनवान हो जाती है और पति का सुख मिलता है। यदि विवाह लग्न से तीसरे में बृहस्पति हों तो वह स्त्री संतान वाली और धनवान हो जाती है। यदि विवाह लग्न से पांचवें स्थान में बृहस्पति हों तो कई पुत्र होते हैं। विवाह लग्न से सातवें बृहस्पति शुभ नहीं माने गए हैं और न ही आठवें भाव में शुभ माने गए हैं। विवाह लग्न से दसवें भाव में बृहस्पति, स्त्री को धार्मिक बनाते हैं।
दशम भाव और बृहस्पति: किसी भी भाव से बृहस्पति यदि दशम भाव को देखें तो कितने भी अरिष्ट हों, शांत हो जाते हैं। राजा से या नियोक्ता से या पिता से लाभ होता है, समाज में सम्मान बढ़ता है। केवल लग्न से छठे बृहस्पति की निंदा की गई है क्योंकि वे व्यक्ति को ऋणग्रस्त कराते हैं।
बृहस्पति का दशाक्रम: बृहस्पति अपनी महादशा में शुभ फल करेंगे यदि वे लग्न, पंचम, नवम, चतुर्थ या दशम के स्वामी हों। यदि केन्द्र के स्वामी हों तो बृहस्पति की सामथ्र्य में एकदम से कमी आ जाएगी और केन्द्राधिपत्य दोष के कारण बहुत कम शुभ फल देंगे इसीलिए बृहस्पति सदा त्रिकोण के स्वामी होने पर शानदार फल देते हैं। अपनी मित्र अंतर्दशाओं में शुभ फल देते हैं और अपनी शत्रु अंतर्दशाओं में खराब फल देते हैं। यदि बृहस्पति लग्नेश के मित्र हुए तो अत्यन्त शुभ फल प्रदान करेंगे और लग्नेश के शत्रु हुए तो खराब फल देंगे।
बृहस्पति महादशा में शुक्र अन्तर्दशा में बृहस्पति और शुक्र के घात-प्रतिघात से नुकसान हो सकता है। कुण्डलियों में बृहस्पति का अस्त होना या सूर्य के साथ योग बनाना शुभ परिणामदायी नहीं माना गया है। गुर्वादित्य योग में या बृहस्पति के अस्त होने से विवाह असफल हो जाते हैं, ऐसा माना गया है। प्राय: वक्री बृहस्पति या अस्त बृहस्पति या नीच बृहस्पति स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं खड़ी करते हैं। पाचनतंत्र के विकार, आंखों से संबंधित विकार और मोटापे से संबंधित विकार बृहस्पति की देन है। बृहस्पति बलवान होने पर व्यक्ति को अहंकारी बना देते हैं। हथेली में यदि बृहस्पति पर्वत ज्यादा उन्नत हो जाए तो स्वाभिमानी व्यक्ति को कब अहंकारी बना दें पता ही नहीं चलता। बृहस्पति यदि दोष युक्त हों तो स्वभाव में मिथ्या अहंकार जन्म लेता है और व्यक्ति अपने सामने किसी को भी कुछ नहीं समझता। उसके व्यवहार में बहुत जल्दी परिवर्तन आते हैं।
गोचर: बृहस्पति अपनी कक्षापथ में 13 वर्ष में एक चक्कर पूरा कर लेते हैं। करीब एक वर्ष एक राशि में रहते हैं। वर्ष में एक बार वे अस्त होते हैं और एक बार वक्री होते हैं। कई बार ऐसा देखा गया है कि बृहस्पति किसी राशि से अगली राशि में चले जाते हैं और पुन: पिछली राशि में आकर (वर्तमान से) अगली राशि में चले जाएंगे। एक वर्ष में तीन राशियों में रहने से बृहस्पति अतिचारी हो जाते हैं और आखिरी भाग में निष्फल हो जाते हैं। वक्री बृहस्पति अतिशक्तिशाली होते हैं और शुभ हैं तो अत्यन्त शुभ परिणाम और यदि वे अशुभ हो गए हों तो अत्यन्त अशुभ परिणाम देते हैं। बृहस्पति जब अस्त होते हैं तो शुक्र की भांति शुभ मुहूर्त नहीं किए जाते और इसे सामान्य भाषा में तारा डूबना बताया गया है।
सिंहस्थ गुरु का विचार: सिंह राशि में गुरु होने पर कई सारे कार्यों का निषेध बताया गया है। भारत के कई क्षेत्रों में विवाह इत्यादि निषेध किया गया है। न केवल विवाह बल्कि व्रत, यात्रा, नगर प्रासाद, घर आदि का निर्माण, मुण्डन, विद्या और उपविद्या ज्ञान करने का निषेध किया गया है तथा क्षौैरकर्म, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, दीक्षा, परीक्षा, तीर्थयात्रा, भूमि दान व देव प्रतिष्ठा कराने पर शुभ फल प्राप्त नहीं होता है, ऐसा कहा गया है। वसिष्ठ ऋषि ने यह बताया है कि गोदावरी से उत्तर से और गंगा के दक्षिण भाग में सिंह के गुरु में विवाह नहीं करना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि अन्य भागों में विवाह किया जा सकता है। कुछ विद्वानों ने एक तर्क दिया है कि जब सिंह राशि में गुरु हों और मेष राशि में सूर्य हों तो कुछ कार्य किए जा सकते हैं। कुछ परिस्थितियां ऐसी हैं जिनमें सिंह के गुरु में, मेष का सूर्य होने पर विवाह आदि किए जा सकते हैं, शेष महीनों में नहीं किए जा सकते।
इसी तरह से मकर राशि के बृहस्पति जब तक बृहस्पति अपने परम नीच अंश में नहीं पहुंच जाएं तब तक विवाह इत्यादि नहीं करना चाहिए। करीब-करीब 60 दिनों का निषेध कुल मिलाकर बताया है। इसी तरह से गुरु के अतिचारी या वक्री होने पर 28दिनों तक यज्ञोपवीत और विवाह इत्यादि नहीं किए जाते। सूर्य और बृहस्पति का योग जब एक ही नक्षत्र में हो तो विवाह के लिए अत्यन्त अशुभ सिद्ध होता है। सूर्य की राशि में बृहस्पति और बृहस्पति की राशि में सूर्य हों तब भी कुछ मुहूर्त नहीं किए जाते और उसकी निंदा की गई है।
बृहस्पति को लेकर बहुत अधिक कहा गया है और इनका उल्लेख इसलिए किया गया है कि बिना महादशा के भी उपरोक्त परिस्थितियों में बृहस्पति शुभ और अशुभ देने में समर्थ हैं। इनके दिन में दर्शन होने पर भी मुहूर्त के दृष्टिकोण से अशुभ मान लिया गया है।
बृहस्पति जिन ग्रहों के साथ मिलकर योग बनाते हैं वे अपनी-अपनी दशाओं में बृहस्पति का भी फल देते हैं।


1 comment:

  1. Hi Sir

    Wishing a very Happy New Year 2017 to you all and your family.

    Please check when shall I get married. My Jupitor is on Virgo ascendant with Saturn. Both are retrograde.

    Date of Birth: 10 February 1981 Tuesday
    Time of Birth: 21:43 (=09:43 PM), Indian Standard Time
    Place of Birth: Bhubaneswar (Orissa), India
    Latitude: 20.13N Longitude: 85.50E
    Gender : Male ; Marital Status : Single

    Kindly check when my marriage will happen. Love/Arranged Marriage. Physical appearance, beauty, job& education , nature of wife and my marital life please.

    I am wearing 6ct White Opal right hand index finger silver ring,White Sapphire Middle finger Golden ring and an Emerald little finger silver ring from past 10 months.

    Thanks & Regards,
    Sumit Tripathy

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