Saturday, August 21, 2010

हमारे गणेश जी

पार्वती ने माघ शुक्ल त्रयोदशी से प्रारंभ करके एक वर्ष के लिए पुन्यक नामक व्रत किया और स्वयं भगवान कृष्ण ने उनसे गणेश के रूप मे जन्म लिया। इन गणेशजी को देवताओं से पहले पूजा का वरदान मिला। इसके पश्चात् से ही अब किसी भी पूजा में पहले गणेशजी की पूजा होती है और फिर अन्य देवताओं की पूजा होती है।
गणेशजी का स्वरूप: गणेश के हाथी जैसे मुख को लेकर दो किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। सबसे ज्यादा प्रसिद्ध तो यह है कि माता के आदेश से गणेशजी उनके स्नान के समय बाहर द्वार पर रक्षा कर रहे थे कि उस समय भगवान शिव वहां आए और अंदर जाने का प्रयास किया। गणेश के रोकने पर भगवान क्रुद्ध हो गए और उन्होंने उसकी गर्दन उ़डा दी। उनका सिर सीधे कृष्ण लोक को चला गया। बाद में पार्वती के नाराज होने पर उन्होंने दूसरा सिर लगाने की सोची, फलस्वरूप एक हाथी का सिर आया और उसे गणेशजी के लगा दिया गया। बाद में भगवान ने उस हाथी को भी दूसरा सिर लगाकर उसका कल्याण किया और उसे उत्तम लोक प्रदान किया।
ब़डे कान, नाक, छोटी आंखें, ब़डी तोंद और हाथी का सिर। ब़डे कान से तात्पर्य अधिक श्रवण शक्ति, छोटी आंखों का मतलब भविष्य दृष्टि, ब़डी तोंद का प्रतीकात्मक तात्पर्य हर रहस्य तथ्य और अनुभव को पचा जाना और सूंड का अर्थ दूर से भी किसी व्यक्ति को पहचान लेना। गणेश की असाधारण शक्तियां अद्भुत हैं और अद्वितीय हैं।
किस चीज के देवता हैं ? ज्ञान और प्रतिभा के स्वामी हैं गणेशजी। प्रथम पूज्य हैं। विƒ विनाशक हैं, किसी भी कार्य को सम्पन्न करने से पूर्व अगर उनकी पूजा की जाए तो बाधाएं नहीं आने देते। बुद्धि और चातुर्य में उनका कोई सानी नहीं है।
गणेशजी और महाभारत- महाभारत लिखने के समय यह सवाल आया कि इतनी महान रचना को कौन लिखेगाक् भगवान वेदव्यास की गति बहुत तेज थी, उन्हें केवल गणेश पर ही भरोसा था परन्तु गणेश भी एक शर्त पर ही राजी हुए कि बोलते-बोलते बीच मे रूकेंगे नहीं, अगर बीच मे रूकेंगे तो यह महाकाव्य कभी पूरा ही नहीं होगा। बाद में वेदव्यास ने एक चतुराई चली कि गणेशजी से उन्होंने आग्रह किया कि बिना समझे वह लिखेंगे नहीं। जैसे ही व्यासजी को कुछ परेशानी हुई उन्होंने कोई कोई श्लोक ऎसा बोला जिसको कि समझने में गणेशजी को समय लगता। और इस तरह से महाभारत नाम का महाकाव्य पूरा हुआ।
मूषक उनका वाहन- इन्द्र के साथ गंधर्व नाम का क्रौंच था जो कि एक बहुत अच्छा गायक था। वो एक दिन एक संत पर हंसा। संत ने उसे श्राप दिया कि तुम अगले जन्म में मूषक के रूप मे जन्म लोगे। मूषक उस समय ऋषि पाराशर के निवास के स्थान के पास जाकर गिरा। वहां पर गणेश के एक अवतार गजानन रह रहे थे। मूषक वहां आसपास रहने वालों को तंग करता था। ऋषि पाराशर ने गजानन से कहा कि ""इस समस्या से छुटकारा दिलाओ। गजानन ने मूषक रूप में क्रौंच को पक़ड लिया और कहा कि ""मुझे तुमसे कुछ भी नहीं चाहिए पर मैं तुम्हारी सवारी करूंगा और जब मेरी इच्छा हो, तुम्हें मेरे साथ चलना होगा।"" गणेश तुरन्त मूषक पर आसीन हो गए और अपना आकार तो नहीं घटाया पर वजन घटा लिया और इस तरह से उन्हें उनका वाहन मिल गया।
तुलसी का श्राप- तुलसी धर्मराज की पुत्री थीं। एक बार वो भगवान नारायण के ध्यान में घूम रही थीं कि गंगा नदी के किनारे अत्यन्त सुगंध वाला पुष्प, पल्लवयुक्त एक आश्रम देखा। गणेशजी अपने यौवन मे थे और पीले वस्त्रों मे भगवान कृष्ण की आराधना कर रहे थे। तुलसी उनसे आकर्षित हुईं और उन्हें विवाह का प्रस्ताव दिया। गणेशजी ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि उन्हें विवाह की इच्छा नहीं है। तुलसी नाराज हुई और उन्होंने गणेश को श्राप दिया कि आप अवश्य विवाह करेंगे। इस पर गणेशजी ने भी उन्हें श्राप दिया कि आप भी अवश्य विवाह करेंगी परन्तु असुर से करेंगी और उसके बाद एक वृक्ष के रूप में जन्म लेंगी। तुलसी को जब अपनी गलती समझ में आई तो उन्होंने दया की याचना की। तब भगवान ने द्रवित होकर कहा कि - ""तुम सभी वृक्षों की श्रेष्ठ सुगंधी को धारण करोगी। देवता आपकी सुगंध से प्रसन्न होंगे। भगवान विष्णु आपकी पत्तियों से पूजे जाने पर विशेष्ा प्रसन्न होंगे परन्तु आपकी पत्तियों से की हुई पूजा को मैं स्वीकार नहीं करूंगा।"" इसके बाद गणेशजी बद्रीकाश्रम चले गए।
क्या गणेशजी अकेले हैंक्? दक्षिण भारत में मान्यता है कि गणेशजी ब्रrाचारी हैं। उसका कारण एक मिथक बताया जाता है कि गणेशजी की माता पार्वती एक सम्पूर्ण और सबसे सुन्दर स्त्री थीं और माता से उन्होंने कहा कि आपके समान ही किसी को लाएंगे तो ही विवाह करेंगे।
गणेशजी के अवतार - महोदकट विनायक- कृति युग में इस अवतार की दस भुजाएं थीं तथा देवान्तक तथा नरान्तक इत्यादि दैत्यों का विनाश किया। माता अदिति ने इन राक्षसों के संहार के लिए जब कामना की तो भगवान गणेश ने विनायक के रूप में माता अदिति से जन्म लिया। धूम्राक्ष, जृंभा, अंधक इत्यादि अन्य राक्षसों का भी इन्होंने ही विनाश किया। गणेश पुराण के अनुसार इस युद्ध में इनका एक दांत चला गया। यद्यपि दांत को लेकर और भी कई कथाएं आती हैं।
मयूरेश्वर- त्रेता युग मे भगवान गणेश ने मयूरेश्वर के नाम से अवतार लिया। सिंधु नामक दैत्य का इन्होंने संहार किया। सिंधु ने स्वर्ग पर भी कब्जा कर लिया और पाताल में रहने लगा। स्वयं माता पार्वती ने भगवान शंकर से दिए हुए एकाक्षरी गणेश मंत्र "गं" का जप किया तो भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी को मयूरेश्वर ने अवतार लिया। उन्होंने उस समय के सभी दैत्यों का विनाश किया।
गजानन- द्वापर युग मे ब्रrााजी की निद्रा के समय जंभाई लेने से सिंदूर नामक महाघोर पुरूष उत्पन्न हुआ। उन्होंने ब्रrाा को ही बाहुपाश मे भर लेना चाहा, तब ब्रrाा ने उन्हें असुर योनि में जाने का श्राप दिया। गणेशजी ने इसका विनाश किया।
धूम्रकेतु - कलियुग मे धूम्रकेतु के अवतार की कल्पना की गई है। ऎसा माना जाता है कि कलि के अंत में जब वर्णाश्रम की मर्यादा नष्ट हो जाएगी तो वह पुन: अवतार लेंगे। गणेशजी के अन्य अवतारों मे सिंह की सवारी वाले वक्रतुण्ड ने मत्सरासुर का नाश किया, मूषक वाहन एकदंत ने मदासुर का नाश किया। महोदर भी मूषक वाहन पर आसीन हैं और मोहासुर का इन्होंने विनाश किया। लम्बोदर ने क्रोधासुर का नाश किया। विकट ने कामासुर का नाश किया। विƒनराज ने ममासुर का नाश किया। धूम्रवर्ण ने अहंतासुर का विनाश किया।
मोदक- kपुराण में लिखा है कि पार्वती ने कुमार और गणेश को जन्म दिया। दोनों ने माता से मोदक मांगा। पार्वती के पास अमृत निर्मित एक दिव्य मोदक था। जिसको देने के लिए उन्होंने शर्त लगाई। दोनों मे जो भी धर्माचरण में श्रेष्ठता प्राप्त करके पूरे विश्व का भ्रमण करके, पहले आएगा उसी को शास्त्रों का मर्मज्ञ, सब तंत्रों के प्रवीण लेखक, चित्रकार, विद्वान, ज्ञान-विज्ञान का तत्वज्ञ और सर्वज्ञ कर देने वाले उस मोदक को दूंगी। स्कंध तो मयूर पर सवार होकर विश्व भ्रमण पर निकल प़डे परन्तु गणेशजी ने केवल माता-पिता की परिक्रमा कर ली, इस पर शिवजी ने भी मोदक के साथ ही उन्हें सर्वप्रथम पूजे जाने का आशीर्वाद दिया।
गणेशजी का विवाह- शिवपुराण मे गणेशजी के विवाह का उल्लेख मिलता है। हम जानते हैं कि गणपति की मूर्ति के दोनों ओर सिद्धि और बुद्धि की स्थापना भी मिलती है। बुद्धि विश्वात्मिका है, ब्रrामयी है और सिद्धि उसको विमोहित करने वाली है। गणेशजी का इनसे विवाह हुआ था। तुलसी के श्राप से गणेशजी को विवाह करना प़डा। रूद्र संहिता के कुमार खंड में इस विवाह का वर्णन मिलता है। विश्व भ्रमण का आदेश देते समय शिवजी ने दोनों पुत्रों से कहा था, जो भी पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले लौटेगा उसका विवाह पहले होगा। गणेशजी ने माता-पिता की सात परिक्रमा करके पहले विवाह का भी अधिकार प्राप्त कर लिया। बाद मे सिद्धि से क्षेम और बुद्धि से लाभ नाम के पुत्र हुए।
गणेशजी का विग्रह- रूपमंडन ग्रंथ में गणेशजी का विग्रह कैसे स्थापित हो, उसका वर्णन मिलता है। उनके बाएं ओर गजकर्ण, दाएं सिद्धि, उत्तर में गौरी, पूर्व में बुद्धि, दक्षिण पूर्व में बाल चंद्रमा, दक्षिण में सरस्वती, पश्चिम में कुबेर और पीछे की तरफ धूम्रक के विग्रहों की स्थापना होनी चाहिए। श्रीगणेश के आठों द्वारपाल वामनाकार हैं। उनका रत्न सिंहासन है जो कि इंद्र के द्वारा दिया गया है। रत्न छत्र की प्राप्ति वरूण देवता से हुई।
गणेशजी के बारह नाम- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विƒननाशन, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र और गजानन।
जन्म से पहले पूजा- कुछ लोग शंका करते हैं कि गणेश शिवजी के पुत्र हैं फिर भी शंकर के विवाह में उनका पूजन कैसे हुआक् वास्तव में गणेश किसी के पुत्र नहीं हैं, वे अज, अनादि और अनंत हैं। इन्होंने शिवजी के यहां गणपति के रूप में अवतार लिया। अत: उन्हें शिव विवाह में पूजा गया।
विƒ गण- असुर, ब्राrाण और देवताओं को सताते थे। गणेशजी को यह वरदान था कि जो उनकी पूजा नहीं करेंगे, उन्हें वे विƒनों द्वारा बाधा पहुंचाएंगे। गणेशजी ने दैत्यों के धर्मकार्य में विƒ पहुंचाना प्रारंभ कर दिया जिससे कि उनकी सफलता में बाधा आने लगी। जो आदि गणेश हैं, उन्हें ही कृष्ण माना गया है।
एकदंत- कहते हैं कि भगवान शिव के सिर काटने पर देवताओं ने जिस हाथी को तलाश किया और उसका सिर काटकर गणेशजी के लगाने के लिए लाए, वह एकदंत ही था। मुद्गल पुराण में एक माया का प्रतीक है और दंत माया चालक सत्ता का प्रतीक है।
षोडश मातृका में गणेश- प्रत्येक अनुष्ठान में गणपति, पंचदेव, षोडश मातृकाएं, नवग्रह एवं वरूण इत्यादि की स्थापनाएं आवश्यक मानी जाती हैं। षोडश मातृकाओं में भी एक कोण पर गणेश की स्थापना की जाती है। वैसे भी गणेश को पंचलोकपालों में प्रधानता है।
कलाओं में गणेशजी- गणेशजी मूर्तिकारों और चित्रकारों के बीच मे अत्यन्त प्रसिद्ध हैं और उनके इतनी तरह के विग्रह बनाए गए हैं कि एक अलग ही कला क्षेत्र विकसित हो गया है। गणेशजी का प्रसार अत्यधिक हुआ है और वे पूरे विश्व में किसी किसी रूप मे कहीं कहीं उपस्थित मिलते हैं। जनमानस में भी गणेशजी इस तरह से छाए हुए हैं कि प्रत्येक कार्य को सफल बनाने के लिए पहले उनका पूजन किया जाता है और बाद में उनसे विƒनों के नाश की कामना की जाती है। अगर किसी का विवाह हो तो पहला कार्ड गणेशजी को अर्पित किया जाता है। किसी को कुछ लिखना हो तो कागज पर सबसे पहले ú गणेशाय नम: लिखा जाता है।
विदेशों में गणेशजी- कम्बोडिया में भगवान को केनेस कहते हैं। नेपाल में हैरम्ब और विनायक के नाम से गणपति की मूर्तियां हैं। जावा में नदियों के घाटों और अन्य भय के स्थानों पर अनेक गणेश प्रतिमाएं हैं। इण्डोनेशिया में तो हर द्वार पर गणेशजी मिलेंगे चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला इण्डोनेशिया में गणपति के आधार पर नाम रखने को शुभ माना जाता है।

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