Tuesday, June 22, 2010

मोती

मोती का नाम लेते ही एक सुखद कल्पना उभरने लगती है। सौन्दर्य, कोमलता, अंग-सौष्ठव, कमनीयता, ाा, लावण्य और शीतलता, जैसे यह सब गुण एक साथ किसी बिन्दू में भर दिए गए हों। चाहे किसी राजा के आभूषण हों या किसी स्त्री के सौन्दर्य को उभारने वाली कोई वस्तु, मोती के बिना सब अधूरे हंै। मोती में आभा होती है और मोती में आब होती है। आब हिन्दी शब्द नहीं है परंतु उसका संबंध सार तत्व या जल से है। रहीम ने ठीक ही कहा है -
"रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए ना उबरे, मोती मानस चून।।"
मोती की आब ही उसका मूल्य तय करती है। रासायनिक दृष्टि से मोती केल्यशियम कार्बोनेट है और गर्म करने पर भस्म में बदल जाता है। मोती को आघात भी पसंद नहीं है क्योंकि यह कठोर रत्नों में नहीं है। अत्यंत कीमती है और कोई भी आभूषण मोती को पाकर अत्यंत सुंदर हो उठता है। ब़डे मोती को पाना सौभाग्य का प्रतीक है।
विक्रमादित्य की सभा के नवरत्न वराह मिहिर ने कई तरह के मोतियों का उल्लेख किया है। उनमें से कुछ मोतियों का वर्णन इस लेख में दे रहे हंै।
हाथी, सर्प, सींपी, शंख, मेद्य, बांस, मछली और सूअर से मोती की उत्पत्ति होती है। सबसे श्रेष्ठ मोती सींपी से उत्पन्न माना गया है।
प्राचीन ग्रंथों में सिंहलक देश, परलोक देश, सुराष्ट्र, ताम्रपर्णी नदी, पाराशव, कौबेेर, पाण्ड्यवाचक और हिम, ये आठ मोतियों की उत्पत्ति के स्थान बताए गए हंै। इनमें से परलोक शब्द बसरा के लिए प्रयोग किए गए हैं। ईरान और ईराक के बीच में बसरा की ख़ाडी स्थित है और उसके मोती अत्यंत मूल्यवान माने गए हैं। अब युद्ध और तेल की उत्पत्ति के कारण बसरा के मोती दुर्लभ हो गए हैं। कौबेर देश संभवत: श्रीलंका के लिए प्रयुक्त किया गया है। आज भी श्रीलंका में कल्चरल मोतियों की खेती होती है जो कि कृत्रिम रूप से उत्पन्न किए गए हैं। मोतियों की खेती मुख्यत: चीन, जापान और श्रीलंका में की जा रही है। यह मोती ना केवल बहुत सस्ते होते हैं बल्कि सुंदर भी होते हैं परंतु इन्हें पहनकर लोग गर्व नहीं कर सकते। गर्व करने वाले मोती आवश्यक नहीं कि एकदम गोल और सुंदर हों परंतु उनकी आभा अत्यंत पवित्र होती है और वे ओजस्वी होते हैं।
हैदराबाद के निजाम को मोती बहुत पसंद थे और वे बाजार से सारे अच्छे मोती खरीद लेते थे। परिणामस्वरूप मोतियों की उत्पत्ति का स्थान ना होते हुए भी हैदराबाद मोतियों की ब़डी मण्डी बन गया।
गज मुक्ता
पुष्य या श्रवण नक्षत्र में, रविवार या सोमवार के दिन, सूर्य के उत्तरायण में, सूर्य या चंद्रमा के ग्रहण के दिन, ऎरावत कुल में उत्पन्न जिन हाथियों का जन्म होता है उनके दाँतों में ब़डे-ब़डे और अनेक प्रकार के चमकीले मोती निकलते हैं। इनमें छिद्र नहीं किए जाते। वराह मिहिर कहते हैं कि इन मोतियों को धारण करने से पुत्र, आरोग्य और विजय की प्राçप्त होती है।
शूकरमुक्ता
सूअर के दंत मूल में चंद्र प्रभा के समान कान्ति वाले अत्यंत गुणी मोती निकलते हैं। ये मछली के नेत्र के समान शूल, स्थूल, पवित्र और कई गुणों से युक्त होते हैं।
मेघमुक्ता
ऎसी धारणा है कि वर्षाकाल में सप्तम वायु स्कंध से बिजली के गिरने से, मेघ से उत्पन्न इन मोतियों को देव योनियों के द्वारा ऊपर की ऊपर प्राप्त कर लिया जाता है, ये मनुष्य के लिए नहीं हैं।
नाग मुक्ता
भारतीय फिल्मों में नागमणि का उल्लेख मिलता है। आम धारणाएं भी हैं कि नागमणि का अस्तित्व है। वराह मिहिर कहते हैं कि तक्षक और वासुकि नामक नाग कुल में स्वेच्छाकारी सर्प हैं जिनके फणों के अग्र भाग में स्त्रिग्ध और नीली कांति वाले मोती होते हैं। जो भी इस मोती को प्राप्त करता है उसमें चमत्ककारी शक्तियाँ जाती हैं। वराह मिहिर कहते हैं कि यदि किसी चाँदी के पात्र में इस मोती को रख दिया जाए तो अचानक वर्षा सकती है।
वराह मिहिर ने सर्प मणि को लेकर एक श्लोक लिखा है-
भ्रमरशिखिकण्ठवर्णो दीपशिखासप्रभो भुजङग्ानाम्।
भवति मणि: किल मूर्धनि योùनर्घेय: स विज्ञेय:।।
भ्रमर या मयूर के कण्ठ के समान वर्ण वाली, दीपशिखा के समान कांति वाली अमूल्य मणि सर्पो के सिर पर होती है। सर्प मुक्ता को मणि की संज्ञा दी गई है। मणियों को सामान्य रत्नों से भी ज्यादा शुभ और अमूल्य माना गया है। जो राजा या महान् व्यक्ति मणि धारण करते हैं उनको विष संबंधी दोष रोग या नहीं होते हैं और सदा विजयी होते हैं।
बांस और शंख से उत्पन्न मोती
बांस से जो मोती उत्पन्न होता है वह स्फुटिक समान कांति वाला और विषम होता है। यह बिल्कुल गोल नहीं होता। शंख से जो मोती उत्पन्न होता है वह चंद्रमा के समान कांति वाला, गोल, चमकीला और सुंदर होता है।
शंख, मछली, बांस, हाथी, सूअर, सर्प और मेघ से उत्पन्न मोती छिद्र करने लायक नहीं होते। ये सब अमूल्य बताए गए हंै।
गज मुक्ता को लेकर किंवदन्तियाँ
गज मुक्ता को लेकर कई कहानियाँ प्रचलन में हैं। गज मुक्ता के परीक्षण के लिए कई उपाय काम में लिए जाते हैं। अगर पान के पत्ते पर रख दिया जाए तो यह मुक्ता पान के पत्ते को गला देती है और केवल जाल बचता है। पानी में तैरने या ना तैरने को लेकर भी इसका एक परीक्षण किया जाता है। मुझे आज से कुछ वर्ष पूर्व जयपुर स्थित म्यूजियम ऑफ इण्डोलॉजी के संस्थापक आचार्य रामचरण व्याकुल ने एक गजमुक्ता बताई थी। जिसका वजन करीब 100 ग्राम था। उस समय उसका मूल्य वे एक करो़ड रूपये बताते थे। मुक्ता बिल्कुल भी सुंदर नहीं थी। के.एन. राव एवं मेरे पति सतीश शर्मा भी उस दौरे में मेरे साथ थे। उस म्यूजियम में एक लाख विचित्र वस्तुओं का संग्रह है, ऎसा माना जाता है। उनमें से बहुत सारी वस्तुएं मैंने स्वयं ने देखी है।
मालाएँ
एक हाथ लंबी सत्ताईस मोतियों की माला का नाम नक्षत्र माला है। यह आम मनुष्य के लिए है। देवताओं के भूषण के लिए एक हजार आठ ल़डी वाली माला बताई गई है, जो चार हाथ लंबी होती है। 500 ल़डी, 108 ल़डी और 64 ल़डी, 20 ल़डी और 16 ल़डी की मालाएँ भी होती हंै। इनके विभिन्न नाम हंै और ç़डयों की संख्या के उपयुक्त ही इनका मूल्य बढ़ता हुआ चला जाता है।
मोतियों के देवता
श्याम वर्ण के मोतियों के देवता विष्णु, चंद्रकांति वाले मोतियों के देवता इन्द्र, हरिताल के समान मोती के देवता वरूण, काले वर्ण के मोती के देवता यम, अनार के बीज के समान रक्त वर्ण के मोती के देवता वायु तथा धूमरहित अग्नि या कमल के समान कांति वाले मोती के देवता अग्नि हंै।
मूल्य
प्राचीनकाल में धरण शब्द का प्रयोग तौल के रूप में होता था। मासा, तोला या धरण को मोती के मूल्य का पैमाना समझा जाता था। एक धरण में यदि बहुत कम मोती आए तो उसे अमूल्य माना जाता था। एक धरण पर 13 मोती चढ़ जाएं तो उसका मूल्य बहुत अधिक होता था और वह ब़डे लोगों के घरों की शोभा बढ़ाता था। एक धरण पर 80 से अधिक मोती चढ़ें तो उसे चूर्ण माना जाता था और उसका मूल्य बहुत कम हो जाता था।
स्वाति नक्षत्र का मोती
तुलसीदास जी ने लिखा है कि यदि वर्षाकाल में स्वाति नक्षत्र में सींपी के मुख में वर्षा कण गिरे तो वे जिस मोती को जन्म देते हैं वह अमूल्य होता है।
ज्योतिष में धारण करने की विधि
मोती को अनामिका में चाँदी में ही धारण करना चाहिए। दाँये हाथ में गंगाजल में स्नान कराने के बाद, गणेशजी और सोम का स्मरण करके, चाँदी में सोमवार के दिन, सूर्योदय से एक घंटे के अंदर, चंद्रमा की होरा में मोती धारण करना चाहिए। इससे चंद्रमा बलवान होते हैं।

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