Wednesday, May 25, 2011

किस दशा का है इंतजार ?

मंगल की दशा उत्थान या पतन तय करती है। मंगल व्यक्ति को साधारण नहीं रहने देते हैं। मंगल के आगमन से पहले ही पराक्रम के लक्षण दिखने लगते हैं और स्वभाव में अग्नि का समावेश होने लगता है। मंगल या तो कर्ज से मुक्ति दिलाते हैं या अनन्त कर्ज में डाल देते हैं। यह काम यद्यपि बृहस्पति का है और उनके कर्ज निवारण में मंगल को भी श्रेय दिया जाता है। इसका कारण यह हो सकता है कि जीवन में किसी पराक्रम का प्रदर्शन करते समय यदि गणना में कोई गलती हो जाये, तो वह व्यक्ति परास्त हो जाता है। किसी कारखाने का घाटे में चला जाना, किसी सेना का हार जाना, कोई मुकदमा हार जाना या अपना भाग्य शत्रु को हस्तगत कर देना, व्यक्ति को दुर्भाग्य के घेरे में ले आता है। कल्पना कीजिए कि मंगल के पराक्रम के वशीभूत कोई व्यक्ति शत्रु पर आक्रमण तो कर दे, परन्तु कोई गलती हो जाये, तो फिर मृत्यु से ही साक्षात्कार होगा। एक गलती जिन्दगी भर के दु: में बदल जाती है।

स्व. पण्डित रामचन्द्र जी जोशी कहा करते थे कि उच्चा के मंगल वाला व्यक्ति झूठ बोलता है। ऎसा क्योंक् शायद इसलिए कि अब युद्ध क्षेत्र नहीं बचे, तलवारे भांजने का जमाना जा चुका है तथा मंगल देवता की कृपा से व्यक्ति शौर्य प्रदर्शन करेगा ही करेगा। नतीजतन वह वाग्विलास में शौर्य प्रदर्शन करेगा। एक उदाहरण प्रस्तुत करती हँू।

एक बच्चाा - मेरे दादाजी की चारपाई इतनी बढ़ी थी जैसे सारे गाँव की चारपाईयाँ मिलकर बनाई हो।
दूसरा बच्चाा - मेरे दादाजी इतने बढ़े थे कि बहुत सारी चारपाईयो को मिलाओं तब उन पर मुश्किल से सो पाते थे।
पहला बच्चाा - हट झूठे! फिर तेरे दादाजी कहाँ सोते थेक्
दूसरा बच्चाा - तेरे दादाजी की चारपाई
पर।

मुझे मेरे देवर के पुत्र का किस्सा याद आता है। बात उन दिनों की है जब मेरे पति वास्तु कर्म से बहुत अधिक हवाई यात्राएँ कर रहे थे। उसने अपनी क्लास टीचर के सामने क्लास में कहा कि मेरे ब़डे पापा तो हमेशा हवाई जहाज में ही रहते हैं।

यह बात साधारण नहीं है। गप्प हांकने की प्रवृत्ति आजकल बलवान मंगल देते हैं। यह जो उदाहरण है, यह केवल समझाने के लिए काम में लिया जाने चाहिए। उच्चा के या स्वराशि के मंगल शौर्य प्रदर्शन की इच्छा पैदा करते हैं और इस क्रम में झूठ या गप्प बोलना या आत्मशलांघा या घटनाओं के अविश्वसनीय वर्णन की प्रवृत्ति जाती है।

वृहतपाराशर होराशास्त्र में ग्रहों के व्यवहार का उल्लेख मिलता है। मंगल ग्रह अग्नि तत्व प्रधान हैं और जब इनकी दशा आती है, तो अग्नि का विभिन्न रूपों में दर्शन होता है। जीवन को वे किस तरह से प्रभावित करते हैं। जिसकी जन्मपत्रिका में मंगल बलवान होते हैं, वह व्यक्ति अग्नि प्रकृति होता है और जब मंगल की महादशा आती है, अग्नि विभिन्न रूपों में प्रकट होती है। सभी ग्रह अपनी-अपनी दशा में अपने महाभूत संबंधी शरीर कांति को प्रकट करते हैं। जब अग्नि स्वभाव वाला पुरूष षुदा से पीç़डत, चंचल, वीर, कृश शरीर, विद्वान्, बहुत भोजन करने वाला, तीक्ष्ण, गौरवर्ण और अभिमानी होता है।
पाराशर ने कहा है -
क्षुधार्तश्चपल: शूर: कृश: प्राज्ञोùतिभक्षण:
तीक्ष्णो गौरतनुर्मानी वह्निप्रकृतिको नर:।।



इसी प्रकार वह्नितत्व के उदय होने पर शरीर में स्वर्ण जैसी कांति, दृष्टि में प्रसन्नता, सब कार्यो में सिद्धि, शत्रूओं पर विजय और धन का लाभ होता है।
स्वर्णदीçप्त: शुभा दृष्टि: सर्वकार्यार्थिसिद्धिता।
विजयो धनलाभश्च वह्निभार्या प्रजायते।।

मंगल भूमि के कारक हैं, भूमि दिलाते हैं, भूमि से संबंध कराते हैं और भूमि से संबंधित क्षेत्राधिकार दिलाते हैं। मंगल सेनापति हैं अत: अपनी दशा में व्यक्ति को संगठनों का प्रधान बनाते हैं और मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाते हैं। अपने आप ही नेतृत्व गुण आने लगते हैं। इस क्रम में यदि मंगल शुभ हुए तो नेतृत्व सहज विकास के कारण आता है और यदि मंगल अत्यन्त उग्र हुए, तो वह भला संस्थाओं पर या भूमि पर कब्जा कर लेते हैं। नेपोलियन बोनापार्ट का एक किस्सा प्रसिद्ध है - जब उसका राज्यारोहण हो रहा था, तो पादरी मुकूट थाली में रखकर सामने आया। नेपोलियन उठाकर वह मुकूट स्वयं अपने सिर पर रख लिया और बोला कि इसे मैंने अपने पराक्रम से पाया है। यह आचरण उग्र मंगल का परिणाम है। जो धावक कई बार अपरिमित पराक्रम का परिचय देते हैं, उनमें कहीं कहीं मंगल कुछ विशेष अंशों में होते हैं। यह लोग योजना से अधिक जोश में काम
रते हैं और कई बार अक्लपित परिस्थितियों का सृजन कर देते हैं।

जिनके मंगल उग्र हों अर्थात् अग्नि तत्व राशियों में हों, परोमच्चा या उच्चा में हों या वक्री हों या अस्त हों या राहु जैसे ग्रह के साथ हों, तो वे दुस्साहस के साथ क्रांतिकारी कदम उठाते हैं। नई जगह का अन्वेषण, गुप्त जंगलों या पह़ाडों में निर्भय होकर चले जाना, जंगलों का आग लगा देना, भरे समूह पर आक्रमण कर देना, हिंसक जानवरों से लोहा लेना, स्वयं या सं
गठन को दाँव पर लगा देना, कटु वचन बोलना इनका सहज स्वभाव है। ये पित्त से पीç़डत होते हैं और इनकी जटराग्नि सामान्य नहीं होती। ये लम्बे संकल्प लेते हैं और दिन-रात उसी चिन्तन में रहते हैं।

शारीरिक विकारों में रक्त विकार प्रमुख है। ऊँचा या नीचा ब्ल़ड प्रेशर, लीवर संबंधित समस्यायें, बैक्टीरिया से होने वाले अन्य रोग जैसे मोतिझरा इत्यादि इनको मिलते हैं। यद्यपि सूर्य और मंगल का परस्पर संबंध होना राजयोग की सृष्टि करता है या प्रशासनिक कार्य कराता है परन्तु यदि मंगल अस्त हो जाय तो शरीर के किसी किसी भाग में अग्निदाह मिलता है। मंगल लग्न पर दृष्टि डाले तो प्राय: करके आँख से ऊपर माथे पर चोट का नि
शान मिलता है। मंगल जिस भाव में मिलें, उस भाव से संबंधित संबंधी (रिश्तेदार) को पी़डा होती है।

अपनी महादशा में
ने पर मंगल दक्षिण दिशा में ले जाते हैं और अपने ही विषयों से लाभ कराते हैं। अगर अपने आप स्थान पर रहकर भी व्यक्ति व्यवसाय करे तो जन्मस्थान से दक्षिण के लोग - कर संबंध स्थापित करते हैं। मंगल को पुरूष ग्रह माना गया है इसलिए पौरूष का प्रदर्शन या पुरूषोचित्त कार्य या वीरोचित्त कार्य करने को मिलते हैं। मंगल के प्रत्यधि देवता कार्तिके माने गये हैं, जोकि देवताओं के सेनापति हैं। मंगल की प्रधानता वाले व्यक्ति का शरीर रक्तवर्ण हो जाता है। इन्हें तमोगुणी माना गया है अत: वीरोचित्त विलासिता इनके जीवन मे देखने को मिल जाती है। क्रूर रक्त नेत्र, चंचल, उदार ह्वदय, पित्त प्रकृति, क्रोधी, कृश और मध्यम देह मंगल की विशेषता है। समस्त अग्नि स्थानों के ये स्वामी हैं। जिन पर मंगल का असर है, वे आग्नेयास्थ चलाते हैं, फैक्ट्री-कारखानों में काम करते मिलेेगे, भट्टी या इस्मेलटर का कार्य करेंगे। गोला-बारूद बनाते या चलाते मिलेंगे। प्रशासन, पुलिस, संगठन, यूनियन या सुपरवाईजरी कार्यो में मंगल को खोजा जा सकता है।

नींबू जैसे कटु वृक्षों को मंगल उत्पन्न
रते हैं। मशीनों या लोहे से काम करने वालों पर मंगल का असर होता है। यदि मंगल बलवान हों, तो इन विषयों से लाभ होता है और यदि मंगल निर्बल हों, तो इन्हीं से नुकसान होता है।

मंगल बैक्टीरिया इत्यादि से उत्पन्न होने वाले रोगों को भी बढ़ावा देते हैं। चेचक इत्यादि से भी मंगल का संबंध जो़डा गया है। मंगल प्रधान व्यक्ति शारीरिक सुदृढ़ता वाले खेलों में अग्रणीय रहते हैं। कई खेलों में शारीरिक सौष्ठव की आवश्यकता प़डती है, उन सब में मंगल मुख्य भूमिका निभाते हैं।

मंगल को भूमि पुत्र कहा गया है और उनकी उत्पत्ति पृथ्वी से मानी गई है। संभवत: इसीलिए मंगल में जीवन के लक्षण खोजने के लिए बहुत अधिक चेष्टाएं होंगी। मंगल ग्रह का वातावरण भी कुछ इसी तरह का है। सूर्य के इन्फ्रारेड भाग का संबंध मंगल से है। जिस तरह से पंचमहाभूतों में से एक मंगल अग्नि प्रधान माने जाते हैं। ज्योतिष के पंचमहापुरूषों में से एक महापुरूष मंगल के कारण होते हैं, जिनकी जन्मपत्रिका में मंगल स्वराशि या उच्चा राशि में स्थित होकर केन्द्र स्थान में हों, तो यह योग रूचक योग कहलाता है। रूचक पुरूष कर्मो को लम्बा, परमउत्साही, नि:मन कांति, बलवान, सुन्दर, भकृटी, कृष्ण वर्ण, काले केश, संग्राम प्रिय, रक्तश्यामवर्ण, शत्रुजित, विवेकवान, चोरों का मुखिया, क्रूर स्वभाव, दुर्बल जंघा, ब्राrाण भक्त, हाथ में वीणा, व्रज, धनुषपात आदि गुण होते हैं। शस्त्र या अग्नि का घात उसको होता है।

लग्न चतुर्थ, पंचम, नवम्, दशम् या एकादश के स्वामी होने के अलावा मंगल तीसरे, छठे भाव के स्वामी होकर भी शुभफल करते हैं। मंगल तीन, :, दस और ग्यारह भावों में शुभफल प्रदान करते हैं। राशि से चौथे, आठवे, दसवे, ग्यारहवें स्थित मंगल शुभफल प्रदान करते हैं। मंगल और बृहस्पति का परस्पर दृष्टि संबंध वैवाहिक जीवन में समस्याएं उत्पन्न करता है। लग्न से बारहवें, पहले, चौथे, सांतवें और आठवे स्थान के मंगल मांगलिक दोष देते हैं, जोकि वैधवीय दोष का ही सुन्दर नाम है। विवाह करने से पूर्व मंगलिक वर या कन्याएं देखा जाना चाहिए। मंगल ग्रह अपनी महादशा या अन्तर्दशा में अपने श्रेष्ठ फल देते हैं। अन्य युति आदि का फल भी देते हैं परन्तु दिग्बल इत्यादि का फल अपनी ही दशा में देते हैं।

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