बचपन में जब मैं पढ़ता था और मेरे हाथ से पुस्तक गिर जाती थी तो मेरी माता या पिता दोनों में से जो भी सामने होता, वे मुझे पुस्तक उठाकर उसको माथे से लगाने के लिए कहते। उस वक्त मैं समझ नहीं पाता था कि वे ऐसा क्यों करवाते हैं? और स्कूल में जब अपनी उम्र से बड़े विद्यार्थियों को ऐसा करते देखता तो सहज जिज्ञासा होती थी कि ऐसा क्या है? परन्तु बाद में धीरे-धीरे यह समझ में आया कि यह पुस्तकें ही ज्ञान देती हैं और ज्ञान की देवी सरस्वती ऐसा करने से शायद प्रसन्न होती हैं। आज मैं देवी सरस्वती का उपासक पुस्तक के उस महत्व को समझ पाया हँू और साथ में यह भी समझ में आया कि धर्मग्रंथ या कोई भी पुस्तक इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?
विश्व में अनेक धर्म हैं। सभी धर्मों के अपने नियम और सिद्धांत हैं। सभी धर्म किन्हीं अवधारणाओं, नैतिक मूल्यों, सत्य, ईमानदारी जैसे आधारभूत सिद्धांतों पर टिके हैं। विश्वव्यापी धर्मों की व्यापकता पर प्रकाश डालने पर ज्ञात होता है कि अधिकांश धर्मों का जन्म कुछ मानवीय मूल्यों के पोषण और पालन के लिए हुआ है। इन मानवीय मूल्यों का वर्णन किसी पुस्तक, शास्त्र, ग्रंथ, संहिता, स्मृति, आरण्यक, आगम, निगम आदि में समाविष्ट होता है। यह निर्विवाद सत्य है कि धर्म मनुष्य का मूल आधार है। धर्म के बिना कोई समाज या उस समाज का व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता। यह बात और है कि विश्व के सभी व्यक्ति किसी एक ही धर्म का अनुकरण नहीं करते हैं परंतु वे किसी न किसी धर्म का अनुकरण अवश्य करते हैं। हमने कहा कि मानवमात्र का मूल आधार धर्म होता है और धर्म का मूल आधार होता है गं्रथ या पुस्तक। पुस्तक से हमारा तात्पर्य है किसी धर्म का आधारभूत सर्वमान्य संहिता या शास्त्र अथवा गं्रथ जिसके मूल्यों पर वह धर्म टिका होता है।
संसार के प्रमुख धर्मों का अवलोकन करें तो ज्ञात होता है कि उनके पूजनीय ग्रंथ व शास्त्र या पुस्तकें हैं जिन्हें उस धर्म के अनुयायी आजीवन अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। उदाहरणार्थ हिंदू धर्म में पूजनीय ग्रंथ रामचरितमानस, भागवत गीता प्रमुख हैं। इनके साथ ही कई स्मृतियां, पुराण, शास्त्र, टीकाएं आदि भी श्रद्धेय हैं। मुख्य रूप से हिंदू धर्म के अनुयायी रामायण, रामचरितमानस और भागवत गीता का पाठ करते हैं, कीर्तन करते हैं। उसे पूजा कक्ष में उच्च स्थान देकर, नियमित रूप से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। जब कभी किसी कारणवश यात्रा आदि पर जाना होता है तो अपने पूजनीय श्रद्धेय ग्रंथ का गुटिका रूप साथ ले जाते हैं और नियमित पूजा पाठ करते रहते हैं। पुस्तक पूजा उनके लिए आहार समान दैनिक कार्य होता है। हिंदू धर्म या सनातन धर्म से निकले कुछ अन्य धर्म जैसे जैन धर्म, बौद्ध धर्म आदि इन धर्मों के भी अपने श्रद्धेय ग्रंथ हैं। जैन धर्म में आगम-निगम गंं्रथ हैं तो बौद्ध धर्म में त्रिपिटिक नामक गंं्रथ पूजनीय है। इसी प्रकार ईसाई धर्म अपने पूज्य ग्रंथ बाइबिल पर टिका है। बाइबिल में ईसाई धर्म के आचरणीय सूत्रों और नियमों की विशद व्याख्या है जिनका ईसाई धर्म के अनुयायी पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा से पालन करते हैं। बाइबिल की प्रत्येक पंक्ति इन अनुयायियों के लिए स्मरणीय, पूज्य और उपदेश स्वरूप होती है।
पुस्तक पूजा को सर्वोच्च सम्मान देने वाला धर्म है सिक्ख धर्म। इस धर्म ने अपनी धार्मिक पुस्तक को ही अपना ग्यारहवां गुरु मानकर ग्रंथ को अमर पदवी दी है। सिक्ख धर्म में गुरु ग्रंथ साहिब को ग्यारहवां गुरु मानकर धार्मिक ग्रंथ के प्रति मानव जाति ने अपनी श्रद्धा की पराकाष्ठा का परिचय दिया है। आज पूरे विश्व में फैला सिक्ख समाज गुरुग्रंथ साहिब को अपना सर्वस्व मानता है तथा गुरु पद से विभूषित करता है। गुरुग्रंथ साहिब के प्रति सिक्ख अनुयायियों की श्रद्धा, भक्ति, सम्मान और प्रतिष्ठा देखते ही बनती है। सिक्ख समाज गुरुग्रंथ साहिब को गुरु मानकर उनके साक्षी रूप में ही विवाहादि सभी मंगल कार्य संपन्न करता है। किसी अन्य मांगलिक सहयोग की उन्हें कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ती। संभवत पुस्तक पूजा (ग्रंथ पूजा) के संबंध में सिक्ख धर्म विश्व के सभी धर्मों से आगे निकल गया है। गुरबानी के स्वर प्रात: कहीं भी सुने जा सकते हैं। पुस्तक पूजा के प्रति श्रद्धा में मुस्लिम धर्म भी किसी से कम नहीं है। उनका आधारभूत धर्म है कुरआन शरीफ। कुरआन शरीफ हर मुसलमान के घर में सादर पूजी जाती है उसके फातिहे पढ़े जाते हैं। कहते हैं कि एक सच्चा मुसलमान अपने धार्मिक ग्रंथ कुरआन शरीफ की हिफाजत और संरक्षण आपने प्राणों की बलि देकर भी करता है। अपने धर्म और धर्म ग्रंथ की रक्षा के लिए सभी धर्म कुछ भी बलिदान देने के लिए तत्पर रहते हैं।
हम पाठकगण का ध्यान हिन्दू धर्म / सनातन धर्म महान पोषक ग्रंथ वेदों की ओर आकर्षित करना चाहते हैं कि सनातन धर्म के ये आधार ग्रंथ आज भी प्रत्येक अनुयायी के लिए पूजनीय और श्रद्धेय हैं। वेदों को हिंदू धर्म अपना सर्वस्व मानता है। इनमें निहित सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों का सम्मान किया जाता है। जब-जब भी वैदिक धर्म के अस्तित्व पर कोई संकट आता है तो समस्त हिंदू अनुयायी उनकी रक्षा के लिए एकजुट हो जाते हैं। हमारा अभिप्राय है कि किसी भी धर्म के गं्रथ पूजनीय, अर्चनीय, श्रद्धेय होते हैं। हमें अपने धर्मग्रंथ की पूजा अर्चना करनी चाहिए और दूसरे धर्म के गं्रथों का सम्मान और आदर। इसी प्रकार पारसी धर्म का मूल आधार ग्रंथ जेंदेवस्ता है जिसमें पारसी धर्म से संबंधित मूल्यों का वर्णन मिलता है तथा यही ग्रंथ इनका पूजनीय और श्रद्धेय है। कुल प्रमुख धर्म और संप्रदायों के अलग मूलाधार ग्रंथ हैं, पूजनीय पुस्तकें हैं। जैसे कबीर रचित बीजक कबीर पंथियों के लिए श्रद्धेय और अनुकरणीय है।
पुस्तक पूजा की इस विचार श्रृंखला में लेखक का उद्देश्य हमारी संस्कृति में छुपे उन संस्कारों की ओर ध्यान आकर्षित करना है। जिन्हें हम अपनी दिनचर्या में नित्य प्रति प्रयुक्त करते हैं और वे हमारे जीवन के अभिन्न अंग बन गए हैं। जिनके बिना हमारा अस्तित्व बने रहना अत्यंत कठिन है।
पाठकगण इस पुस्तक पूजा के इस लेख को और अधिक व्यापक रूप से समझने के लिए अन्य धर्मग्रथों पर भी दृष्टिपात कर सकते हैंं। प्रश्न उठता है कि पुस्तक पूजा हमारे संस्कारों में इतनी गहनता से कैसे रच-बस गई। सहज सा उत्तर बनता है कि कोई भी धर्म ग्रंथ मनुष्य को गलत रास्ते पर जाने की अनुमति नहीं देता अपितु गलत और भ्रमित रास्ते से लौटकर सही दिशा में जाने का मार्गप्रशस्त करता है। सभी धर्मग्रंथ, पुस्तकें अपने अनुयायियों को सकारात्मक अवधारणा, आशा, धैर्य, सत्य, अहिंसा, नेकनीयती, दया, करुणा, कल्याण की भावना सिखाते हैं तथा बुरे मार्गों पर जाने से रोकते हैं। यही कारण है कि वे पुस्तकें पूजनीय हैं, वंदनीय, श्रद्धेय, अर्चनीय और सम्मानीय हैं।
विश्व में अनेक धर्म हैं। सभी धर्मों के अपने नियम और सिद्धांत हैं। सभी धर्म किन्हीं अवधारणाओं, नैतिक मूल्यों, सत्य, ईमानदारी जैसे आधारभूत सिद्धांतों पर टिके हैं। विश्वव्यापी धर्मों की व्यापकता पर प्रकाश डालने पर ज्ञात होता है कि अधिकांश धर्मों का जन्म कुछ मानवीय मूल्यों के पोषण और पालन के लिए हुआ है। इन मानवीय मूल्यों का वर्णन किसी पुस्तक, शास्त्र, ग्रंथ, संहिता, स्मृति, आरण्यक, आगम, निगम आदि में समाविष्ट होता है। यह निर्विवाद सत्य है कि धर्म मनुष्य का मूल आधार है। धर्म के बिना कोई समाज या उस समाज का व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता। यह बात और है कि विश्व के सभी व्यक्ति किसी एक ही धर्म का अनुकरण नहीं करते हैं परंतु वे किसी न किसी धर्म का अनुकरण अवश्य करते हैं। हमने कहा कि मानवमात्र का मूल आधार धर्म होता है और धर्म का मूल आधार होता है गं्रथ या पुस्तक। पुस्तक से हमारा तात्पर्य है किसी धर्म का आधारभूत सर्वमान्य संहिता या शास्त्र अथवा गं्रथ जिसके मूल्यों पर वह धर्म टिका होता है।
संसार के प्रमुख धर्मों का अवलोकन करें तो ज्ञात होता है कि उनके पूजनीय ग्रंथ व शास्त्र या पुस्तकें हैं जिन्हें उस धर्म के अनुयायी आजीवन अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। उदाहरणार्थ हिंदू धर्म में पूजनीय ग्रंथ रामचरितमानस, भागवत गीता प्रमुख हैं। इनके साथ ही कई स्मृतियां, पुराण, शास्त्र, टीकाएं आदि भी श्रद्धेय हैं। मुख्य रूप से हिंदू धर्म के अनुयायी रामायण, रामचरितमानस और भागवत गीता का पाठ करते हैं, कीर्तन करते हैं। उसे पूजा कक्ष में उच्च स्थान देकर, नियमित रूप से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। जब कभी किसी कारणवश यात्रा आदि पर जाना होता है तो अपने पूजनीय श्रद्धेय ग्रंथ का गुटिका रूप साथ ले जाते हैं और नियमित पूजा पाठ करते रहते हैं। पुस्तक पूजा उनके लिए आहार समान दैनिक कार्य होता है। हिंदू धर्म या सनातन धर्म से निकले कुछ अन्य धर्म जैसे जैन धर्म, बौद्ध धर्म आदि इन धर्मों के भी अपने श्रद्धेय ग्रंथ हैं। जैन धर्म में आगम-निगम गंं्रथ हैं तो बौद्ध धर्म में त्रिपिटिक नामक गंं्रथ पूजनीय है। इसी प्रकार ईसाई धर्म अपने पूज्य ग्रंथ बाइबिल पर टिका है। बाइबिल में ईसाई धर्म के आचरणीय सूत्रों और नियमों की विशद व्याख्या है जिनका ईसाई धर्म के अनुयायी पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा से पालन करते हैं। बाइबिल की प्रत्येक पंक्ति इन अनुयायियों के लिए स्मरणीय, पूज्य और उपदेश स्वरूप होती है।
पुस्तक पूजा को सर्वोच्च सम्मान देने वाला धर्म है सिक्ख धर्म। इस धर्म ने अपनी धार्मिक पुस्तक को ही अपना ग्यारहवां गुरु मानकर ग्रंथ को अमर पदवी दी है। सिक्ख धर्म में गुरु ग्रंथ साहिब को ग्यारहवां गुरु मानकर धार्मिक ग्रंथ के प्रति मानव जाति ने अपनी श्रद्धा की पराकाष्ठा का परिचय दिया है। आज पूरे विश्व में फैला सिक्ख समाज गुरुग्रंथ साहिब को अपना सर्वस्व मानता है तथा गुरु पद से विभूषित करता है। गुरुग्रंथ साहिब के प्रति सिक्ख अनुयायियों की श्रद्धा, भक्ति, सम्मान और प्रतिष्ठा देखते ही बनती है। सिक्ख समाज गुरुग्रंथ साहिब को गुरु मानकर उनके साक्षी रूप में ही विवाहादि सभी मंगल कार्य संपन्न करता है। किसी अन्य मांगलिक सहयोग की उन्हें कभी आवश्यकता ही नहीं पड़ती। संभवत पुस्तक पूजा (ग्रंथ पूजा) के संबंध में सिक्ख धर्म विश्व के सभी धर्मों से आगे निकल गया है। गुरबानी के स्वर प्रात: कहीं भी सुने जा सकते हैं। पुस्तक पूजा के प्रति श्रद्धा में मुस्लिम धर्म भी किसी से कम नहीं है। उनका आधारभूत धर्म है कुरआन शरीफ। कुरआन शरीफ हर मुसलमान के घर में सादर पूजी जाती है उसके फातिहे पढ़े जाते हैं। कहते हैं कि एक सच्चा मुसलमान अपने धार्मिक ग्रंथ कुरआन शरीफ की हिफाजत और संरक्षण आपने प्राणों की बलि देकर भी करता है। अपने धर्म और धर्म ग्रंथ की रक्षा के लिए सभी धर्म कुछ भी बलिदान देने के लिए तत्पर रहते हैं।
हम पाठकगण का ध्यान हिन्दू धर्म / सनातन धर्म महान पोषक ग्रंथ वेदों की ओर आकर्षित करना चाहते हैं कि सनातन धर्म के ये आधार ग्रंथ आज भी प्रत्येक अनुयायी के लिए पूजनीय और श्रद्धेय हैं। वेदों को हिंदू धर्म अपना सर्वस्व मानता है। इनमें निहित सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों का सम्मान किया जाता है। जब-जब भी वैदिक धर्म के अस्तित्व पर कोई संकट आता है तो समस्त हिंदू अनुयायी उनकी रक्षा के लिए एकजुट हो जाते हैं। हमारा अभिप्राय है कि किसी भी धर्म के गं्रथ पूजनीय, अर्चनीय, श्रद्धेय होते हैं। हमें अपने धर्मग्रंथ की पूजा अर्चना करनी चाहिए और दूसरे धर्म के गं्रथों का सम्मान और आदर। इसी प्रकार पारसी धर्म का मूल आधार ग्रंथ जेंदेवस्ता है जिसमें पारसी धर्म से संबंधित मूल्यों का वर्णन मिलता है तथा यही ग्रंथ इनका पूजनीय और श्रद्धेय है। कुल प्रमुख धर्म और संप्रदायों के अलग मूलाधार ग्रंथ हैं, पूजनीय पुस्तकें हैं। जैसे कबीर रचित बीजक कबीर पंथियों के लिए श्रद्धेय और अनुकरणीय है।
पुस्तक पूजा की इस विचार श्रृंखला में लेखक का उद्देश्य हमारी संस्कृति में छुपे उन संस्कारों की ओर ध्यान आकर्षित करना है। जिन्हें हम अपनी दिनचर्या में नित्य प्रति प्रयुक्त करते हैं और वे हमारे जीवन के अभिन्न अंग बन गए हैं। जिनके बिना हमारा अस्तित्व बने रहना अत्यंत कठिन है।
पाठकगण इस पुस्तक पूजा के इस लेख को और अधिक व्यापक रूप से समझने के लिए अन्य धर्मग्रथों पर भी दृष्टिपात कर सकते हैंं। प्रश्न उठता है कि पुस्तक पूजा हमारे संस्कारों में इतनी गहनता से कैसे रच-बस गई। सहज सा उत्तर बनता है कि कोई भी धर्म ग्रंथ मनुष्य को गलत रास्ते पर जाने की अनुमति नहीं देता अपितु गलत और भ्रमित रास्ते से लौटकर सही दिशा में जाने का मार्गप्रशस्त करता है। सभी धर्मग्रंथ, पुस्तकें अपने अनुयायियों को सकारात्मक अवधारणा, आशा, धैर्य, सत्य, अहिंसा, नेकनीयती, दया, करुणा, कल्याण की भावना सिखाते हैं तथा बुरे मार्गों पर जाने से रोकते हैं। यही कारण है कि वे पुस्तकें पूजनीय हैं, वंदनीय, श्रद्धेय, अर्चनीय और सम्मानीय हैं।
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