वास्तुशास्त्र में जीवन को प्रभावित करने वाले ऐसे अनेक तथ्य हैं परन्तु भौतिकवाद की अन्धड़ दौड़ में उनका उपयोग पा लेना लुप्तप्राय: हो गया अथवा विषय के प्रति अज्ञानतावश उसका पूरा-पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा। हमारी सृष्टि पंच भूतात्मक है अर्थात् इसमें पंच तत्वों का समावेश है। शरीर भी इन्हीं पाँच तत्वों का सम्मिश्रण है। आध्यात्मवाद में घुसकर अण्ड-पिण्ड सिद्धान्त को समझकर ही तथ्य को समझा जा सकता है।
प्रत्येक निर्माण कार्य में भी यही पंच तत्व कारक हैं, इनमें सामंजस्य बनाना ही वास्तुशास्त्र अथवा फेंगशुई सिखाता है। जब भी इन पंच तत्वों में तथा इन ऊर्जाओं में प्रकृति से विपरीत प्रभाव बनने लगता है तो उसके दुष्परिणाम हमें भोगने ही पड़ते हैं। डेविडसन की पुस्तक ‘The Great Pyramid’ का अध्ययन-मनन करें तो पता चलेगा कि पूर्व मिश्रवासियों को ऐसे प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों को ज्ञात करने का ज्ञान प्राप्त था जो मानव जीवन के लिए सर्वाधिक सु:खद था। अनेक प्राचीन मंदिर, ऐतिहासिक भवन तथा पिरामिड आदि वास्तु शास्त्र के सजीव उदाहरण हैं।
इन सबमें प्रयुक्त कोण, बिन्दु, आयत, वर्ग आदि ज्यामितीय आकृतियों में इन सकारात्मक ऊर्जाओं का विलक्षण विज्ञान छिपा है। यह विज्ञान यहाँ तक विकसित था कि पिरामिड की एक कक्ष की ऊध्र्वाधर विभाजन रेखाओं अथवा अनुप्रस्थ दीवारों की रेखाओं को नीचे आकर एक-दूसरे स्थान को काटें तो इन काट-कूटों के बीच के स्थानों का मापन पिरामिड इंचों में करके उसे वर्ष, माह, दिन में यदि जोड़ा जाए तो महत्वपूर्ण तिथियों की भविष्यवाणी तक की जा सकती थी।
पिरामिड द्वारा जिन भविष्यवाणियों का संकेत मिला है वे हंै पृथ्वी का जन्मकाल, बाढ़, मानव का भौतिक तथा आध्यात्मिक उत्थान और पतन, महान सम्राटों के अनेक नैतिक और राजनैतिक युद्ध-महायुद्ध आदि। ये पुरानिर्माण कितनी सटीक वैज्ञानिक गणनाओं पर आधारित थे इसका अनुमान उनके ज्यामितीय अध्ययनों से सहज लग जाता है। गीजा के ग्रेट पिरामिड का अध्ययन करने से वैज्ञानिकों के सामने और भी चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। उनके आधार का क्षेत्रफल निकालकर, ऊँचाई के बारह गुना संख्या से भाग देने पर जो योगफल प्राप्त होता है वह गणितीय स्थिरांक ‘पाई’ के मान (3.143) के बराबर था।
इसी प्रकार उसकी ऊँचाई को लाख गुना करने पर पृथ्वी से सूर्य की दूरी 9 करोड़ 30 लाख मील प्राप्त होती है। सूर्य की ऊर्जा कुल दूरी के लाखवें हिस्से में बससे अधिक संकेदिन्द्रत होती है। पिरामिड के मध्य का उत्तर-दक्षिण अक्ष संपूर्ण पृथ्वी को ठीक दो भागों में बाँटता है, साथ ही पृथ्वी के जल और स्थल को ठीक आधा कर देता है। इससे स्पष्ट है कि पृथ्वी के गोलाकार होने का पूर्व में ज्ञान था। पिरामिड गुरुत्वाकर्षण केन्द्र के ठीक ऊपर स्थित हंै।
इसका पदाधार 635600 मीटर है, जो पृथ्वी के अद्र्धव्यास का ठीक दसवाँ भाग है। आधुनिक मीटर इसका चालीसवाँ हिस्सा है। वर्ष में 365 दिन होते हैं, इसका सौ गुना कर, उसमें एक दिन के 24 घंटे जोडऩे पर योग 36524 होता है, यह मीटर में पिरामिड के आधार की परिधि है। इसके दरवाजे सर्वत्र पूर्वाभिमुखी हैं। उत्तरायण गति के अंत में सूर्य जिस बिन्दु तक पहुंचते हंै और वापस लौटते हैं उसको ‘वसंत संपात’ कहते हैं।
सूर्य 21 जून से इस संपात बिन्दु पर पहुँचते हंै। प्रत्येक दरवाजे का इसी बिन्दु की ओर होना निश्चय ही किसी विशिष्ट उद्देश्य की ओर इंगित करता है। यह सब अकारण नहीं हो सकता।
वैज्ञानिक यह भी मानने लगे हैं कि वास्तु के अद्भुत यह निर्माण कम से कम शवगाह नहीं हो सकते, यह अवश्य ही किसी अतिविकसित सभ्यता के उपासना गृह रहे होंगे। दूसरे यह भी मत है कि असाधारण ब्रह्माण्डीय ऊर्जा वाले तथा दिव्य रूपान्तर क्षमता वाले यह निर्माण अतिविकसित वेधशाला रही हों। जो भी रहा हो, यह अवश्य सिद्ध होता है कि निर्माण यदि वास्तु के नियमों को ध्यान में रखकर किया गया है तो वह हर दृष्टि से सुखदायी होगा। परन्तु फैराहो अथवा पूर्व-पूर्वान्तर से चले आ रहे इस विलक्षण शास्त्र का प्रयोग कालान्तर में सिवाय राज प्रासाद, मन्दिर, ऐतिहासिक भवन, स्मारकों आदि को छोड़कर नगण्य होता गया।
इसका मुख्य कारण था शहरीकरण अथवा भौतिक दौड़ की आपाधापी जिसके कारण दैहिक, भौतिक तथा आध्यात्मिक सुखों में निरन्तर कमी आती गयी। सत्तर-अस्सी के दशक में हमें शास्त्र के प्रति पुन: जागृति प्रारंभ हुई परन्तु दुर्भाग्य यहाँ रहा कि यह शास्त्र पुन: कुछेक ऐसे हाथों में चला गया जिनको या तो राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था या जिनके साथ मीडिया था। जिस कारण उनके द्वारा इसका दोहन ही हुआ और जन साधारण इसके सु:प्रभाव से अछूता रहा। हम कुछेक लोग इस दिशा में सतत् प्रयत्नशील हंै कि यह किसी की बपौती न बने बल्कि ‘सर्वे भवन्तु सु:खिन: .....’ के सिद्धान्त पर कार्य करें।
इन सब विपरीत ऊर्जाओं को अनुकूल करने में फेंगशुई बहुत सहायक सिद्ध हुई है। इस छोटे से लेख में मेरा यही प्रयास है कि जन साधारण इस गुप्तादिगुप्त विद्या को समझे, मनन करे और व्यवहार में लाए। यदि निर्माण वास्तु शास्त्र के अनुकूल नहीं हुआ है तो भी इसको अनुकूल किया जा सकता है और इसमें फेंगशुई सबसे सरल उपक्रम है। इस विज्ञान का सिद्धांत आध्यात्मविद्या में वर्णित ‘नाद’ और ‘बिन्दु’ का ही आधार है। विज्ञान भी यही मानता है कि प्रकृति के अन्तराल में एक ध्वनि प्रतिक्षण उठती है, जिसकी प्रेरणा से आघातों द्वारा परमाणुओं में गति उत्पन्न होती है और सृष्टि का समस्त क्रिया-कलाप संतुलित व्यवस्था में चलता रहता है।
फेंगशुई में सब कुछ ‘ची’ अर्थात् सकारात्मक ऊर्जा पर आधारित है। ‘ची’ के अनुकूल करने के लिए घर में नौ घंटियों वाला विंड चाइम बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है। घर की बलाएं दूर करने के लिए ड्रैगन का चित्र अनुकूल ‘ची’ देता है। उत्तर दिशा में फिश एक्वेरियम तथा दक्षिण दिशा में गरुड़ का चित्र रखना स्वास्थ्य वर्धक सिद्ध होता है। सुख-समृद्धि के लिए हँसता हुआ चीनी तोंदियल बुड्ढा, हाथ उठाए चीनी साधु बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं।
भारतीय पाश्चात्य ज्योतिष में प्रचलित 12 राशियों की भांति चीन में फेंगशुई में भी 12 राशियाँ प्रचलित हैं। इनसे संबंधित पैन्डेंट, चित्र तथा अन्य सामग्रियाँ मिलती हैं। अपनी राशि के अनुसार यदि यह घर में प्रयोग किए जाएं तो सकारात्मक ची घर में उत्पन्न किया जा सकता है।
वास्तु शास्त्र में भवन का सबसे बड़ा दोष तब माना जाता है जब उसके उत्तर, पूर्व अथवा उत्तर-पूर्व अर्थात् ईशान कोण में शौचालय स्थित हो। ऐसी स्थिति में शौचालय के दक्षिण-पश्चिम कोण में एक ऐसा कार्बन आर्क लैंप, जिसका प्रकाश उसके उत्तर-पूर्वी कोण पर पड़े, लगा दें इससे यह दोष कम होगा।
फेंगशुई के अनुसार भवन में विभिन्न स्थानों पर व्यवस्थित ढंग से दर्पण भी अनुकूल प्रभाव देते हैं। दर्पण ऊर्जा विकिरण का कार्य करते हैं। निम्न पाँच परिस्थितियों में दर्पण का प्रयोग उपयोगी सिद्ध होता है : 1. यदि कमरे की दक्षिण दीवार उत्तर से बड़ी हो, 2. ईशान में जल अथवा पूजा की व्यवस्था न हो पाई हो, 3. पश्चिमी दीवार पूर्व से बड़ी हो, 4. उत्तरी-पूर्वी कोण से दक्षिण-पश्चिम कोण छोटा हो, 5. ईशान में शौचालय हो।
फेंगशुई में भी पंचभूतात्मक तत्व का समावेश माना गया है। इन तत्वों के परे कुछ नहीं मानते। इन आकार आकृतियों का प्रयोग भी सकारात्मक ची के लिए प्रचलन में है। पाठक अपने तत्व के अनुसार लाभ उठाएं।
फेंगशुई दीपक का उपयोग वास्तु दोषों को दूर करने में मैंने बहुत उपयोगी पाया है। अपनी प्रचलित नाम राशि की दिशा अथवा उससे संबंधित ग्रह की दिशा में दीपक अपने सोने के स्थान पर सायँकाल से 2/3 घंटे जलाएं। स्वास्थ्य लाभ के लिए यह बहुत अच्छा उपक्रम सिद्ध होता है।
2. एक खुले मुँह वाले काँच के पारदर्शी बर्तन में कुछ बच्चों के खेलने वाली रंगीन गोलियाँ डाल दें। इसमें जल भरें तथा सतह पर एक सफेद फ्लोटिंग मोमबत्ती जला दें। तैरने वाली मोमबत्ती न मिले तो किसी तैरने वाली पारदर्शी सतह पर सफेद मोमबत्ती जला दें। नित्य इस दीपक का पानी बदल दिया करें। यदि बाजार से फेंगशुई दीपक मिल जाए तो अधिक अच्छा होगा।
ध्यान केन्द्रित करने के लिए बौद्ध मठों में सुगन्धित मोमबत्तियाँ मिलती हैं। इनकी भीनी-भीनी सुगन्ध में अपने चित्त का तारतम्य बाह्य मण्डल से जोड़कर अपने विवेक और प्रज्ञा ज्ञान से ‘ची’ को सकारात्मक करने का प्रयास करें - आनन्द की अनुभूति होगी।
प्रत्येक निर्माण कार्य में भी यही पंच तत्व कारक हैं, इनमें सामंजस्य बनाना ही वास्तुशास्त्र अथवा फेंगशुई सिखाता है। जब भी इन पंच तत्वों में तथा इन ऊर्जाओं में प्रकृति से विपरीत प्रभाव बनने लगता है तो उसके दुष्परिणाम हमें भोगने ही पड़ते हैं। डेविडसन की पुस्तक ‘The Great Pyramid’ का अध्ययन-मनन करें तो पता चलेगा कि पूर्व मिश्रवासियों को ऐसे प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों को ज्ञात करने का ज्ञान प्राप्त था जो मानव जीवन के लिए सर्वाधिक सु:खद था। अनेक प्राचीन मंदिर, ऐतिहासिक भवन तथा पिरामिड आदि वास्तु शास्त्र के सजीव उदाहरण हैं।
इन सबमें प्रयुक्त कोण, बिन्दु, आयत, वर्ग आदि ज्यामितीय आकृतियों में इन सकारात्मक ऊर्जाओं का विलक्षण विज्ञान छिपा है। यह विज्ञान यहाँ तक विकसित था कि पिरामिड की एक कक्ष की ऊध्र्वाधर विभाजन रेखाओं अथवा अनुप्रस्थ दीवारों की रेखाओं को नीचे आकर एक-दूसरे स्थान को काटें तो इन काट-कूटों के बीच के स्थानों का मापन पिरामिड इंचों में करके उसे वर्ष, माह, दिन में यदि जोड़ा जाए तो महत्वपूर्ण तिथियों की भविष्यवाणी तक की जा सकती थी।
पिरामिड द्वारा जिन भविष्यवाणियों का संकेत मिला है वे हंै पृथ्वी का जन्मकाल, बाढ़, मानव का भौतिक तथा आध्यात्मिक उत्थान और पतन, महान सम्राटों के अनेक नैतिक और राजनैतिक युद्ध-महायुद्ध आदि। ये पुरानिर्माण कितनी सटीक वैज्ञानिक गणनाओं पर आधारित थे इसका अनुमान उनके ज्यामितीय अध्ययनों से सहज लग जाता है। गीजा के ग्रेट पिरामिड का अध्ययन करने से वैज्ञानिकों के सामने और भी चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। उनके आधार का क्षेत्रफल निकालकर, ऊँचाई के बारह गुना संख्या से भाग देने पर जो योगफल प्राप्त होता है वह गणितीय स्थिरांक ‘पाई’ के मान (3.143) के बराबर था।
इसी प्रकार उसकी ऊँचाई को लाख गुना करने पर पृथ्वी से सूर्य की दूरी 9 करोड़ 30 लाख मील प्राप्त होती है। सूर्य की ऊर्जा कुल दूरी के लाखवें हिस्से में बससे अधिक संकेदिन्द्रत होती है। पिरामिड के मध्य का उत्तर-दक्षिण अक्ष संपूर्ण पृथ्वी को ठीक दो भागों में बाँटता है, साथ ही पृथ्वी के जल और स्थल को ठीक आधा कर देता है। इससे स्पष्ट है कि पृथ्वी के गोलाकार होने का पूर्व में ज्ञान था। पिरामिड गुरुत्वाकर्षण केन्द्र के ठीक ऊपर स्थित हंै।
इसका पदाधार 635600 मीटर है, जो पृथ्वी के अद्र्धव्यास का ठीक दसवाँ भाग है। आधुनिक मीटर इसका चालीसवाँ हिस्सा है। वर्ष में 365 दिन होते हैं, इसका सौ गुना कर, उसमें एक दिन के 24 घंटे जोडऩे पर योग 36524 होता है, यह मीटर में पिरामिड के आधार की परिधि है। इसके दरवाजे सर्वत्र पूर्वाभिमुखी हैं। उत्तरायण गति के अंत में सूर्य जिस बिन्दु तक पहुंचते हंै और वापस लौटते हैं उसको ‘वसंत संपात’ कहते हैं।
सूर्य 21 जून से इस संपात बिन्दु पर पहुँचते हंै। प्रत्येक दरवाजे का इसी बिन्दु की ओर होना निश्चय ही किसी विशिष्ट उद्देश्य की ओर इंगित करता है। यह सब अकारण नहीं हो सकता।
वैज्ञानिक यह भी मानने लगे हैं कि वास्तु के अद्भुत यह निर्माण कम से कम शवगाह नहीं हो सकते, यह अवश्य ही किसी अतिविकसित सभ्यता के उपासना गृह रहे होंगे। दूसरे यह भी मत है कि असाधारण ब्रह्माण्डीय ऊर्जा वाले तथा दिव्य रूपान्तर क्षमता वाले यह निर्माण अतिविकसित वेधशाला रही हों। जो भी रहा हो, यह अवश्य सिद्ध होता है कि निर्माण यदि वास्तु के नियमों को ध्यान में रखकर किया गया है तो वह हर दृष्टि से सुखदायी होगा। परन्तु फैराहो अथवा पूर्व-पूर्वान्तर से चले आ रहे इस विलक्षण शास्त्र का प्रयोग कालान्तर में सिवाय राज प्रासाद, मन्दिर, ऐतिहासिक भवन, स्मारकों आदि को छोड़कर नगण्य होता गया।
इसका मुख्य कारण था शहरीकरण अथवा भौतिक दौड़ की आपाधापी जिसके कारण दैहिक, भौतिक तथा आध्यात्मिक सुखों में निरन्तर कमी आती गयी। सत्तर-अस्सी के दशक में हमें शास्त्र के प्रति पुन: जागृति प्रारंभ हुई परन्तु दुर्भाग्य यहाँ रहा कि यह शास्त्र पुन: कुछेक ऐसे हाथों में चला गया जिनको या तो राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था या जिनके साथ मीडिया था। जिस कारण उनके द्वारा इसका दोहन ही हुआ और जन साधारण इसके सु:प्रभाव से अछूता रहा। हम कुछेक लोग इस दिशा में सतत् प्रयत्नशील हंै कि यह किसी की बपौती न बने बल्कि ‘सर्वे भवन्तु सु:खिन: .....’ के सिद्धान्त पर कार्य करें।
इन सब विपरीत ऊर्जाओं को अनुकूल करने में फेंगशुई बहुत सहायक सिद्ध हुई है। इस छोटे से लेख में मेरा यही प्रयास है कि जन साधारण इस गुप्तादिगुप्त विद्या को समझे, मनन करे और व्यवहार में लाए। यदि निर्माण वास्तु शास्त्र के अनुकूल नहीं हुआ है तो भी इसको अनुकूल किया जा सकता है और इसमें फेंगशुई सबसे सरल उपक्रम है। इस विज्ञान का सिद्धांत आध्यात्मविद्या में वर्णित ‘नाद’ और ‘बिन्दु’ का ही आधार है। विज्ञान भी यही मानता है कि प्रकृति के अन्तराल में एक ध्वनि प्रतिक्षण उठती है, जिसकी प्रेरणा से आघातों द्वारा परमाणुओं में गति उत्पन्न होती है और सृष्टि का समस्त क्रिया-कलाप संतुलित व्यवस्था में चलता रहता है।
फेंगशुई में सब कुछ ‘ची’ अर्थात् सकारात्मक ऊर्जा पर आधारित है। ‘ची’ के अनुकूल करने के लिए घर में नौ घंटियों वाला विंड चाइम बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है। घर की बलाएं दूर करने के लिए ड्रैगन का चित्र अनुकूल ‘ची’ देता है। उत्तर दिशा में फिश एक्वेरियम तथा दक्षिण दिशा में गरुड़ का चित्र रखना स्वास्थ्य वर्धक सिद्ध होता है। सुख-समृद्धि के लिए हँसता हुआ चीनी तोंदियल बुड्ढा, हाथ उठाए चीनी साधु बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं।
भारतीय पाश्चात्य ज्योतिष में प्रचलित 12 राशियों की भांति चीन में फेंगशुई में भी 12 राशियाँ प्रचलित हैं। इनसे संबंधित पैन्डेंट, चित्र तथा अन्य सामग्रियाँ मिलती हैं। अपनी राशि के अनुसार यदि यह घर में प्रयोग किए जाएं तो सकारात्मक ची घर में उत्पन्न किया जा सकता है।
वास्तु शास्त्र में भवन का सबसे बड़ा दोष तब माना जाता है जब उसके उत्तर, पूर्व अथवा उत्तर-पूर्व अर्थात् ईशान कोण में शौचालय स्थित हो। ऐसी स्थिति में शौचालय के दक्षिण-पश्चिम कोण में एक ऐसा कार्बन आर्क लैंप, जिसका प्रकाश उसके उत्तर-पूर्वी कोण पर पड़े, लगा दें इससे यह दोष कम होगा।
फेंगशुई के अनुसार भवन में विभिन्न स्थानों पर व्यवस्थित ढंग से दर्पण भी अनुकूल प्रभाव देते हैं। दर्पण ऊर्जा विकिरण का कार्य करते हैं। निम्न पाँच परिस्थितियों में दर्पण का प्रयोग उपयोगी सिद्ध होता है : 1. यदि कमरे की दक्षिण दीवार उत्तर से बड़ी हो, 2. ईशान में जल अथवा पूजा की व्यवस्था न हो पाई हो, 3. पश्चिमी दीवार पूर्व से बड़ी हो, 4. उत्तरी-पूर्वी कोण से दक्षिण-पश्चिम कोण छोटा हो, 5. ईशान में शौचालय हो।
फेंगशुई में भी पंचभूतात्मक तत्व का समावेश माना गया है। इन तत्वों के परे कुछ नहीं मानते। इन आकार आकृतियों का प्रयोग भी सकारात्मक ची के लिए प्रचलन में है। पाठक अपने तत्व के अनुसार लाभ उठाएं।
फेंगशुई दीपक का उपयोग वास्तु दोषों को दूर करने में मैंने बहुत उपयोगी पाया है। अपनी प्रचलित नाम राशि की दिशा अथवा उससे संबंधित ग्रह की दिशा में दीपक अपने सोने के स्थान पर सायँकाल से 2/3 घंटे जलाएं। स्वास्थ्य लाभ के लिए यह बहुत अच्छा उपक्रम सिद्ध होता है।
2. एक खुले मुँह वाले काँच के पारदर्शी बर्तन में कुछ बच्चों के खेलने वाली रंगीन गोलियाँ डाल दें। इसमें जल भरें तथा सतह पर एक सफेद फ्लोटिंग मोमबत्ती जला दें। तैरने वाली मोमबत्ती न मिले तो किसी तैरने वाली पारदर्शी सतह पर सफेद मोमबत्ती जला दें। नित्य इस दीपक का पानी बदल दिया करें। यदि बाजार से फेंगशुई दीपक मिल जाए तो अधिक अच्छा होगा।
ध्यान केन्द्रित करने के लिए बौद्ध मठों में सुगन्धित मोमबत्तियाँ मिलती हैं। इनकी भीनी-भीनी सुगन्ध में अपने चित्त का तारतम्य बाह्य मण्डल से जोड़कर अपने विवेक और प्रज्ञा ज्ञान से ‘ची’ को सकारात्मक करने का प्रयास करें - आनन्द की अनुभूति होगी।
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