षष्ठ स्थान कुण्डली में मुख्यत: रोग,
रिपु,
ऋण के लिए देखा जाता है। इस स्थान को रोग स्थान कहा गया है। रोग शरीर का पहला शत्रु अथवा रिपु है। बीमारियों से संबंधित सभी बातें षष्ठ भाव जु़डी हैं। बीमारी कब होगी,
किस प्रकार की होगी,
षष्ठ स्थान से नौकर देखे जाते हैं।व्यक्ति की सेवा भाव, काम के प्रति समर्पण, काम करने का तरीका नौकरी में कायम रहना, नौकरी से मिलने वाला वेतन, व्यक्ति जिनसे धन से जु़डी लेन-देन करता है। प्रतियोगिता से मिलने वाली सफलता, चुनाव में जीत, कोर्ट-कचहरी में जीत आदि बातें षष्ठ भाव से देखी जाती हैं। जातक के संबंधी, छोटे भाई-बहिनों की शिक्षा, घर या वाहन खरीदना, माता की यात्राएं, घर बदलना, संतान को धन प्राप्ति, पति या पत्नी की विदेश यात्रा, धन हानि, पिता का मान-सम्मान, ब़डे भाई-बहिन या दोस्त की दुर्घटना, परेशानियां आदि।
प्राय: षष्ठेश जहां भी स्थित होता है, उस भाव से संबंधित व्यक्ति के रिश्तेदार से शत्रुता होती है। ष्ाष्ठेश यदि दशम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति प्राय: पिता से शत्रुता करे। कर्म भाव में होने से कार्यक्षेत्र में शत्रु अधिक होते हैं, छोटे भाई-बहिनों से अष्टम स्थान होने से वाहन दुर्घटना होती है। माता से सप्तम भाव में होने से शारीरिक कष्ट, संतान से षष्ठ होने से संतान को बीमारी, जीवनसाथी से चतुर्थ होने से वाहन, मकान प्राप्ति, ब़डे भाई-बहिनों से द्वादश अत: खर्चा विदेश यात्रा से संभव। इस प्रकार षष्ठेश यहां स्थित होने से उपरोक्त व्यक्ति को कष्ट संभव है।
षष्ठेश सारांश रूप से निम्न लग्न वालों के लिए शुभ और अशुभ फल प्रदाता होते हैं।
अधिकतर विषम लग्न में मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, कुंभ लग्न में ज्यादा अशुभ प्रदाता होते हैं।
1. मेष लग्न में बुध अशुभ होते हैं। तृतीयेश और षष्ठेश होने के कारण अशुभ पूर्ण।
2. मिथुन लग्न में मंगल षष्ठेश और एकादशेश होने से पूर्ण अशुभ होते हैं।
3. सिंह लग्न में शनि षष्ठेश और सप्तमेश (मारक) होने से पूर्ण अशुभ होते हैं।
4. तुला लग्न में बृहस्पति तृतीयेश और षष्ठेश होने से पूर्ण अशुभ होते हैं।
5. धनु लग्न में शुक्र षष्ठेश, एकादशेश होने से अशुभ होते हैं।
6. कुंभ लग्न में चंद्रमा षष्ठेश अशुभ होते हैं। दशम में नीच भी होते हैं। अत: ओज लग्न में षष्ठेश अशुभ प्रदाता होते ही हैं। सम लग्न में षष्ठेश के साथ अन्य राशि का स्वामी शुभ होता है
अत: यह शुभप्रदाता हो जाते हैं। वृषभ लग्न में शुक्र स्वयं लग्नेश भी होते हैं, लग्नेश होने से शुभ हैं।
कर्क लग्न में षष्ठेश बृहस्पति स्वयं भाग्येश भी होते हैं। त्रिकोण स्वामी केन्द्र में होने से राजयोग कारक होते हैं।
कन्या लग्न में शनि षष्ठेश, साथ में पंचमेश भी होते हैं। त्रिकोण स्वामी दशम केन्द्र में होने से शुभ होते हैं।
वृश्चिक लग्न में मंगल, षष्ठेश स्वयं लग्नेश भी होते हैं अत: शुभ प्रदाता होते हैं।
मकर लग्न में बुध, षष्ठेश स्वयं नवमेश भी होते हैं। नवमेश (त्रिकोण) स्वामी होकर केन्द्र में राजयोग प्रदाता हैं।
मीन लग्न में सूर्य अकेले बुध अशुभ पर दशम भाव में दिग्बली मित्र राशि में शुभ प्रदाता होते हैं।
मेष लग्न में षष्ठेश बुध दशम भाव में स्थित हों तो दशम भाव में मकर राशि है, जो शनि की है
अत: शनि एवं बुध आपस में मित्र हैं परंतु बुध षष्ठेश के साथ तृतीयेश भी हैं जो मेष लग्न में अशुभ होते हैं। इस प्रकार से बुध के दशम में स्थित होने से बुध की दशा में व्यक्ति के कार्यक्षेत्र में परेशानी उत्पन्न होगी। जहां नौकरी व्यवसाय होगा वहां शत्रु उत्पन्न होंगे। व्यवसाय में घाटा लगेगा। व्यवसाय के लिए ऋण लेना प़डेगा। छोटे भाईयों के साथ यदि व्यवसाय होगा तो उस समय व्यवसाय में बंटवारा हो सकता है या पार्टनरशिप टूट सकती है।
यदि बुध 6.400 से 100 के बीच में हों तो नीच नवंाश में होंगे परंतु 26.40 से 30.00 अंश के बीच होते हैं तो कुछ अशुभ प्रभाव कम देंगे। वृषभ लग्न में षष्ठेश शुक्र दशम भाव में कुंभ राशि में होने से और 000 से 3.200 तक स्वराशि नवांश में होने से व्यक्ति के कार्यक्षेत्र में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होगी क्योंकि यहां शुक्र लग्नेश भी हैं जो मित्र राशि में स्थित हैं। इस प्रकार से जब शुक्र की दशा-अन्तर्दशा होगी तो व्यक्ति के कार्यक्षेत्र में दिक्कते नहीं आयेंगी, सामान्य स्तर का होगा, फायदा होगा। 16.40 अंश से 20.00 अंश तक होने से नवांश में उच्चा के होंगे। इसमें व्यक्ति को फायदा ही होगा। शत्रुता ना के बराबर होगी, मामा पक्ष से व्यक्ति को फायदा होगा। लग्न केन्द्र और त्रिकोण होता है अत: केन्द्र-त्रिकोण के स्वामी होकर केन्द्र में होने से व्यक्ति को राजकार्य में फायदा होगा।
मिथुन लग्न में षष्ठेश मंगल दशम भाव में दिग्बली होते हैं, अपने मित्र की राशि में स्थित होते हैं। मिथुन लग्न में मंगल षष्ठेश, एकादशेश होने के कारण अशुभ होते हैं अत: जब मंगल की दशा होगी तो व्यक्ति के कार्यक्षेत्र में परेशानियां अवश्य होंगी। व्यक्ति पर ऋण, कर्जे का भार अधिक चढ़ेगा, शत्रुता बढ़ेगी। नौकरी में हो तो व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस प्राप्त हो सकता है। भाईयों के साथ यदि व्यवसाय होगा तो उसमें पार्टनरशिप टूट सकती है अत: इस लग्न में षष्ठेश की भूमिका अशुभ होगी। मानसिक परेशानियां अधिक ही रहेंगी। कर्क लग्न में षष्ठेश बृहस्पति होते हैं। जो अपने मित्र के घर में भी होते हैं। बृहस्पति साथ ही नवमेश भाग्येश भी हैं। नवम, दशम का संबंध होने से राजयोग भी दिलवाएंगे। इस प्रकार से व्यक्ति से नौकरी या व्यवसाय प्रारंभ करने वाले होंगे तो उनकी नौकरी प्राप्त होगी, व्यवसाय का प्रारंभ होगा, शत्रु अवश्य होंगे पर परेशानी कम ही पैदा कर पायेगा। धन की व्यवस्था व्यापार के लिए आसानी से हो जाएगी। मामा और मित्रगण सभी सहयोग प्रदान करते रहेंगे, बैंक ऋण प्राप्ति भी आसानी से हो जाएगी।
यदि बृहस्पति 100 से 13.200 के बीच होगे तो उच्चा नवांश में होंगे अत: यह ज्यादा शुभकारी होंगे। सिंह लग्न में षष्ठेश शनि अपने मित्र के घर में दशम भाव में स्थित हैं पर यहां शनि सप्तमेश मारक भी होते हैं। षष्ठेश (रोग) और मारकेश शनि दशम भाव में होने से व्यक्ति के पिता को शारीरिक कष्ट भी होता है। जब शनि की अन्तर्दशा हो, कार्यक्षेत्र में अशांति और शत्रु अधिक प्रबल हों, स्थानान्तरण भी हो सकता है, ऋण कर्जा की वृद्धि होगी, व्यापार में घाटा लग सकता है। सिंह लग्न में षष्ठेश शनि दशम में अच्छे नहीं होते हैं। पिता को शारीरिक कष्ट हो सकता है। कन्या लग्न में शनि षष्ठेश होते हैं और शनि दशम भाव में स्थित होते हैं जो उनकी मित्र राशि है। शनि की एक राशि पंचम भाव में प़डती है जो त्रिकोण के स्वामी भी होते हैं। त्रिकोणेश होकर केन्द्र में स्थित होने से राजयोग कारक भी होते हैं अत: षष्ठेश दशम भाव में होकर व्यक्ति की प्रमोशन कराते हैं, ऋण से छुटकारा दिलाते हैं, शत्रु भी कम होते हैं। विशेषकर यदि 00-3.20 डिग्री तक होंगे, जो उच्चा नवांश में होने से व्यक्ति को अधिक फायदेमंद होगे। 20.00-23.20 अंश के बीच में होने से नीच नवांश में होने से ज्यादा शुभ नहीं होेगे। तुला लग्न में बृहस्पति उच्चा के होकर दशम भाव में स्थित हैं। बृहस्पति तृतीय भाव के भी स्वामी हैं जो इस लग्न के लिए अशुभ होते हैं। इस लग्न वालों के लिए बृहस्पति की दशा पूर्ण रूप से कार्यक्षेत्र में अशुभ ही होगी। व्यक्ति का स्थानान्तरण होगा। व्यक्ति के पिता से विचारों से मतभेद होगा। घर में चोरी होगी, छोटे-भाईयों से मतभेद प्रारंभ होंगे तथा भाई घर छो़डकर दूसरे स्थान में कार्य करेगा। व्यक्ति के कर्मक्षेत्र में भी शत्रु अधिक हो सकते हैं जिनसे मानसिक अशंाति रहेगी अत: षष्ठेश दशम भाव में अशुभप्रद होंगे। जब यदि बृहस्पति 200 - 23.200 तक हों तो ज्यादा अशुभ होंगे पर 00-3.200 तक हों तो सामान्य शुभफल अवश्य करेंगे।
वृश्चिक लग्न में षष्ठेश मंगल अपने मित्र के घर में सिंह राशि में होते हैं। षष्ठेश और लग्नेश होने से व्यक्ति को षष्ठेश के अशुभ प्रभाव कम होंगे। यहां मंगल दशम भाव में दिग्बली होते हैं साथ ही यदि 00-3.200 तक एवं 23.200 से 26.400 तक हो तो स्वनवांश में होने से अच्छे प्रभाव देंगे परंतु यदि 100 अंश से 13.200 अंश तक हो तो नीच नवांश में होने से शुभ प्रभाव नहीं दे पाएंगे। यदि मंगल की दशा व्यक्ति को 20 से 30 वर्ष के बीच में आ जाए तो व्यक्ति को सरकारी नौकरी प्राप्त हो सकती है। यदि व्यापार करना चाहेगा तो व्यापार होगा। कर्मक्षेत्र में उत्पन्न शत्रुओं का नाश होगा, कर्जा लेना चाहे तो तुरंत प्रभाव से प्राप्त होगा। इस प्रकार से व्यक्ति के लिए अच्छा ही होगा परंतु स्वास्थ्य संबंधी समस्या पिता के लिए अवश्य रहेगी। यदि सूर्य नीच के द्वादश भाव में हों तो।
धनु लग्न में षष्ठेश शुक्र नीच के दशम भाव में स्थित हैं। साथ ही शुक्र एकादशेश भी हैं। प्रत्येक लग्न में त्रिषडाय के स्वामी अशुभ होते हैं अत: यहां शुक्र षष्ठ-एकादश भाव के स्वामी होने से पूर्ण अशुभ होते हैं। साथ ही नीच के होने से अशुभ होते हैं। यहाँ स्थित शुक्र व्यक्ति के व्यवसाय में नुकसान कराते हैं। इनकी दशा-अन्तर्दशा में व्यक्ति का स्थान परिवर्तन होता है, कर्मक्षेत्र में शत्रु अधिक होंगे, कर्जा बढ़ेगा, स्वास्थ्य की दृष्टि से संतान पक्ष को अधिक परेशान करेंगे। स्वयं की पत्नी को कष्ट होगा, वाहन से एक्सीडेंट हो सकता है। किसी स्त्री व महिला द्वारा (कार्यक्षेत्र में) व्यक्ति पर आरोप-प्रत्यारोप लग सकते हैं। बुध 6.400 से 100 तक हों तो शुभ प्रदाता होंगे, वे उच्चा नवांश में रहेंगे।
मकर लग्न में षष्ठेश बुध होकर दशम भाव में मित्र की राशि में स्थित हैं। बुध नवमेश होते हैं, नवमेश होकर दशम भाव में स्थित होते हैं। इस प्रकार से त्रिकोण के स्वामी होकर दशम (केन्द्र) में स्थित होने से राजयोग का निर्माण करते हैं अत: बुध इस लग्न वाले को अच्छा राजयोग प्रदाता होंगे परंतु षष्ठेश होने से व्यक्ति के कार्यक्षेत्र में शत्रु उत्पन्न करेंगे। बुध की दशा में पद प्राप्ति करायेंगे, कर्ज से निवृत्ति दिलवायेंगे, स्वास्थ्य संबंधी कम अशुभता प्राप्त होगी। इस लग्न में षष्ठेश कम अशुभ प्रदाता होंगे।
कुंभ लग्न में षष्ठेश चंद्रमा होते हैं और दशम भाव में नीच राशि में स्थित होते हैं। इस लग्न में चंद्रमा षष्ठेश होने से अशुभ दूसरी राशि नहीं होने के कारण व्यक्ति के शत्रुओं की वृद्धि अधिक होंगी। व्यक्ति हमेशा मानसिक तनाव में रहेगा। विशेषकर जहां वह कार्य करता है वहां उस व्यक्ति को हमेशा दिक्कतें प्राप्त होगी। व्यक्ति व्यवसाय के लिए कर्जा लेगा, वह बढ़ता जाएगा जिससे हमेशा चिंतित रहेगा। परिवार में कलह रहेगी, स्वयं मानसिक तनाव युक्त ही रहेगा। यदि चंद्रमा 00 से 3.200 अंश तक होंगे तो कुछ कम कष्टप्रद होंगे। इसकी दशा-अन्तर्दशा में व्यक्ति का स्थानान्तरण होगा। मामा पक्ष से भी कष्ट प्राप्त होगा। मातृपक्ष से जमीन-जायदाद संबंधी विवाद हो सकता है।
मीन लग्न में सूर्य षष्ठेश होकर दशम भाव मे मित्र की राशि में स्थित होते हैं जो लग्नेश की दूसरी राशि है तथा जो शुभ है। इस प्रकार से यह सूर्य यहां दिग्बली होते हैं अत: व्यक्ति का वर्चस्व बढ़ाएंगे, शत्रु कम करेंगे, शत्रु अवश्य होंगे, जहां कार्य करेगा परंतु शत्रुओं का स्वयं ही अंत हो जाएगा। व्यक्ति सरकारी नौकरी में होगा या राज्य से किसी भी प्रकार से संबंध हो सकता है। सूर्य की दशा में व्यक्ति के ऋण संबंधी निवारण होते हैं। पिता से संबंध तनावयुक्त हो सकते हैं परंतु वाद-विवाद के बाद भी दोनों प्रेमयुक्त ही रहेंगे। व्यक्ति के पिता को शारीरिक कष्ट हो सकता है। यदि सूर्य 000-3.200 तक हों तो अच्छे फल प्रदाता होते हैं।