आजकल वेबसाइट्स नक्षत्र मिलान के आधार पर कुण्डलियों का मिलान करके दे देती हैं। पुरानी पद्धतियों में भी नक्षत्र मेलापक सारिणियां पंचाङगें में छपी रहती हैं और उनमें गुण मिलते ही कई लोग विवाह के लिए हाँ कर देते हैं। आधुनिक काल में कुछ लोग एक मिनिट में ही कुण्डली मिलान करके जवाब दे देते हैं। विवाह नहीं हुआ बल्कि फास्टफूड हो गया। अभी हाल में एक व्यक्ति ने अपनी पुत्री की जन्मपत्रिका में नक्षत्र देखकर किसी ल़डके का प्रस्ताव करते हुए उसका नक्षत्र भी बताया। उस अधिकारी की इच्छा थी कि मैं टेलीफोन पर हां भर दूं क्योंकि 21 गुण मिल रहे थे। उन्होंने यह भी बताया कि प़डोसी पंडितजी से मिलान करवा लिया था। मैंने दो आधारों पर आपत्ति की।
1. जब किसी पंडितजी ने विवाह की स्वीकृति दे दी है तो मुझसे क्यों पूछ रहे हैंक्
2. विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्य में सबसे महत्वपूर्ण कार्य को आप बहुत कम समय और तव”ाो दे रहे हैं। आप क्यों अपनी पुत्री के भविष्य के साथ खिलव़ाड करते हैं
3. आप ज्योतिषी के पास नहीं आकर टेलीफोन से ही समस्या का समाधान चाहते हैं इससे शास्त्र के प्रति घटती हुई श्रद्धा का परिचय मिलता है। ज्योतिषी को स्पष्ट मना कर देना चाहिए। मैंने अधिकारी महोदय को नहीं बताया और वे नाराज हो गए। कुछ महीनों बाद वो आए और कहा - ""मेरी पुत्री और उसके पति में विवाद चल रहा है।"" मैंने जब उसकी पुत्री की कुण्डली देखी तो आश्चर्य हुआ। उसमें निम्न दोष थे:
अ. सप्तम भाव में मिथुन राशि थी और उसमें सूर्य थे।
ब. दशम भाव से शनि सप्तम भाव को देख रहे थे।
स. एकादश भाव में स्थित केतु सप्तम को देख रहे थे।
यह एक निश्चित तलाक योग था और दुनिया की कोई ताकत इस कन्या को विवाह सुख नहीं दिला सकती है। एक छत के नीचे रहकर भी परदेशियों की तरह रहेंगे और वैवाहिक जीवन के जो भी दारूण दु:ख हो सकते हैं, वो इसके जीवन में आएंगे।
मैंने इस कन्या के पति की कुण्डली देखी, उसमें सप्तम भाव में वक्री शनि थे और कुण्डली के चतुर्थ भाव में मंगल थे। इससे भी वैवाहिक जीवन में परेशानियों का संकेत मिलता है। मैंने उन अधिकारी को इस मिलान के लिए दोषी ठहराया। उनका कहना था कि मैंने एक पंडितजी से कुण्डली दिखा तो ली थी, मैंने निष्कर्ष निकाला कि यह अंतर्दशा ढाई साल तक चलेगी अत: इस ढाई साल तक विवाह को बचा लिया जाए तब तो आगे चलेगा अन्यथा तलाक की संभावना अधिक है। सप्तम भाव के सूर्य परित्यक्त योग बनाते हैं और वर या कन्या को आक्षेप झेलने प़डते हैं।
बहुत सारे विदेशी जन्मपत्रिका मिलाकर विवाह करने लगे हैं परन्तु भारत में मेलापक पद्धति के कारण से हमारा परिवार और विवाह बचा हुआ है, इस बात के होते हुए भी मिलान पद्धति के प्रति श्रद्धा में कमी आई है।
इस संदर्भ में निम्न बातों का ध्यान रखा जाना आवश्यक है:
1. केवल नक्षत्र मिलान से कुण्डली मिला देना बहुत ब़डी गलती है।
2. आयु, स्वास्थ्य, शरीर सुख, आपसी प्रेम इत्यादि अष्टकूट और दशकूट मेलापक पद्धतियों में देखा जाता है परन्तु नक्षत्र मिलान के बाद भी जन्मपत्रिका में प़ड गए विशेष योग शून्य नहीं हो जाते। सप्तम भाव में बैठे वक्री ग्रह, चाहे कुछ भी हो जाए वैवाहिक परिस्थितियों को कठिन बनाते ही हैं।
3. चरित्र दोष के सारे योग देखने ही चाहिएं।
4. शनि और बुध की सप्तम भाव मे स्थिति व्यक्ति के जीवनसाथी की मानसिक नपुसंकता या स्नायविक दौर्बल्य की सूचना देती है।
5. सूर्य और केतु का सप्तम भाव से संबंध तलाक की संभावनाएं बढ़ाता है।
6. सूर्य, मंगल और केतु जैसे ग्रह सप्तम भाव में हों तो वैवाहिक जीवन में बहुत खराब परिस्थितियां ला देते हैं।
7. सप्तम भाव के राहु व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वभाव में मायावी आचरण ला देते हैं।
8. सप्तम भाव का अतिबलवान होना शुभ परिणाम नहीं देता है।
9. सप्तम भाव का पापकर्तरि में होना जीवन में दुर्भाग्य लाता है। सप्तमेश का पापकर्तरि में होना भी वैवाहिक जीवन में दुर्भाग्य ला देता है।
10. ऩाडी दोष को अत्यन्त गंभीरतापूर्वक लेना चाहिए। शास्त्रों में मिलता है कि यह ब्राrाणों में विशेष रूप से देखा जाना चाहिए। मेरा मानना है कि इसे सभी के मामलों में देखा जाना चाहिए। ऩाडी दोष की समानता तो नहीं करता परन्तु अमेरिका में रक्त का R.H. Factor मिलान करना इसी प्रक्रिया का एक अंग है। ऩाडी दोष वस्तुत: एक-दूसरे के शरीर को स्वीकार करने की प्रक्रिया का विश्लेषण है। कई बार इस दोष के होने पर व्यक्ति को पता भी नहीं चलता और वे अपनी दमित शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए अन्यत्र कहीं देखने लगते हैं। इस दोष के कारण मध्य जीवन में भटकाव देखने को मिलता है।
11. अष्टम भाव स्थित राहु, कमजोर बुध या दूषित मंगल तथा दूषित शुक्र व्यक्ति के मन में अपने अंगों के प्रति हीनभावना भर देते हैं। व्यक्ति अपने किसी भी अंग को लेकर अपने आप को हीन समझने लगता है। वह उसी से त्रस्त हो जाता है। इसके बाद शनि और बुध का परस्पर संबंध उसे अपने उज्ज्वल पक्षों के होते हुए भी निराशाजनक पक्षों के बारे मे ही सोचने को बाध्य कर देता है। इससे मनोवैज्ञानिक दुर्बलता आती है।
12. नपुसंकता जैसी कोई चीज आज नहीं बची है। अंग्रेजी दवाइयां या आयुर्वेद की बाजीकरण संबंधित दवाएं ज्योतिष के कुछ योगों का शमन करने में सक्षम हैं अत: ऎसे योगों के आधार पर विवाह का इनकार कर देना उचित नहीं है तथा इसी प्रकार किसी विवाह के इस आधार पर असफल होने पर विद्वान ज्योतिषी को उसका मनोबल बढ़ाकर उचित चिकित्सक के पास भेज देना चाहिए।
13. प्राय: मेरे पास बहुत सारे व्यक्ति हाथ दिखाते समय दो विवाह रेखाओं को लेकर चिंता करते हैं। भारतीय संविधान में स्पष्ट उल्लेख है कि व्यक्ति एक विवाह के होते हुए किसी अन्य से विवाह नहीं कर सकता है। यदि दूसरा विवाह करना है तो पहली पत्नी की या तो मृत्यु हो या उसे तलाक दे दिया जाए। यदि पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरा विवाह कर लिया जाता है तो वह कानून की नजर में अमान्य होता है और निष्फल होता है। हस्त रेखाओं में पहली पत्नी की मृत्यु देखने के लिए विवाह रेखा का ह्वदय रेखा तक मु़डकर पहुंचना जरूरी है। यही रेखा तलाक भी करा सकती है। विवाह रेखा का टूटना, विवाह रेखा का द्विजिह्वाकार होना या विवाह रेखा अनियमित आकार की होकर, किसी पर्वत मे या अंगुली के पोरूए में ऊपर जाकर घुस जाए तो विवाह टूटना देखा जा सकता है। एक से अधिक विवाह रेखाओं का अर्थ यह हो सकता है कि विवाह के अतिरिक्त भी उस स्त्री या पुरूष के अन्य संबंध हों। इस ओर व्यक्ति को इशारा किया जा सकता है।
14. जन्मपत्रिका के सप्तम भाव में जितने ग्रह हों उतनी पत्नियां होती हैं, ऎसा शास्त्रों में लिखा मिल जाता है। आजकल यह पूर्ण सच नहीं हैं। एक नियमित विवाह के अतिरिक्त अन्य संबंध देखने को मिल सकते हैं। मैंने बहुत सारे मामलों में परीक्षण किया और यह पाया कि कॉलेज जीवन में साल-दो साल चला अफेयर विवाह में नहीं बदल पाता परन्तु सप्तम भाव मे स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठा हुआ ग्रह, इस बात की सूचना दे देता है। यह बात इतनी व्यापक हो गई है कि अगर उस ग्रह की अन्तर्दशा निकल गई हो तो ज्योतिषी को बिना बताए निर्णय ले लेना चाहिए। मैं ऎसे सभी मामलों में यह निर्णय देता हूं कि जिसका विवाह किया जाना है उससे शत-प्रतिशत स्वीकृति आनी ही चाहिए। मां-बाप अगर किसी रिश्ते को थोप देंगे तो उसका दुष्परिणाम आगे चलकर आ सकता है। अब पिछले संबंध से निवृत्ति का उत्तरदायित्व व्यक्ति पर स्वयं पर आ जाता है। इन मामलों में जोर-जबर्दस्ती शुभ परिणाम नहीं देती।
15. डॉक्टर बी.वी. रमन छठे भाव मे मंगल की स्थिति को वैवाहिक जीवन में शुभ नहीं मानते थे। इससे तनाव देखने को मिलता है। छठे भाव में कोई भी पाप ग्रह वैवाहिक जीवन में तनाव बनाए रख सकता है।
16. बृहस्पति का सप्तम भाव मे होना वैवाहिक जीवन को टिकने नहीं देता। वही बृहस्पति अगर कहीं से सप्तम भाव या सप्तमेश को दृष्टिपात करें तो यह अमृत दृष्टि होती है और वैवाहिक जीवन को बचा लेती है।
17. अब तक के विश्लेषण में यह सामने आया कि सप्तम भाव में बृहस्पति, सूर्य, केतु, मंगल इत्यादि विवाह की असफलता में कारण बनते हैं। शनि विवाह को बचा ले जाते हैं। बृहस्पति की दृष्टि भी बचा ले जाती है। सप्तम भाव पर राहु की दृष्टि भी बंधन कारक होती है और तलाक नहीं होने देती।
18. सप्तम भाव का संबंध शनि से होने पर दम्पति की परस्पर उम्र मे कुछ अंतर मिलता है परन्तु ऎसे मामलों में जिसकी उम्र अधिक है उसके यह देखा जाना चाहिए कि लग्न पर मंगल का प्रभाव हो, इससे वो उम्र से भी कम दिखेगा और उसकी अधिक आयु मिलती है।
19. कुण्डली का मिलान करते समय जिस कूट के परिणाम कम आएं उससे संबंधित विषय वाले ग्रह का विशेष परीक्षण जन्मपत्रिका में किया ही जाना चाहिए। उस कूट की प्राप्ति के लिए उपाय अवश्य बताने चाहिएं।
20. मेरा यह मानना है कि किसी भी व्यक्ति को पंडितजी से दो मिनिट में ही मेलापक नहीं कराना चाहिए। पंडितजी को कम से कम दो घंटे तक अध्ययन करके तब मिलान का परिणाम देना चाहिए।
21. पंडितजी को मिलान कार्य के लिए 21 रूपए या 51 देना अपराध के समान है। आपके बच्चो का जीवन तय हो रहा है और आप इसको इतना हल्के रूप में ले रहे हैं। इस कार्य को व्यक्ति और ज्योतिषी दोनों को ही सम्मान देना चाहिए। बच्चाों का जीवन नरक करने का किसी को भी अधिकार नहीं है। वेबसाइट्स को भी केवल नक्षत्र मेलापक के आधार पर परिणाम दिखाकर शास्त्रों का उल्लंघन करने की आज्ञा नहीं होनी चाहिए।
1. जब किसी पंडितजी ने विवाह की स्वीकृति दे दी है तो मुझसे क्यों पूछ रहे हैंक्
2. विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्य में सबसे महत्वपूर्ण कार्य को आप बहुत कम समय और तव”ाो दे रहे हैं। आप क्यों अपनी पुत्री के भविष्य के साथ खिलव़ाड करते हैं
3. आप ज्योतिषी के पास नहीं आकर टेलीफोन से ही समस्या का समाधान चाहते हैं इससे शास्त्र के प्रति घटती हुई श्रद्धा का परिचय मिलता है। ज्योतिषी को स्पष्ट मना कर देना चाहिए। मैंने अधिकारी महोदय को नहीं बताया और वे नाराज हो गए। कुछ महीनों बाद वो आए और कहा - ""मेरी पुत्री और उसके पति में विवाद चल रहा है।"" मैंने जब उसकी पुत्री की कुण्डली देखी तो आश्चर्य हुआ। उसमें निम्न दोष थे:
अ. सप्तम भाव में मिथुन राशि थी और उसमें सूर्य थे।
ब. दशम भाव से शनि सप्तम भाव को देख रहे थे।
स. एकादश भाव में स्थित केतु सप्तम को देख रहे थे।
यह एक निश्चित तलाक योग था और दुनिया की कोई ताकत इस कन्या को विवाह सुख नहीं दिला सकती है। एक छत के नीचे रहकर भी परदेशियों की तरह रहेंगे और वैवाहिक जीवन के जो भी दारूण दु:ख हो सकते हैं, वो इसके जीवन में आएंगे।
मैंने इस कन्या के पति की कुण्डली देखी, उसमें सप्तम भाव में वक्री शनि थे और कुण्डली के चतुर्थ भाव में मंगल थे। इससे भी वैवाहिक जीवन में परेशानियों का संकेत मिलता है। मैंने उन अधिकारी को इस मिलान के लिए दोषी ठहराया। उनका कहना था कि मैंने एक पंडितजी से कुण्डली दिखा तो ली थी, मैंने निष्कर्ष निकाला कि यह अंतर्दशा ढाई साल तक चलेगी अत: इस ढाई साल तक विवाह को बचा लिया जाए तब तो आगे चलेगा अन्यथा तलाक की संभावना अधिक है। सप्तम भाव के सूर्य परित्यक्त योग बनाते हैं और वर या कन्या को आक्षेप झेलने प़डते हैं।
बहुत सारे विदेशी जन्मपत्रिका मिलाकर विवाह करने लगे हैं परन्तु भारत में मेलापक पद्धति के कारण से हमारा परिवार और विवाह बचा हुआ है, इस बात के होते हुए भी मिलान पद्धति के प्रति श्रद्धा में कमी आई है।
इस संदर्भ में निम्न बातों का ध्यान रखा जाना आवश्यक है:
1. केवल नक्षत्र मिलान से कुण्डली मिला देना बहुत ब़डी गलती है।
2. आयु, स्वास्थ्य, शरीर सुख, आपसी प्रेम इत्यादि अष्टकूट और दशकूट मेलापक पद्धतियों में देखा जाता है परन्तु नक्षत्र मिलान के बाद भी जन्मपत्रिका में प़ड गए विशेष योग शून्य नहीं हो जाते। सप्तम भाव में बैठे वक्री ग्रह, चाहे कुछ भी हो जाए वैवाहिक परिस्थितियों को कठिन बनाते ही हैं।
3. चरित्र दोष के सारे योग देखने ही चाहिएं।
4. शनि और बुध की सप्तम भाव मे स्थिति व्यक्ति के जीवनसाथी की मानसिक नपुसंकता या स्नायविक दौर्बल्य की सूचना देती है।
5. सूर्य और केतु का सप्तम भाव से संबंध तलाक की संभावनाएं बढ़ाता है।
6. सूर्य, मंगल और केतु जैसे ग्रह सप्तम भाव में हों तो वैवाहिक जीवन में बहुत खराब परिस्थितियां ला देते हैं।
7. सप्तम भाव के राहु व्यक्ति के जीवनसाथी के स्वभाव में मायावी आचरण ला देते हैं।
8. सप्तम भाव का अतिबलवान होना शुभ परिणाम नहीं देता है।
9. सप्तम भाव का पापकर्तरि में होना जीवन में दुर्भाग्य लाता है। सप्तमेश का पापकर्तरि में होना भी वैवाहिक जीवन में दुर्भाग्य ला देता है।
10. ऩाडी दोष को अत्यन्त गंभीरतापूर्वक लेना चाहिए। शास्त्रों में मिलता है कि यह ब्राrाणों में विशेष रूप से देखा जाना चाहिए। मेरा मानना है कि इसे सभी के मामलों में देखा जाना चाहिए। ऩाडी दोष की समानता तो नहीं करता परन्तु अमेरिका में रक्त का R.H. Factor मिलान करना इसी प्रक्रिया का एक अंग है। ऩाडी दोष वस्तुत: एक-दूसरे के शरीर को स्वीकार करने की प्रक्रिया का विश्लेषण है। कई बार इस दोष के होने पर व्यक्ति को पता भी नहीं चलता और वे अपनी दमित शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए अन्यत्र कहीं देखने लगते हैं। इस दोष के कारण मध्य जीवन में भटकाव देखने को मिलता है।
11. अष्टम भाव स्थित राहु, कमजोर बुध या दूषित मंगल तथा दूषित शुक्र व्यक्ति के मन में अपने अंगों के प्रति हीनभावना भर देते हैं। व्यक्ति अपने किसी भी अंग को लेकर अपने आप को हीन समझने लगता है। वह उसी से त्रस्त हो जाता है। इसके बाद शनि और बुध का परस्पर संबंध उसे अपने उज्ज्वल पक्षों के होते हुए भी निराशाजनक पक्षों के बारे मे ही सोचने को बाध्य कर देता है। इससे मनोवैज्ञानिक दुर्बलता आती है।
12. नपुसंकता जैसी कोई चीज आज नहीं बची है। अंग्रेजी दवाइयां या आयुर्वेद की बाजीकरण संबंधित दवाएं ज्योतिष के कुछ योगों का शमन करने में सक्षम हैं अत: ऎसे योगों के आधार पर विवाह का इनकार कर देना उचित नहीं है तथा इसी प्रकार किसी विवाह के इस आधार पर असफल होने पर विद्वान ज्योतिषी को उसका मनोबल बढ़ाकर उचित चिकित्सक के पास भेज देना चाहिए।
13. प्राय: मेरे पास बहुत सारे व्यक्ति हाथ दिखाते समय दो विवाह रेखाओं को लेकर चिंता करते हैं। भारतीय संविधान में स्पष्ट उल्लेख है कि व्यक्ति एक विवाह के होते हुए किसी अन्य से विवाह नहीं कर सकता है। यदि दूसरा विवाह करना है तो पहली पत्नी की या तो मृत्यु हो या उसे तलाक दे दिया जाए। यदि पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरा विवाह कर लिया जाता है तो वह कानून की नजर में अमान्य होता है और निष्फल होता है। हस्त रेखाओं में पहली पत्नी की मृत्यु देखने के लिए विवाह रेखा का ह्वदय रेखा तक मु़डकर पहुंचना जरूरी है। यही रेखा तलाक भी करा सकती है। विवाह रेखा का टूटना, विवाह रेखा का द्विजिह्वाकार होना या विवाह रेखा अनियमित आकार की होकर, किसी पर्वत मे या अंगुली के पोरूए में ऊपर जाकर घुस जाए तो विवाह टूटना देखा जा सकता है। एक से अधिक विवाह रेखाओं का अर्थ यह हो सकता है कि विवाह के अतिरिक्त भी उस स्त्री या पुरूष के अन्य संबंध हों। इस ओर व्यक्ति को इशारा किया जा सकता है।
14. जन्मपत्रिका के सप्तम भाव में जितने ग्रह हों उतनी पत्नियां होती हैं, ऎसा शास्त्रों में लिखा मिल जाता है। आजकल यह पूर्ण सच नहीं हैं। एक नियमित विवाह के अतिरिक्त अन्य संबंध देखने को मिल सकते हैं। मैंने बहुत सारे मामलों में परीक्षण किया और यह पाया कि कॉलेज जीवन में साल-दो साल चला अफेयर विवाह में नहीं बदल पाता परन्तु सप्तम भाव मे स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठा हुआ ग्रह, इस बात की सूचना दे देता है। यह बात इतनी व्यापक हो गई है कि अगर उस ग्रह की अन्तर्दशा निकल गई हो तो ज्योतिषी को बिना बताए निर्णय ले लेना चाहिए। मैं ऎसे सभी मामलों में यह निर्णय देता हूं कि जिसका विवाह किया जाना है उससे शत-प्रतिशत स्वीकृति आनी ही चाहिए। मां-बाप अगर किसी रिश्ते को थोप देंगे तो उसका दुष्परिणाम आगे चलकर आ सकता है। अब पिछले संबंध से निवृत्ति का उत्तरदायित्व व्यक्ति पर स्वयं पर आ जाता है। इन मामलों में जोर-जबर्दस्ती शुभ परिणाम नहीं देती।
15. डॉक्टर बी.वी. रमन छठे भाव मे मंगल की स्थिति को वैवाहिक जीवन में शुभ नहीं मानते थे। इससे तनाव देखने को मिलता है। छठे भाव में कोई भी पाप ग्रह वैवाहिक जीवन में तनाव बनाए रख सकता है।
16. बृहस्पति का सप्तम भाव मे होना वैवाहिक जीवन को टिकने नहीं देता। वही बृहस्पति अगर कहीं से सप्तम भाव या सप्तमेश को दृष्टिपात करें तो यह अमृत दृष्टि होती है और वैवाहिक जीवन को बचा लेती है।
17. अब तक के विश्लेषण में यह सामने आया कि सप्तम भाव में बृहस्पति, सूर्य, केतु, मंगल इत्यादि विवाह की असफलता में कारण बनते हैं। शनि विवाह को बचा ले जाते हैं। बृहस्पति की दृष्टि भी बचा ले जाती है। सप्तम भाव पर राहु की दृष्टि भी बंधन कारक होती है और तलाक नहीं होने देती।
18. सप्तम भाव का संबंध शनि से होने पर दम्पति की परस्पर उम्र मे कुछ अंतर मिलता है परन्तु ऎसे मामलों में जिसकी उम्र अधिक है उसके यह देखा जाना चाहिए कि लग्न पर मंगल का प्रभाव हो, इससे वो उम्र से भी कम दिखेगा और उसकी अधिक आयु मिलती है।
19. कुण्डली का मिलान करते समय जिस कूट के परिणाम कम आएं उससे संबंधित विषय वाले ग्रह का विशेष परीक्षण जन्मपत्रिका में किया ही जाना चाहिए। उस कूट की प्राप्ति के लिए उपाय अवश्य बताने चाहिएं।
20. मेरा यह मानना है कि किसी भी व्यक्ति को पंडितजी से दो मिनिट में ही मेलापक नहीं कराना चाहिए। पंडितजी को कम से कम दो घंटे तक अध्ययन करके तब मिलान का परिणाम देना चाहिए।
21. पंडितजी को मिलान कार्य के लिए 21 रूपए या 51 देना अपराध के समान है। आपके बच्चो का जीवन तय हो रहा है और आप इसको इतना हल्के रूप में ले रहे हैं। इस कार्य को व्यक्ति और ज्योतिषी दोनों को ही सम्मान देना चाहिए। बच्चाों का जीवन नरक करने का किसी को भी अधिकार नहीं है। वेबसाइट्स को भी केवल नक्षत्र मेलापक के आधार पर परिणाम दिखाकर शास्त्रों का उल्लंघन करने की आज्ञा नहीं होनी चाहिए।
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