मेदिनी ज्योतिष, अर्थात् राष्ट्र के बारे में बताई जाने वाली भविष्यवाणियों से संबंधित ज्योतिष ग्रहों के केन्द्रीय प्रभाव को लेकर चर्चा करती है। जो ग्रह परस्पर केन्द्र में होकर व्यक्तिगत मामलों में लाभदायक सिद्ध होते हैं, वे ही ग्रह मेदिनी ज्योतिष में एक-दूसरे के विरुद्ध कार्य करते हुए पाए जाते हैं। व्यक्ति की और राष्ट्र की जन्मपत्रिका से संबंधित फलित ज्योतिष यह एक विशेष बात है।
यदि दो ग्रह एक-दूसरे से 45 अंश पर हों या 135 अंश पर हों तो अशुभ फल देते हैं। यदि दो ग्रह एक-दूसरे से 60 अंश पर हों या 120 अंश पर हों तो शुभ प्रभाव देते हैं। जो ग्रह एक-दूसरे से 90 या 180 अंश पर हों तो वह अशुभ फल देते हैं। दो ग्रह जब एक-दूसरे से 150 अंश पर हों तो इसको षडाष्टक योग कहते हैं और यह ग्रह अशुभ फल देते हैं। यदि दो ग्रह एकदम इन्हीं अंशों पर एक-दूसरे से युति करें तो तीव्र फल देते हैं।
इन दिनों भारत की कुण्डली में कई ग्रह एक-दूसरे से केन्द्रीय प्रभाव में हैं। इनमें राहु और केतु अक्ष मिथुन और धनु राशि पर है और दूसरे अक्ष पर कन्या में शनि और मीन में बृहस्पति हैं। फरवरी के महीने में राहु के साथ शुक्र धनु राशि में काफी दिनों तक रहेंगे, काफी दिनों तक शनि वक्री रहेंगे अर्थात् 13 जून तक तथा उसके बाद बृहस्पति वक्री रहेंगे 30 अगस्त से 25 दिसम्बर तक, अर्थात् कम से कम तीन ग्रह कई महीनों तक एक-दूसरे से केन्द्रीय प्रभाव में रहेंगे और यही वह बात है जो राष्ट्र के घटनाक्रम को प्रभावित कर रही है।
हर्षल कुछ महीनों तक बृहस्पति के साथ युति कर रहे हैं और यह आकस्मिकता के स्वामी हैं और शनि वक्री होते हुए बृहस्पति व हर्षल या यूरेनस के साथ अशुभ दृष्टि संबंध कर रहे हैं जो कि देश को आकस्मिक और चमत्कारिक घटनाएं देते हैं। यह ग्रह एक तरफ ज्योतिष जैसे शास्त्र को बढ़ावा देते हैं तथा दूसरी तरफ अचानक घटनाएं, हड़ताल, पार्लियामेंट में हंगामा या लाल चौक में झंडा फहराने जैसी घटनाएं देते हैं। महंगाई का विस्फोट सरकार रोक ही नहीं पा रही है। हर्षल-गुरु युति 14 वर्ष में एक बार होती है और राजकीय अहंकार के विरुद्ध लोग उठ खड़े होते हैं और सरकार को भयंकर प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। हर्षल और शनि का अशुभ दृष्टि संयोग भी अत्याचारों या लूट-खसोट से संबंधित है। नवम्बर 2010 में बृहस्पति और नेपच्यून दोनों कुंभ में वक्री थे और उनसे अगली राशि मीन में हर्षल वक्री थे जब 2जी स्पैक्ट्रम और महंगाई को लेकर देश में हंगामा मचा हुआ था। नेपच्यून जब वक्री होते हैं तो राजसत्ता के विरुद्ध वातावरण बनता है। ठीक इसी समय शुक्र भी वक्री चल रहे थे जो कि टेलीकॉम सेक्टर के स्वामी हैं। हमने पिछले अंक में भी लिखा था कि जब-जब गुरु और श्ुाक्र एक साथ वक्री होंगे, दूरसंचार विभाग से संबंधित घोटाले सामने आएंगे।
जून 2011 में शनि, प्लूटो और हर्षल एक-दूसरे से केन्द्र में होंगे और जनता में भारी असंतोष उत्पन्न करेंगे। इसी समय नेपच्यून भी कुंभ राशि में वक्री चल रहे होंगे। अत: इसको सरकार के लिए अशुभ समय माना जा सकता है और जनता सरकार से भारी नाराज रहेगी और राजनैतिक धु्रवीकरण शुरू हो जाएगा। अगस्त में पुन: प्लूटो, नेपच्यून, हर्षल और बुध वक्री चल रहे होंगे और कई ग्रह एक-दूसरे से केन्द्रीय प्रभाव में होने के कारण सरकार का व्यवस्थाओं पर से नियंत्रण कम हो जाएगा और अराजकता बढ़ेगी। यह केन्द्रीय प्रभाव निम्न हैं-
1. 4 अगस्त 2011 को चन्द्र, शनि, हर्षल, प्लूटो व मंगल दूसरी तरफ राहु, केतु, नेपच्यून और बुध।
2. 8सितम्बर को सूर्य, शुक्र, बुध व नेपच्यून तथा राहु व केतु। इसी दिन शनि व वक्री हर्षल तथा वक्री प्लूटो व मंगल।
3. अक्टूबर में भी बृहस्पति, हर्षल व नेपच्यून वक्री रहेंगे तथा इनके साथ ही राहु-केतु सदा ही वक्री रहते हैं। नेपच्यून 9 नवम्बर तक वक्री रहेंगे, जब वे मार्गी होंगे थोड़े दिन बाद ही बुध वक्री हो जाएंगे यह विशेष स्थिति है जब कई सारे ग्रह वक्री रहकर राष्ट्र को प्रभावित करेंगे।
4. 2011 के अंत में मंगल और नेपच्यून एक-दूसरे से केन्द्रीय प्रभाव में होंगे जो अपराध की संख्या बढ़ाते हैं और बड़ी संख्या में अपराधी गिरफ्तार किए जाते हैं। इसी समय सूर्य, बुध, राहु और केतु एक-दूसरे से केन्द्र में होने के कारण और इन सभी से केन्द्र में होने के कारण राजसत्ता में लोगों का विश्वास कम होने लगता है और राजनैतिक धु्रवीकरण तेजी से बढ़ता है।
वक्री ग्रहों का प्रभाव बहुत शक्तिशाली होता है और देशकाल परिस्थितियों पर बहुत व्यापक प्रभाव डालता है। इस पूरे वर्ष शनि और नेपच्यून का एक-दूसरे से षडष्टक होना भी कम नहीं है। 2011 के अंत में नवंबर मास में शनिदेव कन्या से तुला में जाएंगे तब तक, एक-दूसरे से 6, 8होंगे और पूरे देश की राजनीति में भूचाल लाकर रखेंगे, अपने निर्णायक कदम तब उठाएंगे। जब शनिदेव 15 नवंबर को तुला राशि में आएंगे और नेपच्यून से त्रिकोण में स्थित होकर अपना व्यापक प्रभाव छोड़ेंगे। उस समय भी कई ग्रह एक-दूसरे से त्रिकोण के प्रभाव में होंगे और अशुभ परिणाम देंगे। मंगल और शनि का अशुभ योग झगड़े, रोग, बहुत खर्च और कर्ज कराता है।
इस समय व्यक्ति आपराधिक मामलों में फंसेंगे, गिरफ्तार होंगे। मंगल से नेपच्यून का संबंध राजनीतिक बदले की भावना को दर्शाता है इसलिए 2011 का अंतिम त्रैमास कुछ अशुभ घटनाओं को लेकर आएगा। शनि और नेपच्यून का परस्पर सहयोग या एक-दूसरे से त्रिकोण में होना स्त्रियों जातकों के प्रति अपराध में वृद्धि कराता है। इससे राजसत्ता के प्रति विपरीत भावनाएं बनती हैं और शासन के प्रति लोगों को सोचने के लिए मजबूर करती हैं। नेपच्यून वर्षपर्यन्त कुंभ राशि में रहेंगे जो कि भारत की वृषभ लग्र से दशम भाव में हैं।
दशम भाव के नेपच्यून से व्यक्तिगत जन्मपत्रिका में स्वतंत्रता, अनुसंधान, बुद्धिमानी, राजा से कष्ट और पत्रकार, उपन्यासकार, इंजीनियर, डॉक्टर, टैलीपैथी, दूरदृष्टि, स्वप्नदृष्टा इत्यादि जैसे विषय देखे जाते हैं परंतु आगे चलकर व्यक्ति का पतन भी करा देता है। नेपच्यून प्रारंभ में सुख देता है अंत में दु:ख देता है। राष्ट्र के मामले में नेपच्यून व्यवस्था के प्रतिकूल होता है और अराजकता फैलाता है। नेपच्यून का कार्य अव्यवस्था फैलानें में ज्यादा है। पृथ्वी से 17 गुना भारी नेपच्यून की खोज 1846में की गई थी और इनके बहुत सारे चंद्रमा हैं। 165 वर्ष में सूर्य की परिक्रमा करने वाले नेपच्यून एक राशि का आधा भाग 6-7 वर्षों में पूरा करते हैं अत: महत्वपूर्ण असर डालते हैं।
कुंभ में नेपच्यून 2009 में फरवरी मास में आए हैं और 2022 की अप्रैल तक रुकेंगे अत: इस देश की राजनीति तंत्र पर व्यापक प्रभाव डालने वाले हैं और सारी प्रणालियों को बदलने वाले हैं। चाहे जजों की संपत्तियां घोषित करने का मामला हो या राजनेताओं की संपत्ति का मामला हो, या स्विट्जरलैण्ड से धन वापस मंगाने का मामला हो या बड़े-बड़े घोटालो का मामला हो। भारत की जन्मपत्रिका में नेपच्यून भारी प्रभाव डालने वाले हैं।
इस वर्ष मीन राशि पर गर्मियों में कई ग्रहों का प्रभाव होने के कारण संसद में भारी हंगााम होने के आसार हैं। भारत की कुण्डली में मीन राशि एकादश भाव में स्थित है जो कि पार्लियामेंट के संबंधित है पर कोई आश्चर्य नहीं कि आगामी सत्रों में पार्लियामेंट में वह सब देखने को मिले जो कि आज तक देखने को नहीं मिला। बजट सत्र बहुत हंगामेदार होने जा रहा है। इसके बाद पुन: जब बृहस्पति वक्री होकर देशकाल को प्रभावित करेंगे तो दशहरे व दीपावली पर सरकार को भारी संकट में ले आएंगे।
हर्षल, प्लूटो व नेपच्यून ही इतने प्रभावी हो रहे हैं इनके साथ शनि और बृहस्पति भी बारी-बारी से वक्री हो रहे हैं। इन परिस्थितियों में राष्ट्र के प्रधानमंत्री भी ऐसी परिस्थितियां सहन करने को बाध्य है जो कि आमतौर से नहीं होतीं।