उस दिन बी.बी.सी. की हिन्दी सेवा से एक फोन मेरे घर में आया और मेरे पति से उन्होंने एक सवाल किया। ‘आज दिल्ली में एक साथ 27,000 विवाह हो रहे हैं क्या आप मानते हैं कि ये सब सफल सिद्ध होंगे।’ उन्होंने उत्तर दिया कि जिस विवाह के लिए निश्चित मुहूर्त निकाला गया है, वह अवश्य ही सफल होगा। करोड़ों की आबादी में कुछ हजार विवाह एक साथ होना यह दर्शाता है कि अवश्य ही उस दिन बहुत अच्छी ग्रहस्थिति रही होगी। पाकिस्तान निवासी बी.बी.सी. की उस कलाकार को इस बात का बड़ा आश्चर्य हो रहा था।
भारत में विवाह की सफलता के मूल में मुहूर्त का बहुत बड़ा योगदान है। भारत मेें परिवार अभी बचा हुआ है और विवाह को संस्कार माना गया है। इस पर भी बिना मुहूर्त से यहां विवाह नहीं होते हैं इसलिए यहां विवाह लंबे चलते हैं। विदेशों में परिवार कमजोर पड़ गया है, विघटन अधिक हो गए हैं और विवाह की संस्था बहुत कमजोर हो गई है। मेरा मानना है कि इसका कारण अच्छे मुहूर्त में विवाह नहीं होना। अन्य कारण भी होंगे परंतु ज्योतिष और मुहूर्त भी एक प्रमुख कारण है।
अभी एक विवाह में मेरे पति ने एक कनाड़ा से आई हुई महिला गायक क्लार्क को जब बताया कि उसकी जितनी आयु है उससे ज्यादा वर्ष उनके विवाह के व्यतीत हो चुके हैं तो वह आश्चर्यचकित रह गई। बहुत सारे भारतीय ऐसे हैं जो जीवित हंै और जिनके विवाह को 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं। मेरे पति के एक जर्मन मित्र कहा करते हैं कि वहां विवाह की औसत आयु 4 से 5 वर्ष तक होती है।
वैशाख शुक्ला तृतीया, चैत्र शुक्ला प्रतिपदा, वसंत पंचमी व आषाढ़ शुक्ला नवमी में ऐसी तिथियां मानी गई है जिनको लोग अबूझ सावा मानते हुए प्रयोग में ले लेते हैं। इस दिन ग्रामीण काश्तकार तो ना किसी पंडित को पूछते हैं और ना ही किसी अन्य को और बच्चों के विवाह करा देते हैं।
अमावस्या ही नहीं बल्कि पूर्णिमा भी विवाह में अशुभ मानी गई है परंतु कार्तिक पूर्णिमा के दिन विवाह को कहीं-कहीं आज्ञा दी गई है। इसका अर्थ यह हुआ कि कोई भी एक निश्चित तिथि सभी मामलों में समान रूप से प्रयोग नहीं ली जाती। फिर भी कोई-कोई समय है जिसके लिए सभी प्रकार से मान्यता है जैसे गोधूलि का विवाह सभी जगह शुभ माना गया है। इस तरह के बहुत सारे तर्कों को लेकर मुहूर्त गढ़े जाते हैं।
कुछ कट्टर ब्राह्मण वर्जित मुहूर्त में विवाह संपन्न नहीं कराते हैं। पंडित सतीश शर्मा को मैंने कई बार मलमास में किए जाने वाले विवाहों में जाने के लिए मना करते हुए देखा है।
कुछ चर्चित नक्षत्र
पुष्य नक्षत्र में ब्रह्मा मदमूचर््िछत हो गए थे। तब तक पुष्य नक्षत्र विवाह में ग्रहण किया जाता था। उस दिन के बाद अन्य सभी कार्य पुष्य नक्षत्र के दिन किए जाते हैं परंतु विवाह के लिए वर्जित हो गया। वाल्मिकी ऋषि ने कहा है कि पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में सीता का विवाह हुआ था इसलिए उन्हें विवाह का सुख प्राप्त नहीं हो सका। अत्रि ऋषि ने अभिजित नक्षत्र को इसलिए अशुभ माना क्योंकि उसमें दमयंती का विवाह हुआ था और उसे राजा नल से दूर रहना पड़ा क्योंकि वे उसे भूल गए थे। किन्हीं-किन्हीं कारणों से अश्विनी, चित्रा, श्रवण और धनिष्ठा में भी विवाह वर्जित किए गए हैं। विवाह संबंधी कार्यों में श्राद्ध आदि कर्म की निंदा की गई है परंतु पितरों के संबंधित नक्षत्र मघा को विवाह कार्य के लिए शुभ मान लिया गया है। क्यों? इसलिए दक्ष प्रजापति की 13 पुत्रियों का विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ और मघा नक्षत्र में हुए इस विवाह से जो संतानें उत्पन्न हुईं उनमेें देव-दानवों के अलावा पृथ्वी पर रहने वाले अधिकांश प्राणी हैं। भगवान कृष्ण की माता देवकी का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था। यह वर्जित नक्षत्र था परंतु जब इनसे भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया तो यह नक्षत्र शुभ मान लिया गया और मूल नक्षत्र में विवाह की आज्ञा दे दी गई।
चर्चित लग्न
कर्क लग्न को विवाह के लिए शुभ नहीं बताया गया है। अन्य सभी लग्न की मान्यता है। अन्य चर लग्नों में भी पाणिग्रहण संस्कार स्वीकार किए गए हैं।
ग्रहों का शुभ-अशुभ प्रभाव
बृहस्पति जब वक्री हों या अतिचारी हों (जब अस्त होने से पश्चात् मोक्ष हो जाए और ग्रह सामान्य से अत्यधिक गति करने लगे) तो महाराष्ट्र, पश्चिमी मध्यप्रदेश, गुजरात और दक्षिणी राजस्थान में विवाह वर्जित बताया गया है। मघा नक्षत्र में जब गुरु हों तो विवाह नहीं करना चाहिए। मीन राशि के सूर्य को आमतौर पर मलमास कहा जाता है परंतु बिहार और दक्षिण पूर्वी उत्तरप्रदेश इत्यादि कुछ राज्यों में इसे दोषी नहीं माना गया है।
महीनों का विचार
आश्विन मास में विवाहित स्त्री को सुख प्राप्त नहीं होता। श्रावण मास में विवाह करने से स्त्री को गृह-सुख का अभाव होता है। कार्तिक में तेज और शक्ति की हानि होती है और चैत्र मास में नशे में आसक्त और मार्गशीर्ष में अन्न का अभाव झेलती है। भाद्रपद मास में विवाहित स्त्री की सुख व अभिलाषाएं समाप्त हो जाती हैं। पौष मास में विवाहित स्त्री अपने पति के सुखों को कम कर देती है।
कुछ मास और तिथियां अपवाद स्वरूप ले ली गई हैं जैसे भार्गव कुल में उत्पन्न और राजस्थान के मस्त्यप्रदेश में रहने वालों के लिए भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की दशमी विवाह के लिए अच्छी तिथि मानी गई है। इसी प्रकार रेगिस्तान में निम्न जातियों के लिए आश्विन शुक्ला दशमी अच्छी मानी गई है।
तिथियों के शुभ भाग
तिथियों के प्रारंभ और अन्त में 40-40 पल, नक्षत्रों के प्रारंभ और अंत के 37 पल, योगों के आदि और अंत के 34 पल तथा कर्क, वृश्चिक व मीन राशि वालों के लिए आदि व अंत के ढाई पल का त्याग कर देना चाहिए। बाकी तिथि शुभ मानी गई हैं। तिथि के आदि और अंत में विवाह करने से पति की मृत्यु, नक्षत्र के आदि व अंत में विवाह करने से स्त्री संतानहीन, योग के आदि व अंत में विवाह करने से स्त्री चंचल स्वभाव वाली और राशियों के आदि व अंत में विवाह करने वाली स्त्री कुल का नाश करती है।
अत: हमें समझ लेना चाहिए कि नाच-गाने में अधिक समय लगाकर मुहूर्त में जो दोष आ जाता है, वह किस हद तक भयानक हो सकता है।
योनि विचार
विवाह विचार में सभी 28नक्षत्रों की योनियां बताई गई हैं। उनमें से कुछ योनियां एक-दूसरे की शत्रु होती हैं। यदि वर व कन्या की योनियां एक-दूसरे की शत्रु योनि हो तो योनि वैर कहलाता है और विवाह अशुभ सिद्ध होता है। हाथी और सिंह का, मेष और वानर का, अश्व और महिष का, मूषक और विडाल का, सर्प और नेवले का, मृग और स्वांग का तथा काग और गऊ का वैर होता है। वैर योनि से जीवन में कलह और अशुभ बहुत आता है।
शुभ नक्षत्रों के श्रेष्ठ जोड़े
कुछ नक्षत्रों में बड़ी प्रीति होती है। इन नक्षत्रों के जातक एक-दूसरे से विवाह करें तो बहुत सारे गुण मिलते हैं। ये निम्न हैं:
1. अश्विनी और भरणी = 34 गुण
2. कृत्तिका और शतभिषा = 321/2 गुण
3. रोहिणी और मृगशिरा = 36गुण
4. मृगशिरा और पू.भाद्रपद = 311/2 गुण
5. आद्र्रा और मृगशिरा = 33 गुण
6. पुनर्वसु और मृगशिरा = 311/2 गुण
7. पुनर्वसु और पुष्य = 35 गुण
8. पुष्य और भरणी = 311/2 गुण
9. पुष्य और अश्विनी = 311/2 गुण
10. पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी = 35 गुण
11. हस्त और मृगशिरा = 34 गुण
12. चित्रा और विशाखा = 341/2 गुण।
13. शतभिषा और कृत्तिका = 311/2 गुण।
14. उत्तराभाद्रपद और पूर्वाभाद्रपद = 33 गुण
15. उत्तराभाद्रपद और रेवती = 34 गुण
इसी तरह से कुछ अशुभ जोड़े भी हंै। जैसे कि -
1. भरणी और चित्रा = 5 गुण
2. हस्त और अश्विनी = 9 गुण
3. ज्येष्ठा और आद्र्रा = 3 गुण
4. ज्येष्ठा और पुनर्वसु = 7 गुण
5. मूल और पुनर्वसु = 8 गुण
6. धनिष्ठा और पुष्य = 41/2 गुण
7. मघा और श्रवण = 41/2 गुण
8. शतभिषा और पुनर्वसु = 8 गुण
9. उत्तराफाल्गुनी और मूल = 91/2 गुण
10. अनुराधा और चित्रा = 61/2 गुण
11. स्वाति और विशाखा = 7 गुण
12. धनिष्ठा और पूर्वाषाढ़ा = 6 गुण
इस तरह से कुछ जोड़े और भी हैं।
कुछ अन्य तथ्य
1. जन्म नक्षत्र, जन्म मास, जन्मदिन और जन्म लग्न में अगर पाणिग्रहण संस्कार किए गए तो दंपती को क्लेश प्राप्ति होती है। दिन में जन्म हो तो रात्रि में विवाह और कृष्ण पक्ष में विवाह शुभ माना गया है।
2. प्रथम गर्भ से उत्पन्न कन्या व प्रथम गर्भ से उत्पन्न वर, ज्येष्ठ मास में उत्पन्न कन्या तथा ज्येष्ठ मास में उत्पन्न वर, ज्येष्ठ मास में विवाह, ये पांच तथ्य मिलकर ज्येष्ठ पंचक या शुक्ल पंचक कहलाता है। यदि दो ज्येष्ठ या चार ज्येष्ठ हों तो तब तो विवाह शुभ अन्यथा अशुभ माना जाता है। मान लीजिए किसी माता का प्रथम गर्भ नष्ट हो गया है तथा दूसरे गर्भ से उत्पन्न संतान का विवाह हो रहा है तो ज्येष्ठ पंचक का नियम उस पर लागू नहीं होता।
3. एक ही माता से उत्पन्न दो बहिनों का विवाह एक साथ, एक ही मंडप में नहीं करना चाहिए।
4. भाई के विवाह के छ: माह के अन्दर बहिन का विवाह निश्चित ही है परंतु बहन के विवाह के बाद भाई का विवाह कभी भी किया जा सकता है।
भारत में विवाह की सफलता के मूल में मुहूर्त का बहुत बड़ा योगदान है। भारत मेें परिवार अभी बचा हुआ है और विवाह को संस्कार माना गया है। इस पर भी बिना मुहूर्त से यहां विवाह नहीं होते हैं इसलिए यहां विवाह लंबे चलते हैं। विदेशों में परिवार कमजोर पड़ गया है, विघटन अधिक हो गए हैं और विवाह की संस्था बहुत कमजोर हो गई है। मेरा मानना है कि इसका कारण अच्छे मुहूर्त में विवाह नहीं होना। अन्य कारण भी होंगे परंतु ज्योतिष और मुहूर्त भी एक प्रमुख कारण है।
अभी एक विवाह में मेरे पति ने एक कनाड़ा से आई हुई महिला गायक क्लार्क को जब बताया कि उसकी जितनी आयु है उससे ज्यादा वर्ष उनके विवाह के व्यतीत हो चुके हैं तो वह आश्चर्यचकित रह गई। बहुत सारे भारतीय ऐसे हैं जो जीवित हंै और जिनके विवाह को 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं। मेरे पति के एक जर्मन मित्र कहा करते हैं कि वहां विवाह की औसत आयु 4 से 5 वर्ष तक होती है।
वैशाख शुक्ला तृतीया, चैत्र शुक्ला प्रतिपदा, वसंत पंचमी व आषाढ़ शुक्ला नवमी में ऐसी तिथियां मानी गई है जिनको लोग अबूझ सावा मानते हुए प्रयोग में ले लेते हैं। इस दिन ग्रामीण काश्तकार तो ना किसी पंडित को पूछते हैं और ना ही किसी अन्य को और बच्चों के विवाह करा देते हैं।
अमावस्या ही नहीं बल्कि पूर्णिमा भी विवाह में अशुभ मानी गई है परंतु कार्तिक पूर्णिमा के दिन विवाह को कहीं-कहीं आज्ञा दी गई है। इसका अर्थ यह हुआ कि कोई भी एक निश्चित तिथि सभी मामलों में समान रूप से प्रयोग नहीं ली जाती। फिर भी कोई-कोई समय है जिसके लिए सभी प्रकार से मान्यता है जैसे गोधूलि का विवाह सभी जगह शुभ माना गया है। इस तरह के बहुत सारे तर्कों को लेकर मुहूर्त गढ़े जाते हैं।
कुछ कट्टर ब्राह्मण वर्जित मुहूर्त में विवाह संपन्न नहीं कराते हैं। पंडित सतीश शर्मा को मैंने कई बार मलमास में किए जाने वाले विवाहों में जाने के लिए मना करते हुए देखा है।
कुछ चर्चित नक्षत्र
पुष्य नक्षत्र में ब्रह्मा मदमूचर््िछत हो गए थे। तब तक पुष्य नक्षत्र विवाह में ग्रहण किया जाता था। उस दिन के बाद अन्य सभी कार्य पुष्य नक्षत्र के दिन किए जाते हैं परंतु विवाह के लिए वर्जित हो गया। वाल्मिकी ऋषि ने कहा है कि पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में सीता का विवाह हुआ था इसलिए उन्हें विवाह का सुख प्राप्त नहीं हो सका। अत्रि ऋषि ने अभिजित नक्षत्र को इसलिए अशुभ माना क्योंकि उसमें दमयंती का विवाह हुआ था और उसे राजा नल से दूर रहना पड़ा क्योंकि वे उसे भूल गए थे। किन्हीं-किन्हीं कारणों से अश्विनी, चित्रा, श्रवण और धनिष्ठा में भी विवाह वर्जित किए गए हैं। विवाह संबंधी कार्यों में श्राद्ध आदि कर्म की निंदा की गई है परंतु पितरों के संबंधित नक्षत्र मघा को विवाह कार्य के लिए शुभ मान लिया गया है। क्यों? इसलिए दक्ष प्रजापति की 13 पुत्रियों का विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ और मघा नक्षत्र में हुए इस विवाह से जो संतानें उत्पन्न हुईं उनमेें देव-दानवों के अलावा पृथ्वी पर रहने वाले अधिकांश प्राणी हैं। भगवान कृष्ण की माता देवकी का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था। यह वर्जित नक्षत्र था परंतु जब इनसे भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया तो यह नक्षत्र शुभ मान लिया गया और मूल नक्षत्र में विवाह की आज्ञा दे दी गई।
चर्चित लग्न
कर्क लग्न को विवाह के लिए शुभ नहीं बताया गया है। अन्य सभी लग्न की मान्यता है। अन्य चर लग्नों में भी पाणिग्रहण संस्कार स्वीकार किए गए हैं।
ग्रहों का शुभ-अशुभ प्रभाव
बृहस्पति जब वक्री हों या अतिचारी हों (जब अस्त होने से पश्चात् मोक्ष हो जाए और ग्रह सामान्य से अत्यधिक गति करने लगे) तो महाराष्ट्र, पश्चिमी मध्यप्रदेश, गुजरात और दक्षिणी राजस्थान में विवाह वर्जित बताया गया है। मघा नक्षत्र में जब गुरु हों तो विवाह नहीं करना चाहिए। मीन राशि के सूर्य को आमतौर पर मलमास कहा जाता है परंतु बिहार और दक्षिण पूर्वी उत्तरप्रदेश इत्यादि कुछ राज्यों में इसे दोषी नहीं माना गया है।
महीनों का विचार
आश्विन मास में विवाहित स्त्री को सुख प्राप्त नहीं होता। श्रावण मास में विवाह करने से स्त्री को गृह-सुख का अभाव होता है। कार्तिक में तेज और शक्ति की हानि होती है और चैत्र मास में नशे में आसक्त और मार्गशीर्ष में अन्न का अभाव झेलती है। भाद्रपद मास में विवाहित स्त्री की सुख व अभिलाषाएं समाप्त हो जाती हैं। पौष मास में विवाहित स्त्री अपने पति के सुखों को कम कर देती है।
कुछ मास और तिथियां अपवाद स्वरूप ले ली गई हैं जैसे भार्गव कुल में उत्पन्न और राजस्थान के मस्त्यप्रदेश में रहने वालों के लिए भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की दशमी विवाह के लिए अच्छी तिथि मानी गई है। इसी प्रकार रेगिस्तान में निम्न जातियों के लिए आश्विन शुक्ला दशमी अच्छी मानी गई है।
तिथियों के शुभ भाग
तिथियों के प्रारंभ और अन्त में 40-40 पल, नक्षत्रों के प्रारंभ और अंत के 37 पल, योगों के आदि और अंत के 34 पल तथा कर्क, वृश्चिक व मीन राशि वालों के लिए आदि व अंत के ढाई पल का त्याग कर देना चाहिए। बाकी तिथि शुभ मानी गई हैं। तिथि के आदि और अंत में विवाह करने से पति की मृत्यु, नक्षत्र के आदि व अंत में विवाह करने से स्त्री संतानहीन, योग के आदि व अंत में विवाह करने से स्त्री चंचल स्वभाव वाली और राशियों के आदि व अंत में विवाह करने वाली स्त्री कुल का नाश करती है।
अत: हमें समझ लेना चाहिए कि नाच-गाने में अधिक समय लगाकर मुहूर्त में जो दोष आ जाता है, वह किस हद तक भयानक हो सकता है।
योनि विचार
विवाह विचार में सभी 28नक्षत्रों की योनियां बताई गई हैं। उनमें से कुछ योनियां एक-दूसरे की शत्रु होती हैं। यदि वर व कन्या की योनियां एक-दूसरे की शत्रु योनि हो तो योनि वैर कहलाता है और विवाह अशुभ सिद्ध होता है। हाथी और सिंह का, मेष और वानर का, अश्व और महिष का, मूषक और विडाल का, सर्प और नेवले का, मृग और स्वांग का तथा काग और गऊ का वैर होता है। वैर योनि से जीवन में कलह और अशुभ बहुत आता है।
शुभ नक्षत्रों के श्रेष्ठ जोड़े
कुछ नक्षत्रों में बड़ी प्रीति होती है। इन नक्षत्रों के जातक एक-दूसरे से विवाह करें तो बहुत सारे गुण मिलते हैं। ये निम्न हैं:
1. अश्विनी और भरणी = 34 गुण
2. कृत्तिका और शतभिषा = 321/2 गुण
3. रोहिणी और मृगशिरा = 36गुण
4. मृगशिरा और पू.भाद्रपद = 311/2 गुण
5. आद्र्रा और मृगशिरा = 33 गुण
6. पुनर्वसु और मृगशिरा = 311/2 गुण
7. पुनर्वसु और पुष्य = 35 गुण
8. पुष्य और भरणी = 311/2 गुण
9. पुष्य और अश्विनी = 311/2 गुण
10. पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी = 35 गुण
11. हस्त और मृगशिरा = 34 गुण
12. चित्रा और विशाखा = 341/2 गुण।
13. शतभिषा और कृत्तिका = 311/2 गुण।
14. उत्तराभाद्रपद और पूर्वाभाद्रपद = 33 गुण
15. उत्तराभाद्रपद और रेवती = 34 गुण
इसी तरह से कुछ अशुभ जोड़े भी हंै। जैसे कि -
1. भरणी और चित्रा = 5 गुण
2. हस्त और अश्विनी = 9 गुण
3. ज्येष्ठा और आद्र्रा = 3 गुण
4. ज्येष्ठा और पुनर्वसु = 7 गुण
5. मूल और पुनर्वसु = 8 गुण
6. धनिष्ठा और पुष्य = 41/2 गुण
7. मघा और श्रवण = 41/2 गुण
8. शतभिषा और पुनर्वसु = 8 गुण
9. उत्तराफाल्गुनी और मूल = 91/2 गुण
10. अनुराधा और चित्रा = 61/2 गुण
11. स्वाति और विशाखा = 7 गुण
12. धनिष्ठा और पूर्वाषाढ़ा = 6 गुण
इस तरह से कुछ जोड़े और भी हैं।
कुछ अन्य तथ्य
1. जन्म नक्षत्र, जन्म मास, जन्मदिन और जन्म लग्न में अगर पाणिग्रहण संस्कार किए गए तो दंपती को क्लेश प्राप्ति होती है। दिन में जन्म हो तो रात्रि में विवाह और कृष्ण पक्ष में विवाह शुभ माना गया है।
2. प्रथम गर्भ से उत्पन्न कन्या व प्रथम गर्भ से उत्पन्न वर, ज्येष्ठ मास में उत्पन्न कन्या तथा ज्येष्ठ मास में उत्पन्न वर, ज्येष्ठ मास में विवाह, ये पांच तथ्य मिलकर ज्येष्ठ पंचक या शुक्ल पंचक कहलाता है। यदि दो ज्येष्ठ या चार ज्येष्ठ हों तो तब तो विवाह शुभ अन्यथा अशुभ माना जाता है। मान लीजिए किसी माता का प्रथम गर्भ नष्ट हो गया है तथा दूसरे गर्भ से उत्पन्न संतान का विवाह हो रहा है तो ज्येष्ठ पंचक का नियम उस पर लागू नहीं होता।
3. एक ही माता से उत्पन्न दो बहिनों का विवाह एक साथ, एक ही मंडप में नहीं करना चाहिए।
4. भाई के विवाह के छ: माह के अन्दर बहिन का विवाह निश्चित ही है परंतु बहन के विवाह के बाद भाई का विवाह कभी भी किया जा सकता है।